चरण सिंह की जयंती पर किसानों के लिए संघर्ष, एक तीर से दो निशाने साधेंगे अखिलेश

नई दिल्ली : नए कृषि कानूनों को लेकर किसान आंदोलन बढ़ता ही जा रहा है. किसान संगठन तीनों कृषि कानून वापस लेने की मांग पर अड़े हैं. ऐसे में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव अपनी सियासी जमीन मजबूत करने के लिए किसानों के मुद्दे पर बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं. पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की 118वीं जयंती के मौके पर बुधवार को सपा ने किसानों के हक में आवाज बुलंद करने का फैसला किया है. सपा कार्यकर्ता यूपी भर में प्रदर्शन करेंगे, जिसे किसानों के साथ-साथ पश्चिम यूपी के राजनीतिक समीकरण साधने की रणनीति माना जा रहा है.
किसान दिवस
किसानों के मसीहा माने जाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की बुधवार को जयंती है, जिसे किसान दिवस के रूप में मनाया जाता है. चौधरी चरण सिंह के जरिए सपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां अपने-अपने सियासी समीकरण साधने की कवायद में हैं. समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता कृषि कानूनों के खिलाफ सूबे के गांवों में प्रदर्शन करेंगे. सपा की जिला और महानगर इकाइयां यात्रा कर किसानों को मौजूदा कृषि कानून की खामियों के बारे में बताएगी. वहीं, कांग्रेस ने भी किसानों के मुद्दे पर बुधवार को बीजेपी सांसदों और विधायकों का घेराव करने का फैसला किया है.
किसानों की सबसे ज्यादा नाराजगी भले ही हरियाणा और पंजाब में देखने को मिल रही है, लेकिन यूपी के किसानों में भी गुस्सा कम नहीं है. पश्चिमी यूपी के किसानों ने दिल्ली बॉर्डर को पिछले करीब एक महीने सील कर रखा है. इस कड़ाके की ठंड में किसान लगातार आंदोलन कर रहे हैं. ऐसे में यूपी का मुख्य विपक्षी दल सपा किसान आंदोलन में पक्ष में खुलकर खड़ा है और किसानों के प्रदर्शन को खाद पानी भी देने का काम कर रहा है.
किसान आंदोलन के बहाने किसानों की नाराजगी का सपा सियासी फायदा उठाने की तैयारी में है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव भी किसानों के मुद्दे पर लगातार बीजेपी सरकार पर निशाना साध रहे हैं. सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी कहते हैं कि चौधरी चरण सिंह ने गांव और किसानों पर काम करने के लिए उनको काफी अधिकार दिया. चौधरी साहब ने ही मंडी कानून बनाने की पहल की थी, लेकिन मोदी सरकार कृषि कानून लाकर उसे ही खत्म कर रही. ऐसे में सपा किसान दिवस के मौके पर किसानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी होना चाहती है. सपा नए कृषि कानूनों के खिलाफ शुरू से हैं और लगातार यही मांग कर रही है कि इसे खत्म किया जाए.
सपा के लिए किसान क्यों अहम
उत्तर प्रदेश में किसान किंगमेकर की भूमिका में हैं, सूबे की 300 विधानसभा सीटें ग्रामीण इलाके की हैं. खासकर पश्चिम यूपी में तो किसान राजनीति की दशा और दिशा तय करते हैं. वरिष्ठ पत्रकार अरविंद सिंह कहते हैं कि सपा का राजनीतिक आधार किसान और पशुपालक ही रहा है. हाल के दिनों में जिस तरह से बीजेपी ध्रुवीकरण के जरिए ग्रामीण इलाके में अपना राजनीतिक आधार बनाने में कामयाब हुई है और उपचुनाव में कांग्रेस जिस तरह से दो सीटों पर दूसरे नंबर पर रही है, उससे सपा के लिए चुनौती खड़ी हो गई है. ऐसे में किसान आंदोलन के पक्ष में सपा का खड़ा होना एक मजबूरी बन गई है.
अरविंद सिंह कहते हैं कि यूपी में किसान सियासी तौर पर अहम भूमिका अदा करते हैं. है. सूबे के पश्चिम यूपी में किसानों के अंदर गुस्सा बढ़ रहा है. 2022 के विधानसभा चुनाव में अब वक्त ज्यादा नहीं रह गया है, जिसके चलते बीजेपी किसान सम्मेलन के जरिए उन्हें समझाने में जुटी है. वहीं, सपा किसानों के बीच अपनी पैठ बनाने की कवायद में है. ऐसे में सपा ने पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण की जयंती पर सड़कों पर किसानों के समर्थन में उतरकर बड़ा सियासी संदेश देने की रणनीति अपनाई है. वह मानते हैं कि सपा किसानों के साथ-साथ पश्चिम यूपी की राजनीति और जातीय समीकरण को भी अपने पक्ष में करना चाहती है.
