लिपुलेख-कालापानी व‍िवाद: जानें, भारत के खिलाफ क्‍यों उबल रहा है नेपाल

लिपुलेख-कालापानी व‍िवाद: जानें, भारत के खिलाफ क्‍यों उबल रहा है नेपाल

 

  • रोटी-बेटी के साथ वाले पड़ोसी देश नेपाल में अचानक से भारत विरोध की आंच तेज हो गई है
  • लिंपियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी को लेकर दोनों देशों के बीच विवाद गहराता जा रहा है
  • नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने मंगलवार को भारत पर ‘सिंहमेव जयते’ का तंज कसा
  • यही नहीं नेपाल अब इन भारतीय इलाकों में अपनी हथियार बंद उपस्थिति भी बढ़ा रहा है

काठमांडू
‘रोटी-बेटी’ के साथ वाले नेपाल में अचानक से भारत विरोध की आंच तेज हो गई है। लिंपियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी को लेकर दोनों देशों के बीच विवाद और गहराता जा रहा है। नेपाल का नया नक्‍शा जारी करने के ऐलान के बाद नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भारत पर ‘सिंहमेव जयते’ का तंज कसा। यही नहीं नेपाल इन भारतीय इलाकों में अपनी हथियार बंद उपस्थिति भी बढ़ा रहा है। आइए जानते हैं कि आखिर ऐसे क्‍या कारण हैं ज‍िससे नेपाल में भारत के खिलाफ गुस्‍सा बढ़ रहा है…..

अंग्रेजों का गुस्‍सा भारत पर निकाल रहे नेपाली
भारत और नेपाल के वर्तमान विवाद की शुरुआत 1816 में हुई थी। तब ब्रिटिश हुकुमत के हाथों नेपाल के राजा कई इलाके हार गए थे। इसके बाद सुगौली की संधि हुई जिसमें उन्‍हें सिक्किम, नैनीताल, दार्जिलिंग, लिपुलेख, कालापानी को भारत को देना पड़ा था। हालांकि अंग्रेजों ने बाद में कुछ ह‍िस्‍सा लौटा द‍िया। यही नहीं तराई का इलाका भी अंग्रेजों ने नेपाल से छीन ल‍िया था लेकिन भारत के वर्ष 1857 में स्‍वतंत्रता संग्राम में नेपाल के राजा ने अंग्रेजों का साथ दिया था। अंग्रेजों ने उन्‍हें इसका इनाम दिया और पूरा तराई का इलाका नेपाल को दे द‍िया।

तराई के इलाके में भारतीय मूल के लोग रहते थे लेकिन अंग्रेजों ने जनसंख्‍या के विपरीत पूरा इलाका नेपाल को दे द‍िया। नेपाल मामलों पर नजर रखने वाले एक वरिष्‍ठ अधिकारी ने बताया कि वर्ष 1816 के जंग में हार की कसक नेपाल के गोरखा समुदाय में आज भी बना हुआ है। इसी का फायदा वहां के राजनीतिक दल उठा रहे हैं। उन्‍होंने बताया कि दोनों देशों के बीच जारी इस विवाद में एक दिक्‍कत यह भी है कि नेपाल कह रहा है कि सुगौली की संधि के दस्‍तावेज गायब हो गए हैं।

भारत की ओर से नाकाबंदी, मधेसियों के साथ ‘भेदभाव’
वर्ष 2015 में नेपाल के संविधान में बदलाव करने पर भारत और नेपाल के बीच रिश्‍ते और ज्‍यादा तल्‍ख हो गए। भारत की तरफ़ से अघोषित नाकाबंदी की गई थी और इस वजह से नेपाल में कई जरूरी सामानों की भारी किल्लत हो गई। इसके बाद से दोनों देशों के बीच संबंधों में पुराना भरोसा नहीं लौट पाया। भारत नेपाल के नए संविधान से संतुष्ट नहीं था। ऐसे आरोप लगे कि नेपाल ने मधेसियों के साथ नए संविधान में भेदभाव किया। नेपाल में मधेसी भारतीय मूल के लोग हैं और इनकी जड़ें बिहार और यूपी से जुड़ी हुई हैं।

मधेसियों और भारत के लोगों में रोटी-बेटी का साथ है। भारत के नाकेबंदी के बाद भी नेपाल ने अपने संविधान में कोई बदलाव नहीं किया और नाकाबंदी बिना किसी सफलता के खत्‍म करनी पड़ी। भारतीय अधिकारी ने बताया कि नेपाल में मधेसियों के साथ भेदभाव के आरोप में काफी हद तक सच्‍चाई है। नेपाल में सरकारी नौकरियों में पहाड़‍ी समुदाय का कब्‍जा है। मधेसियों को पहाड़ी लोग घृणा की दृष्टि से देखते हैं। नेपाल में मधेसियों को ‘धोती’ कहकर च‍िढ़ाया जाता है। पहाड़ी ये समझते हैं कि मधेसी लोग नेपाल के प्रति नहीं बल्कि भारत के प्रति अपनी न‍िष्‍ठा रखते हैं।

नेपाल में सत्‍ता में वामपंथी, चीन से बढ़ाई नजदीकी
नेपाल में इन दिनों राजनीति में वामपंथियों का दबदबा है। वर्तमान प्रधानमंत्री केपी शर्मा भी वामपंथी हैं और नेपाल में संविधान को अपनाए जाने के बाद वर्ष 2015 में पहले प्रधानमंत्री बने थे। उन्‍हें नेपाल के वामपंथी दलों का समर्थन हासिल था। केपी शर्मा अपनी भारत विरोधी भावनाओं के लिए जाने जाते हैं। वर्ष 2015 में भारत के नाकेबंदी के बाद भी उन्‍होंने नेपाली संविधान में बदलाव नहीं किया और भारत के खिलाफ जवाबी कार्रवाई के लिए केपी शर्मा चीन की गोद में चले गए। नेपाल सरकार चीन के साथ एक डील कर ली। इसके तहत चीन ने अपने पोर्ट को इस्तेमाल करने की इजाज़त नेपाल को दे दी।

