मेरठ-दिल्ली एक्सप्रेस-वे घोटाले में दो पूर्व डीएम के खिलाफ होगी कार्रवाई
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में संपन्न कैबिनेट बैठक में मेरठ-दिल्ली एक्सप्रेस-वे के लिए भूमि अधिग्रहण मामले में अनियिमतताओं के लिए जिम्मेदार दो तत्कालीन जिलाधिकारियों सहित अन्य जिम्मेदार अधिकारियों व कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई व धारा-3 डी की अधिसूचना जारी होने के बाद किए गए बैनामों को निरस्त करने की मंजूरी दे दी है।
तत्कालीन मंडलायुक्त की जांच रिपोर्ट में सीबीआई या अन्य किसी उच्चस्तरीय एजेंसी से जांच कराने की संस्तुति पर अभी कोई फैसला नहीं हुआ है। इस पर आगे विचार होगा।
राज्य सरकार के प्रवक्ता व ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा ने बताया कि दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे परियोजना के लिए गाजियाबाद के ग्राम डासना, रसूलपुर सिकरोड, कुशलिया तथा नाहल में अधिग्रहीत भूमि के संबंध में शिकायतें प्राप्त हुई थी। मेरठ के तत्कालीन मंडलायुक्त प्रभात कुमार से इसकी जांच कराई गई।
पड़ताल में पता चला कि एनएच एक्ट-1956 की धारा 3(ए) की अधिसूचनाआठ अगस्त 2011 व 3 (डी) की अधिसूचना 2012 में हुई। अवार्ड वर्ष 2013 में हुआ। अवार्ड के विरुद्ध भू-स्वामियों ने आर्बीट्रेशन (मध्यस्थता) वाद दाखिल किए। आर्बीट्रेटर द्वारा वर्ष 2016 व 2017 में आर्बीट्रेशन में आदेश पारित किए गए तथा नए भूमि अधिग्रहण अधिनियम-2013 के अनुसार प्रतिकर तय कर दिया गया।
मण्डलायुक्त मेरठ ने जांच में संस्तुति की कि एनएचएक्ट-1956 की धारा 3(डी) के बाद जमीन खरीदी गई। तत्कालीन जिलाधिकारी व आर्बीट्रेटर गाजियाबाद ने आर्बीट्रेशन वादों में नये भूमि अर्जन अधिनियम 2013 के अन्तर्गत प्रतिकर की दर को बढ़ा दिया गया। जिसके कारण प्रतिकर का वितरण नहीं हो पाया और वास्तविक कब्जा नहीं मिल पाया।
कब्जा न मिल पाने के कारण परियोजना का कार्य अवरुद्ध है। प्रभात ने इस निर्णय के पीछे भ्रष्टाचार मानते हुए मामले की जांच सीबीआई या उच्चस्तरीय एजेंसी से कराने की संस्तुति की थी। मंत्री ने बताया कि इस मामले में गाजियाबाद के तत्कालीन जिलाधिकारी विमल कुमार शर्मा व निधि केसरवानी व अन्य जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई की संस्तुति है।
कैबिनेट ने धारा-3 डी के अंतर्गत3 अधिसचना जारी होने केबाद किए गए बैनामों को निरस्त करने व इसमें संलिप्त जिलाधिकारियों के विरुद्ध जारी कार्रवाई जारी रखने का फैसला किया है। इसके अलावा नियम विरुद्ध प्रक्रिया में शामिल व जांच में दोषी पाए गए किसी अधिकारी या कर्मचारी के विरुद्ध यदि कार्रवाई नहीं की गई है तो अनुशासनिक कार्रवाई शुरू करने के निर्देश दिए गए हैं। सीबीआई या अन्य एजेंसी से जांच के संबंध में आगे विचार होगा।
निधि मूल काडर वापस, विमल हो गए रिटायर
गाजियाबाद की तत्कालीन डीएम निधि केसरवानी मणिपुर काडर की आईएएस अधिकारी हैं। वह प्रदेश में प्रतिनियुक्ति पूरी कर मूल काडर वापस हो चुकी हैं। दूसरे डीएम विमल कुमार शर्मा यूपी काडर के आईएएस अधिकारी थे। वह रिटायर हो चुके हैं। इस मामले में तत्कालीन एक एडीएम घनश्याम सिंह व अमीन को निलंबित कर दिया गया था। प्रभात ने मामले की एफआईआर कराने की भी संस्तुति की थी।
नए कानून से प्रतिकर तय करने से बढ़ गए 375 करोड़
प्रभात ने जांच के दायरे में आने वाले चार ग्रामों की अधिग्रहीत की गई भूमि (क्षेत्रफल 71.1495 हेक्टेयर) के बारे में रिपोर्ट दी कि मूल एवार्ड में सक्षम प्राधिकारी ने 111,94,26,638 रुपये की राशि तय की थी। लेकिन आर्बीट्रेशन वादों में निर्णय से 319,16,53,331 रुपये व लंबित आर्बीट्रेशन वादों में पूर्व में निर्णीत आर्बीट्रल दरों के अनुसार 167,81,81, 592 रुपये की धनराशि होती है। इस तरह कुल धनराशि 486,98,34,923 रुपये हो गई।
बताया जा रहा है इसमें 262 करोड़ रुपये मुआवजा बंट चुका है। 71 करोड़ बंटना बाकी है। इसके अलावा 164 करोड़ का मामला आर्बिटेशन में लंबित है। सरकार सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के पत्र और महाधिवक्ता की राय के अनुसार दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे परियोजना के अंतर्गत प्रकरण से संबंधित चारों ग्रामों के आर्बीट्रेशन अवार्ड के सापेक्ष प्रतिकर का वितरण पर विचार कर रही है।
पीएम की समीक्षा के बाद आई तेजी
बताया जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों देश की इन्फ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी परियोजनाओं की समीक्षा में इस एक्सप्रेस-वे की भी प्रगति की जानकारी ली थी। तब यह बात सामने आई थी कि इससे संबंधित मामले पर कार्रवाई लंबित होने की वजह से कार्य आगे नहीं बढ़ पा रहा है। प्रदेश सरकार की ओर से एक महीने में इस संबंध में आवश्यक कार्यवाही का आश्वासन दिया गया था। मंगलवार को प्रदेश कैबिनेट में इस प्रकरण में तत्कालीन मंडलायुक्त प्रभात कुमार की जांच रिपोर्ट कार्रवाई को मंजूरी दे दी गई।