महाकुंभ नगर। महाकुंभ मेले में आस्था का सागर उमड़ पड़ा है। गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के पवित्र संगम पर जहां एक ओर श्रद्धालु अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए डुबकी लगा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर अलग-अलग स्वरूप और नामधारी संतों की अलौकिक उपस्थिति और उनकी अनूठी साधनाएं मेले को खास बना रही हैं। तंबुओं की नगरी, जो अपनी भव्यता और आध्यात्मिकता से मंत्रमुग्ध कर रही है, इन दिनों विभिन्न संतों के विशेष स्वरूपों और साधनाओं से गूंज रही है। 45 किलो वजनी रुद्राक्ष की माला सिर पर धारण करने वाले रुद्राक्ष बाबा… पर्यावरण का संदेश दे रहे इनवायरमेंट बाबा… और 12 वर्ष से अन्य त्यागने वाले निर्मल बाबा। श्रद्धालु इन संतों से मिलने और उनके आशीर्वाद से अपना जीवन धन्य करने के लिए उमड़ रहे हैं।
रुद्राक्ष मालाएं सिर पर धारण करते हैं गीतानंद
कोट का पुरा पंजाब से आये ‘सवा लाख रुद्राक्ष वाले’ के नाम से चर्चित श्रीमहंत गीतानंद गिरि ने अपने सिर पर रुद्राक्ष की मालाओं को धारण कर रखा है। 2019 के अर्धकुंभ में उन्होंने 12 साल तक सिर पर रुद्राक्ष धारण का संकल्प ले लिया था। जैसे-जैसे भक्तों से रुद्राक्ष की माला मिलती गई, गीतानंद उसे सिर पर धारण करने लगे। लक्ष्य था कि सवा लाख रुद्राक्ष पहन लेंगे, वर्तमान में संख्या सवा दो लाख पहुंच चुकी है, जिनका वजन करीब 45 किलो हो गया है। बताया कि प्रत्येक दिन 12 घंटे तक इसे सिर पर पहने ही रहते हैं, उद्देश्य सनातन धर्म की मजबूती से रक्षा और जनकल्याण का है।
निर्मल गिरी ने किया 12 वर्ष से अन्न का त्याग
तपोनीधि पंचायती आनंद अखाड़ा के महंत बाबा निर्मल गिरी, जिनकी कठोर साधना और तप ने सभी का ध्यान खींचा है। 12 वर्षों से अन्न का त्याग कर रखा है और केवल फलाहार के सहारे अपनी जीवनयात्रा चला रहे हैं। उनका कहना है कि यह त्याग उन्होंने भारत को सनातन राष्ट्र बनाने के अपने संकल्प के तहत किया है। 10 वर्ष की उम्र में उन्होंने संन्यास की दीक्षा ली थी। वह बताते हैं कि गुरुजी ने मां से मुझे भिक्षा में मांगा था। 10 वर्ष की उम्र से ही वह साधना में लीन हैं और 35 वर्षीय बाबा निर्मल गिरी इसे शिव को प्रसन्न करने की हठ योग साधना बताते हैं।
महाकुंभ में बाटेंगे 51 हजार पौधे
आवाहन अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अरुण गिरि की ख्याति एनवायरनमेंट बाबा के रूप में है। 15 अगस्त 2016 को मां वैष्णो देवी मंदिर से कन्याकुमारी तक पदयात्रा निकालकर 27 लाख पौधों का वितरण करने के साथ उसे लगवाया भी था। अब तक एक करोड़ के लगभग पौधों का वितरण कर चुके हैं। महाकुंभ में 51 हजार पौधा वितरित करने का लक्ष्य है।कहते हैं पर्यावरण बचेगा तभी धरती पर जीवन रहेगा। इनका स्वर्ण प्रेम भी खास पहचान है। अपने शरीर पर सोने से जड़े हुए आभूषण पहनते हैं। इनमें सोने की माला, अंगूठी और हीरे से जड़ी घड़ी उनकी शोभा बढ़ाती है। चांदी का एक धर्म दंड हर समय हाथ में रखते हैं। कलाई में सोने के कई कड़े और बाजूबंद पहनते हैं। स्फटिक और क्रिस्टल की कीमती मलाई धारण करने से उनकी अद्भुत छवि बनती है।
इंजीनियरिंग बाबा अभय सिंह
महाकुंभ के पवित्र माहौल में एक खास चेहरा हर किसी का ध्यान खींच रहा है। यह चेहरा है इंजीनियरिंग बाबा के नाम से विख्यात हो रहे जूना अखाड़ा के युवा संन्यासी का, जो आईआईटी बॉम्बे से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में बीटेक करने के बाद जीवन के अंतिम सत्य की खोज में संन्यास का मार्ग चुन लिया।इंजीनियर बाबा, जिनका असली नाम अभय सिंह है। साधारण वेशभूषा और गहन चिंतनशील व्यक्तित्व के कारण विशेष आकर्षण बने हुए हैं। उनकी बातों में विज्ञान और आध्यात्म का अनोखा संगम देखने को मिलता है। वह कहते हैं, ”विज्ञान सत्य तक पहुंचने का माध्यम हो सकता है, लेकिन अंतिम सत्य आत्मज्ञान से ही प्राप्त होता है।” हरियाणा से निकलकर आईआईटी मुंबई में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग तक पहुंचने और फिर जीवन के अंतिम सत्य की खोज में संन्यास का रास्ता चुनने तक की उनकी कहानी लोगों को सोचने पर विवश करती है।