नई दिल्‍ली। गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) के कांग्रेस छोड़ने और जम्‍मू-कश्‍मीर में सक्रिय होने के एलान के बाद केंद्र शासित प्रदेश में सियासी तपिश बढ़ने के आसार हैं। सियासी विश्‍लेषकों का कहना है कि 52 वर्षों तक कांग्रेस के साथ अडिग रहने वाले गुलाम नबी आजाद जम्मू-कश्मीर में पार्टी (Congress) के सामने गंभीर चुनौती बन गए हैं। जम्‍मू-कश्‍मीर में कांग्रेस के साथ अन्‍य दलों की चुनौतियां कैसे बढ़ रही हैं, पेश है जमीनी तस्‍वीर बयां करती एक रिपोर्ट…

माना जा रहा है कि गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) इस हफ्ते जम्‍मू-कश्‍मीर पहुंचकर नई पार्टी के गठन का एलान कर सकते हैं। मौजूदा परिदृश्‍य पर नजर डालें तो कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता आजाद के साथ आने को आतुर हैं। यही कारण है कि कई नेताओं ने कांग्रेस को अलविदा कह दिया है।

केंद्र शासित प्रदेश में कांग्रेस के भीतर जो उथल-पुथल मची हुई है, उससे नेशनल कांफ्रेंस (एनसी) और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के सियासी समीकरण भी प्रभावित हो सकते हैं। चिनाब घाटी जिलों डोडा, किश्तवाड़ और रामबन में मुस्लिम वोट एक निर्णायक फैक्‍टर है। वहीं गुलाम नबी आजाद का पुंछ, राजौरी, जम्मू, कठुआ, सांबा, उधमपुर और रियासी जिलों में काफी प्रभाव है।

सूबे की सियासत पर पैनी नजर रखने वाले बताते हैं कि जरूरी नहीं है कि इन सात जिलों में गुलाम नबी आजाद की पार्टी विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज कर ले, लेकिन दिलचस्‍पयह होगा कि इन जिलों में चुनाव कौन हारता है। जम्मू, कठुआ, सांबा, उधमपुर और रियासी में भाजपा की पैठ अच्छी है। इन जिलों में उसकी कट्टर प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के लिए कड़ी चुनौती होगी।

दिलचस्प बात यह है कि जम्मू संभाग में कांग्रेस को आम आदमी पार्टी (आप) से चुनावी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। आम आदमी पार्टी ने पंजाब में अपनी जीत के बाद धीरे-धीरे जम्मू, सांबा और कठुआ में अपना प्रभाव फैला लिया है। जहां तक इन जिलों में भाजपा के जमीनी समर्थन पर आप के प्रभाव का सवाल है तो इसकी संभावना बेहद कम है। भाजपा इन जिलों में आम आदमी पार्टी को जश्‍न मनाने का मौका नहीं देगी।

सियासी विश्‍लेषकों का कहना है कि कांग्रेस को होने वाला नुकसान भाजपा या आम आदमी पार्टी में से किसी को भी लाभ पहुंचा सकता है। यही नहीं इन सीटों पर आजाद अपने समर्थन के कारण पारंपरिक समीकरणों को बिगाड़ सकते हैं।

समाचार एजेंसी आइएएनएस की रिपोर्ट के मुताबिक डोडा, किश्तवाड़ और रामबन जिलों में आजाद की एंट्री बड़ा फैक्‍टर साबित होगी। इन तीनों जिलों में उनके जीतने की संभावना है। हालांकि उनकी पार्टी कितनी सीटें जीतेगी, इस पर बहस हो सकती है, लेकिन आजाद की मौजूदगी के कारण इन जिलों में एनसी और पीडीपी को नुकसान हो सकता है। पुंछ और राजौरी जिलों में यदि मुस्लिम वोट नेकां और आजाद के बीच विभाजित हो जाते हैं, तो भाजपा को खेलने का मौका मिल सकता है।