प्रयागराज । इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सरकार के अधिकारियों द्वारा अदालत से पारित अंतरिम आदेशों का अनुपालन करने के बजाए स्थगन आदेश समाप्त करने के प्रार्थनापत्र दाखिल करने और उसके सहारे आदेश का पालन नहीं करने पर नाराजगी व्यक्त की है। अदालत ने कहा कि सिर्फ स्थगन आदेश समाप्त करने की अर्जी दाखिल करने से अदालत के आदेश का अनुपालन नहीं करने का अधिकार विभाग/अधिकारियों को नहीं मिल जाता है।

कोर्ट ने अवमानना याचिका पर दिया आदेश

अदालत ने कहा कि इस अदालत में हाई कोर्ट में सर्विस संबंधी मामलों को लेकर हजारों अवमानना याचिकाएं लंबित हैं। उन पर स्थगन आदेश समाप्त करने की अर्जियां भी लंबित हैं। स्थाई अधिवक्ता कभी इन अर्जियों पर जल्दी सुनवाई के लिए प्रयास नहीं करते हैं। यह आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने मल्टीपर्पज स्वास्थ्य कर्मियों अंकित पाठक व 139 अन्य की ओर से दाखिल अवमानना याचिका पर दिया।

कोर्ट ने प्रमुख सचिव स्‍वास्‍थ्‍य व परिवार कल्‍याण से व्‍यक्तिगत हलफनामा मांगा

कोर्ट ने प्रमुख सचिव स्वस्थ्य व परिवार कल्याण से व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने या स्वयं उपस्थित होने के लिए कहा है। अवमानना याचिका में आधार लिया गया कि हाई कोर्ट ने 16 अक्टूबर 2015 के अपने अंतरिम आदेश से याचीगण को सेवा में बनाए रखने और उनको वेतन आदि भुगतान का आदेश दिया था। छह साल बाद भी इस आदेश का पालन नहीं किया गया। अवमानना याचिका दाखिल होने के बाद सरकार की ओर से आदेश के खिलाफ विशेष अपील दाखिल की गई जिस पर अदालत ने सुनवाई से इन्कार करते हुए एकल पीठ के पास वापस भेज दिया है।

अदालत ने कहा- प्रमुख सचिव बताएं कि आदेश का पालन क्‍यों नहीं हुआ

सरकारी वकील ने बताया कि इस मामले में एकलपीठ के समक्ष स्थगन आदेश समाप्त करने की अर्जी दाखिल की गई है, इसलिए अवमानना याचिका पोषणीय नहीं है। इस पर अदालत ने कहा कि सिर्फ अर्जी दाखिल करने से आदेश मानने का अधिकार नहीं मिल जाता है। स्थाई अधिवक्ता ने अर्जी की जल्दी सुनवाई के लिए कभी कोई प्रयास नहीं किया। अदालत ने प्रमुख सचिव से यह स्पष्ट करने को कहा है कि अब तक आदेश का पालन क्यों नहीं किया गया।