AAP की ‘फ्री बिजली’ पर वाघेला का हमला, बोले- किसी के बाप की दिवाली है?

AAP की ‘फ्री बिजली’ पर वाघेला का हमला, बोले- किसी के बाप की दिवाली है?

शंकर सिंह वाघेला ने कहा कि गुजरात और देश के वोटरों से अपील है कि वह रेवड़ी की लालच में न पड़ें. क्या किसी पार्टी ने अपने फंड से वादे पूरे करने की कोशिश की है. जनता के पैसों पर ऐसे दावे करना आसान है.

गुजरात में विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी घमासान मचा हुआ है. वहीं कांग्रेस को इस चुनाव में शंकर सिंह वाघेला का साथ मिल गया है. अपने लंबे राजनीतिक सफर में उन्होंने कई बार पार्टियां बदलीं, लेकिन इस बार वह पूरी तरह कांग्रेस के पक्ष में कैंपेन के लिए तैयार नजर आ रहे हैं. इस दौरान उन्होंने बीजेपी और आम आदमी पार्टी पर भी निशाना साधा. खासकर आप के मुफ्त बिजली, शिक्षा जैसे वादों पर जमकर हमला बोला.

शंकर सिंह वाघेला ने कहा कि आज कुछ भी मुफ्त में नहीं मिलता है. 300 यूनिट फ्री बिजली का वादा क्या है? किसकी बाप की दिवाली है. यह आपके पैसे हैं. किस पार्टी ने मुफ्त शिक्षा का वादा किया है. किसने सरकारी खजाने में 200 करोड़ रुपये मुफ्त शिक्षा के लिए जमा किया है. उन्होंने कहा कि गुजरात और देश के वोटरों से अपील है कि वह रेवड़ी की लालच में न पड़ें. क्या किसी पार्टी ने अपने फंड से वादे पूरे करने की कोशिश की है. जनता के पैसों पर ऐसे दावे करना आसान है.

किसी पार्टी के पास विचारधारा नहीं

उन्होंने कहा कि आज जो लोग राजनीति में आते हैं, वे खुद के लिए आते हैं. लोग दूसरी पार्टियों का रुख इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें पैसे मिल रहे हैं. आप खुद के लिए पार्टी में शामिल हो रहे हैं. यही विचारधारा हर किसी की है. किसी भी पार्टी के पास कोई विचारधारा नहीं है. न कांग्रेस के पास, न जनसंघ के पास न ही सीपीएम के पास. उन्होंने कहा कि जिस किसी के पास भी पैसा है, वह अगर पार्टी लॉन्च करता है तभी पार्टी चल सकती है. केवल पैसे और लोगों की ताकत ही एक पार्टी चला सकती है. चाहे वह आम आदमी पार्टी हो या कोई दूसरी पार्टी, उसे कोई और नहीं बल्कि पैसा ही चला रहा है.

करोड़ों रुपयों से ही चलती है पार्टी

वाघेला ने कहा कि केवल वही लोग अपनी पार्टी चला सकते हैं, जिसके पास करोड़ों रुपये हैं. कई बार यह व्यक्ति विशेष पर भी निर्भर करता है. महागुजरात जनता पार्टी और स्वतंत्रता पार्टी जैसे भी राजनीतिक दल थे लेकिन वे खत्म हो गए. क्योंकि उनके पास पैसे नहीं थे. साल 1947 और साल 1952 तक, जब पहली बार चुनाव हुए थे, तब जो लोग राजनीति में आए थे उन्हें लाठियां पड़ी थीं. वे अपना घर-संसार देश के लिए छोड़कर आए थे. कुछ लोग ऐसे भी थे जो महात्मा गांधी, सरदार पटेल, नेहरू और अंबेडकर जैसे लोगों से प्रभावित होकर आए थे, जिनका मकसद राष्ट्रहित था.

गांधी की राजनीति ही प्रमुख नहीं रही

लेकिन इसके बाद गांधी की विचारधारा पर चलने वाले लोगों के बीच भी लड़ाइयां हुईं. 1952 के बाद कैसे इंदूचाचा (इंदूलाल यागनिक, जिन्होंने अलग गुजरात के लिए महागुजरात आंदोलन का नेतृत्व किया था), मोरारजी भाई, अचानक से राष्ट्रीय पटल पर आए? क्यों कांग्रेस (ओ) और कांग्रेस (आई) का मूल कांग्रेस से विभाजन के बाद गठन हुआ. अगर गांधी की राजनीति ही प्रमुख रहती तो क्या ऐसा होता?

