ममता ने पकड़ लिया था SP सांसद का कॉलर, ‘लालू के लोग’ वाले राजनीति प्रसाद ने तो सभापति पर फेंकी थी बिल की कॉपी

ममता ने पकड़ लिया था SP सांसद का कॉलर, ‘लालू के लोग’ वाले राजनीति प्रसाद ने तो सभापति पर फेंकी थी बिल की कॉपी

नई दिल्ली । नए संसद भवन में पहले दिन की कार्यवाही में पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में महिला आरक्षण बिल (Women Reservation Bill) की पुरजोर समर्थन किया। पीएम मोदी के भाषण के बाद कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बिल (नारी शक्ति वंदन अधिनियम) को लोकसभा में पेश किया।

गौरतलब है कि पीएम नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की अध्यक्षता वाली केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस विधेयक को मंजूरी दे दी है। इस बिल को दोनों सदनों से पारित किए जाने और कानून बनने के बाद लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 181 हो जाएगी।

एक बार फिर चर्चा में आने वाला यह महिला आरक्षण बिल (Women Reservation Bill) पहली बार पेश नहीं किया गया है, बल्कि इससे पहले भी कई बार इसे पटल पर पेश किया गया, जिस दौरान कई अराजक दृश्य देखने को मिले।

दरअसल, महिलाओं के लिए संसद में सीटें आरक्षित करने के लिए इस विधेयक को 1996 में एचडी देवेगौड़ा (H. D. Deve Gowda) के नेतृत्व वाली सरकार ने सबसे पहले पेश किया था। इस प्रयास के बाद कई बार सरकारों ने इसे पारित करने के लिए पेश किया है, लेकिन हर बार विरोध और सर्वसम्मति न बन पाने के कारण इसे पास नहीं किया जा सका।

हालांकि, साल 2008 में यूपीए (UPA) की सरकार में फिर से बिल पेश किया और 2010 में राज्यसभा में इस पर मुहर लग गई, लेकिन इस दौरान भी इस बिल को लोकसभा में पेश नहीं किया जा सका।

संयुक्त मोर्चा सरकार ने पेश किया बिल

12 सितंबर, 1996 वो दिन जब पहली बार महिला आरक्षण बिल को लोकसभा में पेश किया गया था। दरअसल, 13 पार्टियों की गठबंधन वाली संयुक्त मोर्चा सरकार के कानून राज्य मंत्री रमाकांत डी खलप ने इस बिल को लोकसभा में पेश किया। हालांकि, इस दौरान गठबंधन में शामिल जनता दल के कई नेता और गठबंधन के कई घटक इस बिल के विरोध में खड़े थे।

इसके अगले दिन सीपीआई की गीता मुखर्जी की अध्यक्षता वाली एक संयुक्त समिति बनाई गई, जिसमें ममता बनर्जी, मीरा कुमार, नीतीश कुमार, शरद पवार, उमा भारती, सुषमा स्वराज समेत 31 सदस्य शामिल थे। इन पैनल ने कई सुझाव दिए, जिनमें से एक था कि महिलाओं को एक तिहाई से कम आरक्षण नहीं मिलना चाहिए। कई सुझावों के साथ समिति ने दिसंबर 1996 में एक रिपोर्ट पेश की।

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