बंगाल चुनाव: ममता ने फिर नंदीग्राम को बनाया सियासी केंद्रबिंदु, कुछ और तो नहीं वजह
कोलकाता । बंगाल विधानसभा चुनाव के लिए मुख्यमंत्री व तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी ने शुक्रवार को तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी। परंतु, इस सूची में सबसे बड़ी और खास बात यह है कि ममता अपना गृह और विधानसभा क्षेत्र भवानीपुर को छोड़कर नंदीग्राम से चुनाव लड़ने जा रही हैं। 2017 के बाद यह दूसरा मौका है जब ममता और तृणमूल ने नंदीग्राम को बंगाल की सियासत का केंद्रबिंदु बनाया है। सुश्री बनर्जी के सियासी करियर में यह पहला मौका है जब वह अपनी परंपरागत सीट को छोड़ने के साथ-साथ कोलकाता से बाहर चुनाव लड़ने जा रही हैं।
इससे पहले 1984 में कोलकाता से सटे जादवपुर संसदीय क्षेत्र से पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ी थीं और इसके बाद से दक्षिण कोलकाता क्षेत्र से लगातार चुनाव लड़ती रहीं। 2011 में सीएम बनीं तो भी दक्षिण कोलकाता के भवानीपुर विधानसभा क्षेत्र से ही मैदान में उतरीं और जीती। 2016 में भी इसी सीट से विधानसभा पहुंची थीं। इसी क्षेत्र में उनका आवास भी है। ममता ने नंदीग्राम से चुनाव लड़ने की घोषणा कर एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की है। एक तरफ उन्होंने जहां पूर्व मेदिनीपुर जिले के नंदीग्राम से मैदान में उतर कर जंगलमहल के पांच जिलों की 56 सीटों को साधने की कोशिश की है। वहीं नंदीग्राम आंदोलन के पोस्ट ब्वॉय कहे जाने वाले सुवेंदु अधिकारी और उनके परिवार का पूरे इलाके से प्रभाव को खत्म करना चाहती हैं। वहीं भाजपा के साथ-साथ बंगाल और देश के लोगों तक संदेश पहुंचाना चाहती है कि बंगाल में वह कहीं से भी मैदान में उतरक जीत सकती हैं।
सुवेंदु को भी ममता की चुनौती स्वीकार
उधर भाजपा में शामिल हो चुके सुवेंदु अधिकारी ने भी ममता की चुनौती को स्वीकार करते हुए पार्टी नेतृत्व के समक्ष नंदीग्राम से ही चुनाव लड़ने की बात कही है। यही नहीं उन्होंने तो इतना कह दिया है कि अगर ममता को 50 हजार वोट से नहीं हराया तो राजनीति छोड़ देंगे। नंदीग्राम से ममता और सुवेंदु अधिकारी दोनों का गहरा जुड़ाव है। अधिकारी का यह इलाका अपना है तो 2007 के नंदीग्राम हिंसा के बाद हुए किसान आंदोलन ने ममता को सत्ता तक पहुंचाने में बड़ी भूमिका निभाई।
कुछ और तो नहीं वजह
ममता भवानीपुर विधानसभा क्षेत्र से दो बार चुनाव लड़ चुकी हैं। 2011 के उप-चुनाव में यहां डाले गए कुल मतों का 77.6 फीसद ममता को मिले थे और वो 50 हजार से भी ज्यादा वोटों के अंतर से जीती थीं, लेकिन अगली बार 2016 के चुनाव में हिस्सेदारी काफी घट गई। पिछली बार उन्हें कुल पड़े मतों का सिर्फ 48 फीसद मिले। यानी, साफ है कि इस इलाके में ममता का जनाधार तेजी से खिसका है। इसकी एक वजह यह है कि ममता बनर्जी अक्सर बाहरी बनाम स्थानीय की बात करती हैं। इस