Bihar Politics: सबकी जुबान पर यही सवाल,बिहार कैबिनेट का विस्तार कब, जवाब सिर्फ नड्डा और नीतीश के पास
पटना । बिहार के राजनीतिक गलियारे में इन दिनों अक्सर पूछा जाने वाला सवाल यही है कि राज्य कैबिनेट का विस्तार कब होगा? लोग अनुमान के हिसाब से जवाब दे देते हैं। सच यह है कि इस सवाल का सही जवाब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पास है। बाकी लोग अटकलें लगा रहे। जल्द ही, खरमास से पहले या खरमास के बाद। यह इसलिए कि राज्य के लोग खरमास के दिनों में शुभ-लाभ वाला काम नहीं करते हैं। यह महज अनुमान है। सच यह है कि मंत्री पद क्या, राजनीति में लोग साधारण लाभ के लिए भी शुभ-अशुभ का ख्याल नहीं रखते हैं। विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए पितृपक्ष में शादी से भी परहेज नहीं किया जाता है।
भाजपा की सूची तय नहीं
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सरकारी कामकाज के अलावा राजनीतिक विमर्श भी करते हैं। उसमें सांसद राजीव रंजन सिंह ऊर्फ ललन सिंह, आरसीपी सिंह, मंत्री विजय कुमार चौधरी और अशोक चौधरी के अलावा कभी-कभी दूसरे नेता भी शामिल होते हैं। संगठन के अलावा कैबिनेट विस्तार पर चर्चा होती है। बताया यह जाता है कि भाजपा से मंत्रियों की सूची मिले तो विस्तार हो जाए। संदेश यह कि हम तो सूची लेकर बैठे हैं। भाजपा तय नहीं कर पा रही है।
राजद से मुस्लिम चेहरा के आयात की कोशिश कर रहा जदयू
किसी समारोह में कैबिनेट विस्तार के बारे में पूछे जाने पर मुख्यमंत्री ने कहा कि अभी इंतजार कीजिए। विधायकों ने मान लिया कि देरी होगी। वैसे, जदयू के लिए भी नए मंत्रियों का नाम तय करना आसान नहीं है। दिक्कत किसी मुस्लिम चेहरे को लेकर है। जदयू का चुनावी हिसाब बताता है कि मुसलमानों ने उसे अधिक वोट नहीं दिया। इस तबके के सभी 11 उम्मीदवार चुनाव हार गए। इसके बावजूद मुख्यमंत्री अपनी कैबिनेट में एक अदद मुस्लिम चेहरा चाह रहे हैं। यह भविष्य की राजनीति की तैयारी का हिस्सा है। जदयू शुरू से मुसलमानों के बीच अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि के लिए सतर्क रहा है। इस बार विधानसभा चुनाव के प्रचार के अंतिम दिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मजार पर जाकर चादरपोशी की थी। जदयू फिलहाल राजद से किसी मुस्लिम चेहरे की आयात की कोशिश कर रहा है।
सबकी दिलचस्पी इसमें कि कैसा होगा स्वरूप
2000 में नीतीश जब पहली बार मुख्यमंत्री बने थे, उस समय विधानसभा में उनकी समता पार्टी की तुलना में भाजपा के सदस्यों की संख्या अधिक थी। इसके बावजूद भाजपा ने उन्हेंं मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन उस समय की उदारता की अपेक्षा आज की परिस्थिति में नहीं की जा सकती है। वह सरकार सिर्फ सात दिनों तक चली थी। इसलिए पता नहीं चल पाया कि मुख्यमंत्री पद देने के बाद भाजपा कैबिनेट में विधायकों की संख्या के आधार पर हिस्सेदारी चाहती है या नहीं। सीटों की संख्या के लिहाज से परिदृश्य 20 साल पुराना है। फर्क है कम संख्या के बाद भी जदयू को मुख्यमंत्री का पद देने के बाद भाजपा अन्य मामलों में बड़े भाई की भूमिका चाह रही है। विधानसभा अध्यक्ष के अलावा दो उप मुख्यमंत्री का पद लेकर भाजपा ने जदयू तक यह संदेश पहुंचा दिया है। मौजूदा कैबिनेट में भाजपा के पास कुछ ऐसे विभाग भी आ गए हैं, जो बीते 15 साल से जदयू के पास थे। इसमें पंचायती राज जैसा महत्वपर्ण विभाग भी है, जिसका सरोकार गांवों से है।
भाजपा के होंगे अधिक मंत्री, हालांकि अभी हिस्सेदारी तय नहीं
कैबिनेट में किस दल की कितनी भागीदारी होगी, यह तय नहीं हुआ है। अटकलों में ही एक फार्मूला तैर रहा है। चार विधायकों की संख्या पर एक मंत्री। विधानसभा की कुल सदस्य संख्या 243 है। उसके 15 प्रतिशत सदस्यों को मंत्री बनाने का प्रावधान है। यानी मुख्यमंत्री के अलावा 35 सदस्य कैबिनेट में रह सकते हैं। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के विधायकों की संख्या 125 है। साढ़े तीन विधायक पर एक मंत्री बनने का फार्मूला लागू होता है तो 74 विधायकों वाली भाजपा से 20-21 और 43 विधायकों वाले जदयू से 12-13 मंत्री बन सकते हैं। चार-चार विधायकों वाले दो दल हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा और विकासशील इंसान पार्टी के एक-एक विधायक मंत्री बन चुके हैं। जानकार बताते हैं कि कैबिनेट विस्तार में सबसे बड़ी बाधा संख्या है। जदयू इस मोर्चे पर भाजपा से उदारता की अपेक्षा कर रहा है। यहां आकर स्पष्ट हो जाता है कि सत्तारूढ़ गठबंधन में हिस्सेदारी तय हो जाने पर कैबिनेट का विस्तार हो जाएगा।