Bihar Chunav 2020: ड्राई स्टेट के चुनावी भाषण में शराब ही शराब, उम्मीदों से लबालब भर रहे हैं शौकीन

Bihar Chunav 2020: ड्राई स्टेट के चुनावी भाषण में शराब ही शराब, उम्मीदों से लबालब भर रहे हैं शौकीन

पटना ।  बिहार में शराबबंदी है। कानून कहता है-शराब का उपयोग, उत्पादन, वितरण और परिवहन करते कोई पकड़ा गया तो उसे तुरंत जेल भेज दिया जाएगा। गनीमत है कि यह कानून शराब की चर्चा को संज्ञेय अपराध नहीं मानता है। अगर मानता तो चुनावी मंच पर ही ढेर सारे नेता धर लिए जाते। विकास, कोरोना, अपराध, रोजगार जैसे मुददों की लगभग बराबरी में ही शराब की ही चर्चा होती है। शराबबंदी कानून को खत्म करने की बात कोई नहीं करता है। कानून की समीक्षा की बात जरूर होती है। खास बात यह है कि भाजपा के नेता बहुत की मामूली मात्रा में शराब की चर्चा करते हैं। इसलिए भी कि इस कानून को बनाने में भाजपा की कोई भूमिका नहीं रही है। कानून बनते समय वह विपक्ष में थी।

क्या है पृष्ठभूमि

2015 के विधानसभा चुनाव में राजद, जदयू और कांग्रेस साथ थे। चुनावी सभाओं में तीनों दलों की ओर से शराबबंदी का वादा किया गया। अप्रैल 2016 में जब राज्य में शराबबंदी का कानून बना। लागू हुआ। उस समय इन तीनों दलों की सरकार थी। किसी ने इसका विरोध नहीं किया। पांच साल बाद उस समय की सरकार में शामिल राजद और कांग्रेस इस कानून पर सवाल उठा रही है। कांग्रेस ने कहा है कि उसकी सरकार कानून की समीक्षा करेगी। शराब के प्रेमी इसका मतलब निकाल रहे हैं-पार्टी हम लोगों के बारे में पॉजिटिव सोच रख रही है। सत्ता में आएगी तो कुछ न कुछ जरूर करेगी

क्या कहते हैं तेजस्वी

विपक्ष की ओर से मुख्यमंत्री पद के लिए प्रस्तावित तेजस्वी यादव अपनी सभाओं में शराबबंदी की चर्चा जरूर करते हैं। वह इसकी समीक्षा का वादा नहीं करते हैं। बताते हैं कि इस कानून के चलते माफियाओं की बन आई है। शराब की होम डिलीवरी हो रही है। बेरोजगार नौजवान तस्करी करने लगे हैं। पुलिस और सरकार के दूसरे अधिकारी रुपया कमा रहे हैं। तेजस्वी के भाषण में कहीं से शराबबंदी खत्म करने का आश्वासन नहीं रहता है। लेकिन, समर्थक उम्मीदों से भरे हुए हैं। उन्हें उम्मीद है कि राज आने पर महंगी ही सही, मिलेगी जरूर। शराबबंदी के कारण राज्य में नकली शराब की खपत बढ़ी है। बोतलों के अलावा पाउच में भी तस्कर इसे उपलब्ध कराते हैं।

मांझी भी हैं विरोधी

पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी शराबबंदी कानून बनने के समय से ही इसका विरोध कर रहे हैं। उन दिनों वे कहते थे…दिन भर काम से थके लोग अगर रात में एकाध पेग ले लेते हैं तो अच्छी नींद आती है। अब वे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ हैं। सहयोगी के नाते कानून का समर्थन करते हैं। उनके क्षेत्र इमामगंज में 28 अक्टूबर को मतदान समाप्त हो गया। मांझी फिर से समीक्षा की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि कानून के दायरे में समाज के कमजोर लोग ही आए हैं। उन्हें जेल में रखा गया है। तीन वाम पार्टियां भाकपा, माकपा और भाकपा माले महागठबंधन के साथ 29 सीटों पर चुनाव लड़ रही हैं। वाम दल के नेता अपने भाषण में शराब की चर्चा जरूर करते हैं। उनकी नजर में शराबबंदी के कानून का प्रयोग गरीबों के विरोध में किया जाता है। इसके अलावा वे शराब की तस्करी का सवाल भी उठाते हैं।

कारोबारियों से नहीं रहा परहेज

शराब से जुड़ा यह दिलचस्प पहलू है कि वाम दलों को छोड़ दें तो किसी भी राजनीतिक दल को शराब के उत्पादकों या कारोबारियों को टिकट देने में कभी परहेज नहीं रहा है। सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के कुछ सांसद मूल रूप से शराब के ही कारोबारी थे। राजद ने इसका उत्पादन और कारोबार करने वाले दो शख्स को विधान परिषद चुनाव में उम्मीदवार बनाया था। उनमें से एक की जीत हुई।  भाजपा और जदयू के कई प्रतिनिधि अतीत में शराब के कारोबार से जुड़े रहे हैं। भाजपा के एक विधान परिषद सदस्य शराबबंदी से पहले इसी कारोबार से जुड़े थे।


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