दरअसल, नेपाल एक जमीन से घिरा देश है और उसे लगा कि चीन की गोद में जाकर भारत की नाकेबंदी का तोड़ न‍िकाला जा सकता है। चीन ने थिंयान्जिन, शेंज़ेन, लिआनीयुगैंग और श्यांजियांग पोर्ट के इस्तेमाल की अनुमति दी है। आलम यह है कि अब नेपाल चीन के महत्‍वाकांक्षी बीआरआई प्रोग्राम में भी शाम‍िल हो गया। चीन नेपाल तक रेलवे लाइन बिछा रहा है। चीन बड़े पैमाने पर नेपाल में निवेश कर रहा है। ताजा विवाद के पीछे भी चीन पर आरोप लग रहा है। सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने संकेत दिए थे नेपाल के लिपुलेख मिद्दा उठाने के पीछे कोई विदेशी ताकत हो सकती है।

भारतीय सेना प्रमुख का चीन की ओर इशारा
जनरल नरवणे ने कहा था, ‘मुझे नहीं पता कि असल में वे किस लिए गुस्‍सा कर रहे हैं। पहले तो कभी प्रॉब्‍लम नहीं हुई, किसी और के इशारे पर ये मुद्दे उठा रहे हों, यह एक संभावना है।’ चीन का नाम भले ना लिया गया हो मगर नेपाल में उसका दखल किसी से छिपा नहीं है। नेपाल के राजदूत ने भी कहा कि काली नदी के ईस्ट साइड का एरिया उनका है इसे लेकर कोई विवाद नहीं है। आर्मी चीफ ने कहा था कि जो रोड बनी है वह नदी के पश्चिम की तरफ बनी है। तो मुझे नहीं पता कि वह असल में किस चीज को लेकर विरोध कर रहे हैं। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, ‘कालापानी का मुद्दा भारत और नेपाल का द्विपक्षीय मुद्दा है। हमें उम्मीद है कि यह विवाद दोनों देश आपसी बातचीत के ज़रिए सुलझा लेंगे और कोई भी पक्ष एकतरफ़ा कार्रवाई करने से बचेगा ताकि मामला और जटिल ना हो।’

समझिए, क्या है कालापानी विवाद जिसकी अहमियत भारत के लिए डोकलाम जैसी है लेकिन नेपाल उसे अपना इलाका बताता है...

समझिए, क्या है कालापानी विवाद जिसकी अहमियत भारत के लिए डोकलाम जैसी है लेकिन नेपाल उसे अपना इलाका बताता है…Kalapani Dispute: भारत और नेपाल के बीच ‘कालापानी बॉर्डर’ का मुद्दा एक बार फिर से सुर्खियों में है। नेपाल इस मुद्दे पर भारत से बात करना चाहता है। नेपाल का कहना है कि आपसी रिश्तों में दरार पड़ने से रोकने के लिए कालापानी मुद्दे को सुलझाना अब बहुत जरूरी है। सवाल है कि जिस मसले को लेकर दोनों देशों के बीच कभी कोई तनाव के हालात नहीं बने, उसे लेकर अब ऐसी बैचैनी क्यों है? खास तौर पर नेपाल की ओर की। क्या है कालापानी का ये पूरा मसला और नेपाल में क्यों ये बन गया है 

माओवादियों ने भारत का विरोध कर जीता चुनाव
भारतीय अधिकारी ने बताया कि नेपाल की सियासत पर इन दिनों माओवादी दलों का कब्‍जा है। वहां पुरानी पार्टी नेपाली कांग्रेस नेपथ्‍य में चली गई है और वाम दल पहाड़ी लोगों में भारत के खिलाफ दुष्‍प्रचार करने में लगे हुए हैं। पीएम केपी शर्मा ओली ने भी पिछले चुनाव में भारत के खिलाफ जमकर बयानबाजी की थी। उन्‍होंने भारत का डर दिखाकर पहाड़‍ियों और अल्‍पसंख्‍यकों को एकजुट किया और सत्‍ता हास‍िल कर ली। मंगलवार को केपी शर्मा ओली ने संसद में भारतीय सेना प्रमुख पर भी निशाना था। ओली ने कहा कि कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख हमारा है और हम उसे वापस लेकर रहेंगे।

भारत के व‍िरोध में आईं मनीषा कोइराला
ओली ने आरोप लगाया कि भारत ने अपनी सेना इन जगहों पर रखकर उसे व‍िवादित इलाका बना दिया। उन्‍होंने कहा, ‘वर्ष 1960 के दशक में भारत के सेना तैनात करने के बाद वहां पर नेपाली लोगों का जाना रोक दिया गया।’ नेपाल में भारत के विरोध का आलम यह है कि भारत में रहने वाली अभिनेत्री मनीषा कोइराला ने भारत के खिलाफ बयान दिया है। मनीषा कोइराला नेपाल के कोइराला परिवार से आती हैं जो लंबे समय तक नेपाल में सत्‍ता में रहा है। नेपाली पीएम केपी ओली ने मंगलवार को संसद में यह भी दावा किया कि, ‘हमारी सरकार के प्रतिनिधि चीन से बात कर रहे हैं। चीन ने कहा है कि लिपुलेख से मानसरोवर तक की सड़क भारत-चीन के बीच ट्रेड और पर्यटन के लिए है और इससे लिपुलेख के ट्राई-जंक्शन स्थिति में कोई बदलाव नहीं आएगा।’