‘हम क्या दंगे करते हैं, देश के खिलाफ षडयंत्र रचते हैं या PAK में बैठे आतंकियों के लिए…’, SC में मुस्लिमों को लेकर उदयपुर फाइल्स पर भड़के अरशद मदनी

जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने गुरुवार को ‘उदयपुर फाइल्स-कन्हैया लाल टेलर मर्डर’ फिल्म को लेकर आरोप लगाए हैं कि यह फिल्म मुस्लिम समुदाय को बदनाम करती है. फिल्म की कहानी से लेकर डायलॉग और चित्रण के जरिए मुस्लिम समुदाय को टारगेट किया गया है. अरशद मदनी ने केंद्र की समिति की ओर से छह कट के बाद फिल्म की रिलीज के लिए अनुमति दिए जाने पर भी आपत्ति जताई है.
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार अरशद मदनी ने कहा कि उदयपुर फाइल्स फिल्म के चित्रण, डायलॉग्स और कहानी के जरिए मुस्लिम समुदाय को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है. उन्होंने कहा कि फिल्म के हर मुस्लिम कैरेक्टर को धोखेबाज, षडयंत्रकारी, दंगे करने वाला और देश के खिलाफ काम करने वाला दिखाया गया है. मुस्लिम कैरेक्टर्स को दुश्मन देश के लिए काम करने वाले के तौर पर दिखाया गया है.
याचिका में कहा गया कि यह भारत-पाकिस्तान के मुद्दे से संबंधित नहीं है, लेकिन ये दिखाने की कोशिश की गई है कि भारतीय मुसलमान पाकिस्तान में बैठे आतंक के आकाओं के प्रति सहानुभूति रखते हैं या उनके लिए काम करते हैं. अरशद मदनी ने कहा कि फिल्म का ज्यादातर हिस्सा कन्हैया लाल शर्मा के मर्डर से जुड़ा हुआ नहीं दिखाया गया है, बल्कि मुसलमानों के खिलाफ एक हेट स्पीच है, जिसे बड़े ही तरीके से चित्रित किया गया है. यह फिल्म गैर-मुस्लिमों में मुसलमानों के प्रति दुर्भावना को प्रेरित करेगी.
रिपोर्ट के अनुसार अरशद मदनी ने फिल्म के प्रोड्यूसर अमित जानी को लेकर कहा कि वह एक सेल्फ स्टाइल्ड एक्टिविस्ट और उत्तर प्रदेश नवनिर्माण सेना के फाउंडर हैं. उन्होंने अमित जानी पर आरोप लगाए और कहा कि 2012 में पूर्व यूपी सीएम मायावती की प्रतिमा को क्षतिग्रस्त करना, शिवसेना कार्यालय में तोड़फोड़, कई नेताओं को धमकियां देना, कश्मीरियों के खिलाफ बयानबाजी करना, ताजमहल जैसे ऐतिहासिक स्थलों को लेकर भड़काऊ तस्वीरें जारी करना और जेएनयू छात्रों कन्हैया कुमार और उमर खालिद का सिर कलम करने की धमकी देने वाले पत्र बस में लगाने जैसे कृत्यों में वह शामिल रहे हैं.
अरशद मदनी ने केंद्र की ओर से गठित कमेटी के सदस्यों की नियुक्ति पर भी सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि समिति के कुछ सदस्य CBFC से थे और भारतीय जनता पार्टी से संबंधित रह चुके हैं. केंद्र को ऐसी समिति को फिल्म की जांच की जिम्मेदारी नहीं दी जानी चाहिए थी. CBFC की ओर से फिल्म की रिलीज को अनुमति दिए जाने के खिलाफ याचिकाएं दाखिल की गई थीं, जिसके बाद केंद्र ने एक समिति बनाई. समिति ने छह कट के बाद फिल्म की रिलीज को अनुमति दी है.
जस्टिस सूर्यकांत ने उनकी इस दलील पर कहा कि ऐसा सभी सरकारों में होता है और उनकी नियुक्तियों को चुनौती नहीं दी जा सकती. वहीं जस्टिस बागची ने कहा कि सरकार हमेशा एक सलाहकार समिति रख सकती है और प्रथम दृष्टया इसमें कुछ भी गलत नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई शुक्रवार के लिए टाल दी और संभावना जताई कि मामला दिल्ली हाईकोर्ट वापस भेजा जा सकता है.