नकुड़ नगरपालिका : भाजपा की अग्निपरीक्षा, क्या इस बार भी होगी बगावत?

नकुड़ नगरपालिका : भाजपा की अग्निपरीक्षा, क्या इस बार भी होगी बगावत?

नकुड़ [दिग्विजय त्यागी]: उत्तर प्रदेश में लोकसभा व विधानसभा का उपचुनाव सम्पन्न होने के साथ ही निकाय चुनाव के लिए आरक्षण की बहुप्रतीक्षित सूची जारी कर दी गई। आरक्षण सूची के आने के साथ ही प्रदेश का राजनीतिक पारा सातवें आसमान पर पँहुच गया। आरक्षण सूची ने जहां पिछले पाँच वर्षों से चुनाव की तैयारी कर रहे कुछ लोगों की आकांक्षाओं पर कुठाराघात किया तो वही कुछ लोगों की अपेक्षाओं को जिंदा कर दिया।

यदि नकुड़ नगरपालिका की बात की जाए तो यंहा पर बसपा से पूर्व चेयरमैन खालिद खान के पुत्र साहिल खान, भाजपा से वरिष्ट नेता शिवकुमार गुप्ता व वरिष्ट नेता सुभाष सिंघल, वर्तमान चेयरमैन शाहनवाज तैयारी में थे और अपनी-अपनी पार्टी में दावेदारी कर रहे थे। लेकिन जैसे ही आरक्षण सूची आई तो चुनाव तैयारी में लगे इन दिग्गजों को मायूसी हाथ लगी। हालांकि शिवकुमार गुप्ता की पत्नी के अचानक हुए देहांत ने उन्हे बड़ा पारिवारिक आघात दिया और उनके लिए चुनाव को बेमानी बना दिया।

उधर पिछड़ा वर्ग से भाजपा में पूर्व चेयरमैन धनीराम सैनी, व मण्डल अध्यक्ष राकेश वर्मा भी अपनी-अपनी तैयारी में लगे थे। वहीं जबसे सीट के पिछड़ा वर्ग में जाने के संकेत मिलने लगे थे तब से पाँच बार के सभासद रामनाथ कश्यप भी मजबूती से अपनी दावेदारी करने के लिए सक्रिय हो गए।

प्रत्याशी का चुनाव भाजपा के लिए टेढ़ीखीर
इस बार नगर में भाजपा की अग्निपरीक्षा है। पार्टी के लिए प्रत्याशी का चुनाव करना एक टेढ़ीखीर है। दरअसल नकुड़ नगरपालिका चुनाव में भाजपा के लिए आंतरिक विद्रोह हमेशा से बड़ा सिर दर्द रहा है। 2017 के चुनाव में आंतरिक विद्रोह के कारण ही भाजपा को सीट गवानी पड़ी थी। तब पार्टी प्रत्याशी शिवकुमार गुप्ता आंतरिक विद्रोह का शिकार हुए थे व बसपा के शहनवाज खान विजयी हुए थे। वर्ष 2012 के निकाय चुनाव में भाजपा प्रत्याशी धनीराम सैनी विजयी तो घोषित हुए थे लेकिन आंतरिक गुटबाजी व बगावत से अछूते नहीं रहे थे, और बामुश्किल भाजपा की प्रतिष्ठा बचा पाये थे।

क्या इस बार भी होगी बगावत?
नगर से मिल रहे फीडबैक को यदि आधार माना जाए तो इस बार भी पार्टी में बगावत होने की पूरी-पूरी संभावना है। दरअसल नगर के भाजपाइयों में एक किदवंती जबरदस्त पैठ बना चुकी है कि भाजपा से जो भी बगावत करता है, पार्टी उसको उतना ही महत्व, मान-सम्मान व पद-प्रतिष्ठा देती है। इन परिस्थितियों में बगावत को टाल पाना पार्टी के लिए बहुत मुश्किल काम होगा। हालांकि पार्टी हाईकमान से जो संकेत मिल रहे है वो इस बार बगावती तेवर अपनाने वालों के लिए शुभ नहीं भी हो सकते। लेकिन वर्तमान परिस्थिति उसके उलट ही कहानी बयां कर रही है।

 


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