‘राष्ट्रपति को आदेश देना लोकतंत्र के खिलाफ’ – सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर भड़के उपराष्ट्रपति धनखड़

‘राष्ट्रपति को आदेश देना लोकतंत्र के खिलाफ’ – सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर भड़के उपराष्ट्रपति धनखड़

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक टिप्पणी में सुझाव दिया कि राष्ट्रपति को राज्यपालों द्वारा भेजे गए लंबित विधेयकों पर तीन महीने के भीतर निर्णय लेना चाहिए। इस टिप्पणी पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने नाराजगी जताई और इसे लोकतंत्र की मूल भावना के खिलाफ बताया।

उपराष्ट्रपति ने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि भारत ने ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी, जिसमें न्यायपालिका कानून बनाए, कार्यपालिका का काम करे और खुद को “सुपर संसद” की तरह पेश करे। उन्होंने सवाल उठाया, “हम कहां जा रहे हैं? देश में क्या चल रहा है?”

राज्यसभा के प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि न्यायपालिका का कार्य संविधान की व्याख्या करना है, न कि कार्यपालिका या विधायिका की भूमिका निभाना। उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रपति का पद सर्वोच्च होता है और उन्हें निर्देशित करना संविधान की भावना के विरुद्ध है।

धनखड़ ने जोर देकर कहा, “हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां आप भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें।” उन्होंने कहा कि न्यायपालिका की जवाबदेही भी उतनी ही ज़रूरी है, जितनी अन्य संस्थाओं की।