आजादी के बाद कोई सिद्धांतवादी नहीं रहा

हर विचारधारा, वादे, सिद्धांत और नीतियां केवल बात करने के लिए होती हैं. आजादी के बाद कोई सिद्धांतवादी नहीं रहा. न कोई पार्टी, न ही कोई शख्स. ताकत की राजनीति ही केवल नीति और सिद्धांत रह गई है. लोगों की प्राथमिकताएं केवल खुद तक सिमटी हैं, फिर पार्टी तक और उसके बाद देश का नंबर आता है.

कांग्रेस के लिए खत्म की अपनी पार्टी

वाघेला ने कहा कि आरजेपी के साथ यही दिक्कत सामने आई, कार्यकर्ता पैसे मांगते थे. आपके पास 500-1,000 करोड़ रुपये हों तभी आप पार्टी चला सकते हैं. आपको हर साल कम से कम 100 करोड़ रुपयों की जरूरत होती है. हमारी पार्टी के पास इतने पैसे नहीं थे. लेकिन अगर यह पार्टी खत्म नहीं होती तो हम कांग्रेस के वोटों में सेंध लगा रहे होते और इसका सीधा लाभ बीजेपी को मिलता. कांग्रेस ने आरजेपी सरकार को अपना समर्थन दिया था. इसलिए व्यापक हित को देखते हुए मैंने निर्णय लिया कि कांग्रेस के साथ विलय कर लेते हैं. यह पार्टी आज तक चल सकती थी लेकिन लेकिन मैं सार्वजनिक जीवन में लोगों के हित के लिए आया था.

शंकर सिंह वाघेला का राजनीतिक सफर

शंकर सिंह वाघेला ने बताया कि जब वह सार्वजनिक जीवन में आए तब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने पहली शर्त रखी थी कि वह सांसद और विधायक का चुनाव नहीं लड़ सकेंगे. इसका सीधा मतलब यह था कि ताकत के लिए आपका राजनीतिक सफर खत्म हो गया. वाघेला ने बताया कि इमरजेंसी के बाद, जब वह जेल गए तब कोई ऐसा नहीं था जो जन संघ की ओर से लड़े. तब उनसे कहा गया कि वह कपड़वंज लोकसभा सीट से साल 1977 में चुनाव लड़ें. वाघेला ने बताया कि उन्होंने अच्छे अंतरों से चुनाव जीता. लेकिन इसके बाद लोकसभा चुनाव 1980 में वह हार गए. इसके बाद वह साल 1984 में राज्यसभा सांसद बने. फिर साल 1989 में, गांधीनगर लोकसभा सीट पर वाघेला ने रिकॉर्ड मतों से जीत दर्ज की. इसके अगले चुनाव में उन्होंने अपनी सीट अटल बिहारी वाजपेयी के लिए खाली कर दी थी और गोधरा से चुनाव लड़ा था.

चुनावी घोषणापत्रों के जरिए लोगों को धोखा

उस समय की चुनावी राजनीति का जिक्र करते हुए वाघेला ने कहा कि तब, विधानसभा चुनाव महज 5,000 रुपये में और लोकसभा चुनाव 15,000 रुपये में लड़ सकते थे. साल 1977 में मुझे पार्टी से 5,00,000 रुपये मिले थे. हमने तीन सीटों, कच्छ, राजकोट और कपवड़गंज पर चुनाव लड़ा. मैंने 1,10,000 रुपये खर्च किए. मैं सीधे जेल से अपना नामांकन दाखिल करने गया था. आज पार्टियां चुनावी घोषणापत्रों के जरिए लोगों को धोखा देती हैं. अगर ये पार्टियां 5 साल में अपने चुनावी वादों को पूरा नहीं करती हैं तो इनके खिलाफ एक्शन होना चाहिए. उन्हें बाहर कर देना चाहिए. अगर ऐसा हुआ तो ये फिर ऐसे वादे नहीं कर सकेंगी.