नई दिल्ली। संयुक्त किसान मोर्चे में शामिल ज्यादातर संगठनों के नेता अब आंदोलन को और आगे बढ़ाने पर एक राय नहीं हैं। इन नेताओं का मानना है कि भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष नरेश टिकैत ने जो लाइन दी है, वह सबसे उपयुक्त है। नरेश टिकैत ने शुक्रवार को कहा था कि सरकार मांगें पूरी कर दे तो किसान सम्मानपूर्वक घर चले जाएं। टिकैत ने यह भी कहा कि किसानों का उद्देश्य सरकार को नीचा दिखाना नहीं है।

संयुक्त किसान मोर्चे के नौ में से चार नेताओं को छोड़ दें तो पांच यह चाहते हैं कि मोदी सरकार द्वारा तीन कृषि कानून वापस लिया जाना ही किसानों की सबसे बड़ी जीत है। यदि इस आंदोलन का स्वरूप बड़ा किया गया तो आने वाले समय में किसान आंदोलन को सामाजिक मान्यता नहीं मिलेगी। इसके अलावा पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव तक यदि आंदोलन खिंच गया तो निश्चित तौर पर आंदोलन पर राजनीतिक छाया पड़ जाएगी। इसका एक कारण ये नेता यह भी बता रहे हैं कि हरियाणा के किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी पंजाब में अपनी पार्टी बनाकर चुनाव लड़ने का आधार बना रहे हैं।

चढूनी का गुस्सा पंजाब के किसान नेताओं को लेकर भी है। ऐसे कुछ कारणों के अलावा मोर्चे की बार-बार बैठक और इसमें लिए जा रहे एकतरफा निर्णयों से भी आम किसान नाराज हैं। इसका फीडबैक भी किसान संगठनों के नेताओं के पास है। इसलिए अब आंदोलन को आगे बढ़ाने के बजाय किसान संगठन चाहते हैं कि उनकी दिल्ली बार्डर से सम्मानपूर्वक विदाई हो जाए।