गोरखपुर। एमएलसी चुनाव के परिणाम ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया कि चुनावी नतीजे अब जातिगत समीकरण के भरोसे तय नहीं होंगे, संगठन की ताकत, एकजुटता और समर्पण ही जीत-हार का आधार होगा। गोरखपुर-फैजाबाद ही नहीं एमएलसी की पांच में से चार सीटों पर विजय पताका फहराने वाली भाजपा इस कसौटी पर इस बार भी खरी उतरी। चुनाव पर किसी की मजबूत पकड़ नजर आई तो वह भाजपा थी। सपा न केवल बिखरी रही बल्कि विपक्षियों की अंदरुनी एका को भी सहेजने में नाकाम रही।
जबरदस्त थी संगठन की तैयारी
जीत की हैट्रिक लगाकर चौथी बार एमएलसी बने भाजपा के देवेंद्र प्रताप सिंह का प्रथम वरीयता में ही पचास फीसद के निर्धारित आंकड़े को छू लेना यह बता गया कि संगठन की तैयारी कितनी जबरदस्त थी। सपा के करुणा कांत का 34,244 वोट पाना भाजपाइयों को भले चौंका रहा हो लेकिन सपा समेत पूरे विपक्ष को यह संदेश दे गया कि अपनी डफली-अपना राग ही हार का असली कारण बना। सबने मिलकर मेहनत की होती तो परिणाम बदल भी सकता था। बात संगठन की ताकत और एकजुटता की करें तो इसमें भी भाजपा मीलों आगे रही। चुनाव की घोषणा से प्रचार और परिणाम तक प्रत्याशी, पार्टी पदाधिकारी और संगठन में समन्वय ने कार्यकर्ताओं में जो उत्साह भरा, उसने एक-एक वोट को सहेजकर बूथों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाई। विपक्षी दल का दृष्टिकोण इस मोर्चे पर भी सकारात्मक नहीं रहा।
समर्पण भी बनी नजीर
कार्यकर्ता के लिए संगठन से बड़ा कुछ भी नहीं, जैसे आदर्श वाक्य दोहराए तो सभी दलों में जाते हैं, लेकिन यह समर्पण और अनुशासन भी भाजपा में ही नजर आया। चुनाव की घोषणा से पहले सभी दावेदार जिस तरह से तैयारी में लगे थे, उससे विपक्षी इस बात को लेकर निश्चिंत थे कि टिकट वितरण के बाद बगावत तय है। देवेंद्र सिंह का टिकट जब तक तय नहीं था, पदाधिकारी कुछ भी बोलने से बच रहे थे लेकिन जैसे ही प्रत्याशी के तौर पर देवेंद्र प्रताप के नाम पर मुहर लगी पूरी पार्टी उनके साथ हो ली। इस बीच चर्चा उठी कि विपक्ष भाजपा के किसी बागी को या तो अपना प्रत्याशी बनाएगा या फिर अंदरुनी समर्थन देगा। पार्टी के संस्कार ने न केवल विपक्ष के इस मंसूबे को भी धराशायी कर दिया बल्कि जीत की उम्मीदों पर भी पानी फेर दिया।