मुंबई। महाराष्ट्र में जारी राजनीतिक संकट पर भाजपा की चुप्पी काफी कुछ बता रही है। पार्टी विपक्ष में है लेकिन शिवसेना के नेतृत्व वाली सरकार पर छाये संकट पर मौन है। पार्टी के रख से स्पष्ट है कि वह इस मामले से तब तक खुद को सीधे तौर पर दूर रखेगी, जब तक शिवसेना के बागी विधायकों की अलग पार्टी न बन जाए और उसके साथ भागीदारी से राज्य में सरकार बनाने के रास्ते खुलते न दिखाई दें।
एकनाथ शिंदे के दल को मान्यता मिली तो ही पार्टी लगाएगी दांव
बागी विधायकों का नेतृत्व कर रहे एकनाथ शिंदे शिवसेना से अलग होने के लिए पार्टी के कुल विधायकों की दो-तिहाई संख्या पा लेते हैं, तो उद्धव सरकार की विदाई तय होगी। इन परिस्थितियों में भाजपा इस नए दल के साथ गठबंधन सरकार बना सकती है। हालांकि भाजपा सीधे तौर पर पहल करने से बच रही है क्योंकि उसे एक आशंका बागी विधायकों के शिवसेना में ही लौट आने को लेकर भी है। यह स्थिति उद्धव के किसी भावनात्मक दांव से बन भी सकती है।
2019 में भाजपा ने की थी सरकार बनाने की असफल कोशिश
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2019 में एनसीपी नेता अजीत पवार के समर्थन से भाजपा की सरकार बनाने की कोशिश असफल हो गई थी। इसमें पार्टी को खासी फजीहत का सामना करना पड़ा था। उस समय देवेंद्र फड़नवीस ने मुख्यमंत्री और अजीत पवार ने उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी और दोनों को इस्तीफा देना पड़ा था। इस कटु अनुभव के चलते इस बार भाजपा पूरे परिदृश्य से फिलहाल कोई ठोस संभावना न बनने तक खुद को दूर रख रही है।
लंबा खिंच सकता है सियासी संकट
पार्टी नेताओं का कहना है कि महाराष्ट्र का ताजा संकट भी वर्ष 2020 में मध्य प्रदेश के सियासी बदलाव की तरह लंबा खिंच सकता है। अल्पमत वाली उद्धव सरकार और बागी नेता एकनाथ शिंदे सुप्रीम कोर्ट की शरण भी ले सकते हैं। भाजपा को एक आशंका यह भी है कि विधानसभा अध्यक्ष के न होने पर उनका कार्यभार संभाल रहे उपाध्यक्ष नरहरी सिताराम झिरवाल एनसीपी से हैं और कई विधायी निर्णयों को लंबा खींच सकते हैं। कानूनी विशेषज्ञ मानते हैं कि ऐसे में राष्ट्रपति शासन की संभावना भी बन सकती है।
हर कदम फूंक-फूंककर रख रही भाजपा
विधानसभा की मौजूदा सदस्य संख्या से स्पष्ट है कि उद्धव सरकार की विदाई की दशा में भाजपा की भूमिका सत्ता के लिहाज से महत्वपूर्ण हो जाएगी। ऐसे में वह बिना किसी जोखिम हर कदम फूंक-फूंककर रखेगी। पार्टी किसी भी दशा में सरकार गिराने या सत्ता तक पहुंचने के लिए किसी तरह का आरोप नहीं झेलना चाहती। उसकी नजर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की हर गतिविधि पर है, क्योंकि वे सरकार बचाने के लिए किसी भी दशा में एकनाथ शिंदे के साथ बागी विधायकों की नई पार्टी नहीं बनने देंगे।
राजनीतिक संकट शिवसेना का अंदरूनी मामला
यदि वे सफल होते हैं तो भी भाजपा के लिए मुश्किल होगी। भाजपा के पहल नहीं करने का यह भी एक कारण है। यह भी तथ्य है कि उद्धव ठाकरे फिलहाल विधानसभा चुनाव का सामना नहीं करना चाहते हैं। महाराष्ट्र भाजपा के सह प्रभारी जयभान सिंह पवैया कहते हैं कि उद्धव सरकार पर आया राजनीतिक संकट शिवसेना का अंदरूनी मामला है, भाजपा का इससे कोई लेना-देना नहीं है।
हमने एकनाथ शिंदे से बात नहीं की: रावसाहेब पाटिल दानवे
वहीं, दूसरी ओर भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री रावसाहेब पाटिल दानवे ने बुधवार को कहा था कि महाराष्ट्र में राजनीतिक संकट शिवसेना का आंतरिक मामला है और भाजपा राज्य में सरकार गठन का दावा पेश नहीं कर रही है।
– पार्टी नेता देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात करने वाले दानवे ने कहा कि शिवसेना का कोई भी विधायक पार्टी के संपर्क में नहीं है। केंद्रीय राज्य मंत्री दानवे ने कहा कि हमने एकनाथ शिंदे से बात नहीं की है। यह शिवसेना का आंतरिक मामला है। भाजपा का इससे कोई लेना-देना नहीं है। हम सरकार बनाने का दावा नहीं कर रहे हैं।