नई दिल्‍ली। नोएडा के सेक्टर 93ए में बने सुपरटेक के ट्विन टॉवर (Twin Tower) रविवार को ध्‍वस्‍त कर दिए गए। होमबॉयर्स निकाय एफपीसीई (Homebuyers Body FPCE) ने इस एक्‍शन को फ्लैट मालिकों के लिए एक बड़ी जीत करार दिया है। एफपीसीई का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हुई इस ध्‍वस्‍तीकरण की कार्रवाई ने बिल्डरों के साथ विकास प्राधिकरण के अधिकारियों के अहंकार को भी जमींदोज कर दिया है। हालांकि बहुत से सवाल ऐसे हैं जिनके जवाब मिलने बाकी हैं।

रियल्टी सेक्‍टर में बड़े पैमाने पर व्‍याप्‍त भ्रष्‍टाचार का आलम यह है कि दिल्ली एनसीआर (Delhi NCR) ही नहीं देश के अन्‍य शहरों में बनी सोसाइटियों के फ्लैट बायर्स की मुश्किलें खत्म नहीं हो रही हैं। अक्‍सर देखा जाता है कि बिल्डर (Developer or Builder) से अपनी मांगों को लेकर फ्लैट बायर्स परेशान रहते हैं। जीवन की सारी जमा पूंजी लगाने के बाद अपने हक से वंचित फ्लैट बायर्स को मजबूरी में अदालतों के चक्‍कर लगाने पड़ते हैं।

ऐसी कार्रवाइयां फ्लैट बायर्स के जख्‍मों पर मरहम तो जरूर लगाती हैं लेकिन उनके जख्‍मों को भरने में नाकाम नजर आती हैं। होमबॉयर्स के हित में काम करने वाली संस्‍था फोरम फॉर पीपुल्स कलेक्टिव एफर्ट्स (Forum For People’s Collective Efforts, FPCE) ने कहा कि भ्रष्‍टाचार का प्रतीक बन चुके ट्विन टॉवर (Twin Tower) के निर्माण के इस मामले में विकास प्राधिकरण के अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए थी।

समाचार एजेंसी पीटीआइ की रिपोर्ट के मुताबिक रियल्टी सेक्‍टर की कंपनी सुपरटेक का कहना है कि उसने ट्विन टॉवर का निर्माण नोएडा विकास प्राधिकरण की ओर से मंजूर की गई बिल्डिंग योजना के तहत ही किया था। कंपनी की दलील है कि नोएडा विकास प्राधिकरण की स्‍कीम में किसी तरह का बदलाव नहीं किया गया था। ऐसे में बड़ा सवाल यह कि कानून के लिहाज से जब यह कंस्‍ट्रक्‍शन अवैध था तो टावरों का निर्माण कैसे हो गया…

पूरे प्रकरण पर नजर डालें तो फ्लैट बायर्स आरोप लगाते रहे हैं कि विकास प्राधिकरण के अधिकारी भी इन इमारतों के निर्माण में उतने ही गुनहगार हैं जितना की बिल्‍डर कंपनी… एफपीसीई (Forum For People’s Collective Efforts, FPCE) के अध्यक्ष अभय उपाध्याय कहते हैं कि दुर्भाग्य से सुप्रीम कोर्ट बिल्डरों के इशारे पर नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों और भ्रष्‍टाचार में शामिल पर्दे के पीछे के किरदारों की पहचान करने और उनकी जवाबदेही सुनिश्‍च‍ित करने में विफल रहा है।

FPCE के अध्यक्ष अभय उपाध्याय ने कहा कि बेहतर होता कि अदालत ने इस भ्रष्‍टाचार में शामिल सभी लोगों का पता लगाने के लिए सीबीआई जांच का आदेश दिया होता। वैसे यह निश्चित रूप से घर खरीदारों के लिए एक बड़ी जीत है। यह न केवल इमारत वरन बिल्डरों के उस सोच का विध्‍वंस है कि वे जैसा चाहें वैसा कर सकते हैं। यह प्रकरण बदलते बिल्डर-खरीदार समीकरण का भी संकेत है। यह कार्रवाई दिखाती है कि बाहुबल अब घर खरीदारों के हक की लड़ाई को नहीं कुचल सकती…

गौर करने वाली बात यह भी कि पिछले साल 31 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि फ्लैट बुकिंग के समय से घर खरीदारों की पूरी रकम 12 फीसद ब्याज के साथ वापस की जानी चाहिए। इतना ही नहीं रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन को इस निर्माण के कारण हुए उत्पीड़न के लिए दो करोड़ रुपये का भुगतान किया जाना चाहिए। एक सवाल यह भी कि इस इमारत के निर्माण में लगे संसाधन के चलते प्रकृति और पर्यावरण को जो अपूर्णीय क्षति हुई है उसकी भरपाई कैसे होगी…

सुपरटेक की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि इन दो टावरों के ध्वस्तीकरण से कंपनी की अन्य रियल एस्टेट परियोजनाओं पर असर नहीं पड़ेगा। सुपरटेक ने यह भी भरोसा दिया है कि घर खरीदारों को उनके फ्लैट समय पर मुहैया कराए जाएंगे। रियल स्‍टेट कंपनियां ग्राहकों को वादे तो बड़े बड़े करती है लेकिन इन्‍हें पूरा नहीं किया जाता। सवाल यह कि देश के अन्‍य हिस्‍सों में जिन फ्लैट खरीदारों को वादे के अनुरूप मूलभूत सुविधाएं नसीब नहीं हो रही हैं। उनके जख्‍मों पर मरहम कब लगेगा….