भारत के प्रति क्यों मेहरबान हुआ श्रीलंका, कोलंबो की मदद में मोदी सरकार की बड़ी दुविधा

कोलबो । श्रीलंका को लेकर एक बार फिर भारत उहापोह में है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) में श्रीलंका की मदद करें या यहां तमिल अल्पसंख्यकों की रक्षा के पक्ष में खड़ा हो। हाल में श्रीलंका ने भारत से खुलकर इस पर समर्थन मांगा है। इतना ही नहीं श्रीलंका ने चीन और पाकिस्तान के विपरीत जाकर उसने कोलंबो पोर्ट के वेस्टर्न कंटेनर टर्मिनल के विकास को ठेका भारत को दे दिया। ऐसे में भारत की कूटनीति की बड़ी परीक्षा होगी। आखिर श्रीलंका की मदद में भारत की क्या है बड़ी दुविधा ? यूएनएचआरसी में क्यों गरमाया है श्रीलंका का मुद्दा। चीन इस मामले में क्यों है मौन ?
जानें क्या श्रीलंका ने क्या कहा भारत से
- बता दें कि इस समय श्रीलंका संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के सत्र में उसके खिलाफ लाए जाने वाले प्रस्ताव से डरा हुआ है। इस प्रस्ताव में युद्ध अपराधों के लिए श्रीलंका की आलोचना की गई है। इतना ही नहीं अंतरराष्ट्रीय अदालत में घसीटने की धमकी दी गई है। इसके अलावा मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए कथित रूप से जिम्मेदार अफसरों के खिलाफ प्रतिबंध लगाने की बात कही गई है।
- इस महीने श्रीलंका परिषद के समक्ष द्वीप राष्ट्र से संबंधित अपनी नई जवाबदेही और सुलह प्रस्ताव रखेगा। श्रीलंका को उम्मीद है कि भारत दोनों मौकों पर उसका साथ दे। बता दें कि कुछ दिन पूर्व संयुक्त राष्ट्र ने अपनी एक रिपोर्ट में लिट्टे के साथ सशस्त्र संघर्ष के अंतिम चरण के दौरान मानवाधिकारों के कथित उल्लंघन के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कठोर कदमों का आह्वान किया था।
- अभी हाल में श्रीलंका के विदेश सचिव ने कहा था कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में मतदान के लिए रखे जाने वाले प्रस्ताव में भारत उसका साथ नहीं छोड़ सकता। उन्होंने भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर के वसुधैव कुटुंबकम का हवाला देते हुए कहा कि अगर विश्व एक परिवार है तो हम आपके सबसे निकट परिवार है। आपको हमारा साथ देना चाहिए।
- जयनाथ कोलंबेज ने कहा कि भारत अगर पड़ोसी देश को जेनेवा में समर्थन नहीं देता तो श्रीलंका बहुत असहज हो जाएगा। उन्होंने उम्मीद जताई कि मौजूदा परिषद के सदस्यों में शामिल भारत, पाकिस्तान, नेपाल और भूटान हमारा समर्थन करेंगे। उन्होंने कहा कि हमारे बीच कई समानताएं हैं। हम कोरोना वायरस से लड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि मानवाधिकारों उल्लंघन के आरोप झेल रहे हैं।
- कोलंबेज ने कहा कि हमारे राष्ट्रपति गोटाभाया राजपक्षे ने पहली चिट्ठी भारतीय प्रधानमंत्री को लिखी और उन्होंने पहली मुलाकात भारतीय उच्चायुक्त से की। उन्होंने कहा कि हम दक्षिण एशियाई मुल्कों की एकजुटता को लेकर बहुत सचेत हैं। उन्होंने कहा कि हम कुछ असामान्य नहीं मांग रहे हैं। हम आपकी नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी के आधार सुरक्षा और क्षेत्र में सभी के लिए विकास के अधार पर ही मांग कर रहे हैं।
भारत के स्टैंड पर दुनिया की नजर
प्रो. हर्ष पंत का कहना है कि अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस श्रीलंका के इस प्रस्ताव पर भारत का क्या स्टैंड होता है। खासकर तब जब परिषद का प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बैचलेट की उस रिपोर्ट के बाद लाया गया है, जिसमें श्रीलंका में मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन पर गंभीर चिंता जताई गई थी। इसके अलावा परिषद में श्रीलंका के मामले में भारतीय विदेश मंत्री ने कहा था कि कोलोंबो को तमिलों की वैध आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए जरूरी कदम उठाना चाहिए। उन्होंने कहा था कि तमिलों की रक्षा के लिए श्रीलंका को संविधान में 13वें संशोधन को पूरी तरह से लागू करना चाहिए। ऐसे में भारत के सामने एक बड़ी चुनौती होगी कि वह तमिलों के हितों की रक्षा करते हुए पड़ोसी मुल्क का साथ निभाएं।
दक्षिण चीन सागर में उलझा चीन
प्रो. पंत का कहना है कि चीन की चिंता इस समय श्रीलंका पर केंद्रीत नहीं है। वह दक्षिण चीन सागर और प्रशांत क्षेत्र में अपने वर्चस्व को लेकर अमेरिका व अन्य देशों के साथ उलझा हुआ है। उन्होंने कहा कि दक्षिण एशिया में चीन की दिलचस्पी और रणनीति भारत के आस-पास केंद्रीत रहती है। उन्होंने कहा कि अगर देखा जाए तो चीन, भारत को पड़ोसी मुल्कों के साथ सीमा विवाद में उलझाए रखने की रणनीति पर ही काम करता आया है। हाल में नेपाल और श्रीलंका में उसने भारत के खिलाफ रणनीति अपनाई। नेपाल के नए नक्शें में उसकी अहम भूमिका को खारिज नहीं किया जा सकता है। इसी तरह से वह पाक को इस्तेमाल भी भारत के खिलाफ करता आया है। हालांकि, भारत के अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंधों में सहयोग और सद्भभाव की रणनीति रही है।
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