अखिलेश सड़क पर सक्रिय
अखिलेश यादव पहली बार सड़क पर नहीं आए हैं बल्कि सड़क के जरिए ही उन्होंने यूपी की राजनीति को सीखा है. 2012 से पहले अखिलेश यादव ने एसपी के नौजवानों की बागडोर संभाली थी. अपनी साइकिल यात्राओं के जरिए उन्होंने पूरे प्रदेश में दौरे किए. साइकिल पर निकलते नौजवानों के झुंड अखिलेश यादव के नेतृत्व कौशल और उनकी संघर्षशीलता को दर्शाते थे जबकि मुलायम सिंह यादव किसानों की समस्याओं को जोर-शोर से उठाया करते थे. किसानों के मुद्दों पर उनकी गहरी पकड़ रही है. इसका कारण उनकी ग्रामीण पृष्ठभूमि है और किसान परिवार से निकलकर उन्होंने मुख्यमंत्री और देश के रक्षा मंत्री की जिम्मेदारी संभाली है, जो अखिलेश यादव को विरासत में मिली है.
एसपी को सफलता मिलेगी?
किसान और नौजवान आरंभ से ही समाजवादी पार्टी की ताकत माने जाते रहे हैं. समाजवादी पार्टी को किसानों और नौजवानों के मुद्दे पर सीधे जूझने वाली पार्टी माना जाता है. अब सवाल यह है कि अखिलेश यादव के सड़क पर संघर्ष करने से आई ऊर्जा से क्या एसपी को चुनावी सफलता मिलेगी?
दरअसल, कृषि प्रधान उत्तर प्रदेश में लगभग 70 प्रतिशत वोटर किसान, मजदूर वर्ग से ही है. पश्चिम यूपी की राजनीति किसानों के इर्द-गिर्द सिमटी रही है, जहां बीजेपी और बसपा जैसी पार्टियों के साथ-साथ आरएलडी का मजबूत जनाधार रहा है. इस इलाके में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी होने के बाद भी सपा दूसरी पार्टियों की तुलना में ज्यादा मजबूत नहीं रही है.
चौधरी चरण सिंह सपा के लिए अहम
हालांकि, जाट और गुर्जर समीकरण के जरिए जरूर सपा और आरएलडी अपना सियासी किला मजबूत करने की कोशिश करती रही, लेकिन मुजफ्फरनगर दंगे के बाद से सपा और आरएलडी दोनों की राजनीति पश्चिम यूपी से खत्म हो गई हैं. ऐसे में दोनों ही पार्टियां के बीच नजदीकियां बढ़ी हैं. सपा प्रमुख अखिलेश यादव कह चुके हैं कि वो इस बार के चुनाव में बड़ी पार्टियों के बजाय छोटे दलों के साथ गठबंधन करेंगे.
हाल ही में हुए उपचुनाव में चौधरी अजित सिंह की पार्टी आरएलडी को सपा ने बुलंदशहर सीट पर समर्थन किया था. इसका यह संकेत हैं कि आगे भी वह अजित सिंह के साथ तालमेल कर सकते हैं. अजित सिंह पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह बेटे हैं और मौजूदा राजनीतिक माहौल में अपने सियासी वजूद के बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. ऐसे में सपा प्रमुख चरण सिंह की जयंती के जरिए जाट समुदाय के बीच अपनी जगह बनाना चाहते हैं.
बता दें कि पश्चिम यूपी की बड़ी किसान आबादी जाट समुदाय की है. चौधरी चरण सिंह खुद भी जाट समुदाय से आते थे और किसानों के मसीहा माने जाते थे. चौधरी चरण सिंह के बाद अस्सी व नब्बे के दशक में महेंद्र टिकैत ने किसानों की ऐसी ताकत खड़ी की, जिसके आगे बड़े नेताओं को झुकने के लिए मजबूर कर दिया था. टिकैत भी जाट समुदाय से आते हैं और भारतीय किसान यूनियन की कमान उन्हीं के बेटों के पास हैं और वो नए कृषि कानून के खिलाफ दिल्ली के यूपी बॉर्डर पर एक महीने से डेरा जमाए हैं, जो बीजेपी के लिए चिंता का सबब बन गया है. 2022 का चुनाव में अब ज्यादा वक्त बचा नहीं है और पंचायत चुनाव सिर पर हैं. ऐसे में सपा ने भी किसानों के मुद्द पर मोर्चा खोल रखा है