कारण वहां गैर-बंगाली मतदाता उनसे दूर जाने लगे हैं। मजे की बात है कि इस इलाके में 70 फीसद से ज्यादा मतदाता गैर-बंगाली और खासकर गुजराती हैं और ममता अपने प्रचार अभियान में यह भी कह चुकी हैं कि बंगाल में गुजरात के लोग शासन नहीं करेंगे। इसी का नतीजा है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में इस विधानसभा क्षेत्र से तृणमूल कांग्रेस के कैंडिडेट को अपने प्रतिस्पर्धी उम्मीदवार के मुकाबले सिर्फ 3,000 ज्यादा वोट मिले। वहीं, बगल के रासबिहारी विधानसभा क्षेत्र से सिर्फ 5,000 वोटों से पार्टी आगे रही। माना जा रहा है कि भवानीपुर ममता की लोकप्रियता कहीं घट तो नहीं गई है।
इसीलिए नंदीग्राम
नंदीग्राम है जहां 2007-08 के आंदोलन में 14 ग्रामीणों की पुलिस फायरिंग में मौत हुई थी। तब ममता बनर्जी ने इंडोनेशिया के सैलेम ग्रुप की केमिकल हब के लिए वामपंथी सरकार की प्रस्तावित जमीन अधिग्रहण का जबर्दस्त विरोध किया था। इसी आंदोलन ने वर्ष 2011 में प्रदेश से 34 वर्ष के वामपंथी शासन को उखाड़ फेंककर ममता को सत्ता की कुर्सी दिलाई थी। अब जब उन्हें लग रहा है कि विभिन्न मुद्दों से नाराज होकर उनके वोटर भाजपा का रुख करने का मन बना चुके हैं तो ममता नंदीग्राम पहुंचकर लोगों के दिलों में 2007 के आंदोलन की याद ताजा करना चाहती हैं। ममता ने नंदीग्राम आंदोलन में मारे गए लोगों के परिवारों के लिए पहली बार आर्थिक मदद करने का एलान किया। उन्होंने 10 परिवारों को 4-4 लाख रुपये की नकद राशि और हरेक आंदोलनकारी के लिए 1,000 रुपये मासिक पेंशन देने की घोषणा की। मुख्यमंत्री सिंगुर में टाटा की नैनो कार की फैक्ट्री के लिए प्रस्तावित जमीन अधिग्रहण के खिलाफ हुए आंदोलन में शामिल लोगों के लिए पहले ही घोषणा कर चुकी थीं। वैसे भी नंदीग्राम में 30 फीसद मतदाता अल्पसंख्यक समुदाय के हैं जिनके तुष्टीकरण का आरोप अक्सर भाजपा ममता पर लगाती रहती है।
नंदीग्राम के चुनाव नतीजे
साल 2016 में इस सीट से तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर सुवेंदु अधिकारी विजयी हुए। इस सीट पर उन्हें 66.79 फीसद से ज्यादा वोट मिले। उन्होंने भाकपा के उम्मीदवार अब्दुल कबीर शेख को हराया था। शेख को 26 फीसद वोट मिले थे। इस सीट पर भाजपा के बिजन कुमार दास तीसरे स्थान पर रहे थे। दास को 5.32 प्रतिशत वोट मिले।
2011 में नंदीग्राम सीट से फिरोजा बीबी तृणमूल के टिकट पर विजयी हुई हैं। उन्हें 61.21 फीसद वोट मिले। इस चुनाव में उन्होंने भाकपा के परमानंद भारती को हराया था। भारती को 35.35 फीसद वोट मिले। इस चुनाव में भाजपा के बिजन कुमार दास को 1.72 फीसद वोट मिला।
2006 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर भाकपा के इलियास मोहम्मद विजयी हुए। उन्हें 69,376 वोट मिले। इलियास ने तृणमूल के एसके सुफियान को हराया था। उन्हें 64,553 वोट मिले। जबकि कांग्रेस के अनवर अली को 4943 वोट हासिल हुए।