RSS पर उद्धव ठाकरे की शिवसेना का गंभीर आरोप, कहा- भारत को बनाना चाहते हैं ‘हिन्दू पाकिस्तान’

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के 100 साल पूरे होने के अवसर पर देशभर में संघ द्वारा विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं, वहीं शिवसेना के मुखपत्र ने इस पर सवाल उठाए हैं. सामना में छपे लेख ने हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के DNA और उसकी विचारधारा पर गंभीर सवाल उठाए हैं. पत्र में दावा किया गया है कि संघ के राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की अवधारणा पर एक बार फिर से की सख्त आवश्यकता है.
सामना ने यह भी जोर दिया कि स्वतंत्रता संग्राम और उसके बाद के राष्ट्र निर्माण में संघ की भूमिका नगण्य रही, बावजूद इसके आज संघ आजादी और राष्ट्रवाद पर भाषण दे रहा है. यह सवाल खड़ा करता है कि क्या संघ के विचार और उसके एजेंडे में लोकतंत्र और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के प्रति सम्मान है या नहीं.
स्वतंत्रता संग्राम और संघ की भूमिका
सामना के अनुसार, भारत के स्वतंत्रता संग्राम में संघ का योगदान लगभग शून्य रहा. आजादी के लिए उठाए गए आंदोलनों और संघर्षों में संघ कहीं दिखाई नहीं दिया, फिर भी संघ और इसके नेताओं ने आजादी और राष्ट्रवाद पर भाषण देने का अधिकार ठहरा रखा है. लेख में यह भी कहा कि ‘पीएम मोदी- गृह मंत्री अमित शाह के शासन की तारीफ करने के लिए संघ ने कायर और भाड़े के लोगों की बड़ी फौज तैयार कर रखी है, जिसमें स्वयं मोहन भागवत भी शामिल हो गए हैं.’
संघ और ‘हिंदू राष्ट्र’ का एजेंडा
सामना में यह भी दावा किया गया कि संघ का वास्तविक लक्ष्य भारत को ‘हिंदू पाकिस्तान’ में बदलना है. इसके लिए संघ व्यक्तिगत स्वतंत्रता, लोकतंत्र और संसद जैसी संस्थाओं की बलि देने को तैयार है. सरसंघचालक मोहन भागवत ने हाल के विजयादशमी सम्मेलन में बीजेपी के ही सुर में सुर मिलाते हुए भाषण दिया. पत्र में कहा गया कि इस सम्मेलन से अपेक्षा थी कि संघ सौ सालों की स्थापना के अवसर पर कोई नई दिशा और मार्गदर्शन देगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
मोदी-शाह शासन और संघ का सपने
सामना ने मोदी-शाह के शासन को संघ के सपनों को साकार करने वाला करार दिया. पत्र में लिखा गया है कि संघ की धारणा के अनुसार देश की एकता का वास्तविक अर्थ सहिष्णु हिंदुओं के बजाय कट्टर और सड़ी हुई मानसिकता वाले हिंदुओं के शासन को मान्यता देना है. इस दृष्टिकोण के तहत संघ का प्रयास है कि भारत का राज ‘हिंदू राष्ट्र’ के रूप में स्थापित हो, भले ही इसके लिए लोकतांत्रिक मूल्य और व्यक्तिगत स्वतंत्रताओं का उल्लंघन ही क्यों न करना पड़े.