प्लान B: महामारी से बचने के लिए सबको कोरोना वायरस से संक्रमित कर देना चाहिए! दुनिया में छिड़ी बहस

- कोरोना वायरस को खत्म करने के लिए सभी लोगों को इस वायरस से संक्रमित करने के विकल्प पर छिड़ी बहस
- कुछ विशेषज्ञों के मुताबिक आबादी का बड़ा हिस्सा संक्रमित हो जाए तो हर्ड इम्यूनिटी विकसित हो जाएगी
- इस विकल्प में जोखिम बहुत है, लाखों लोगों खासकर बुजुर्ग, पहले से गंभीर बीमारी के शिकार लोगों को पड़ेगा महंगा
- इस विकल्प के विरोधियों की दलील है कि ऐसा करने से लाखों या करोड़ की तादाद में लोगों की मौत हो जाएगी
नई दिल्ली
क्या कोरोना वायरस महामारी से बचने के लिए सभी लोगों को इससे संक्रमित होने के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए? हो सकता है कि यह आपको मजाक लगे या यह सुनकर आपको गुस्सा आए लेकिन दुनिया में इसे भी एक विकल्प के तौर पर देखा जाने लगा है। अभी दुनिया में विशेषज्ञों के बीच इसे लेकर बहस छिड़ी हुई है कि ऐसा किया जाना चाहिए या नहीं। इसके पक्ष में भी दलीलें आ रही हैं तो इसके खिलाफ भी। आखिर इस विकल्प का आधार क्या है और क्यों इस तरह की चर्चा छिड़ी है, आइए समझते हैं।
क्या है वह प्लान बी, जिस पर छिड़ी है बहस
दरअसल, लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग हमेशा के लिए लागू नहीं हो सकता। जब तक कोविड-19 की वैक्सीन नहीं बन जाती तब तक तो खतरा बहुत ही ज्यादा है। तो क्या वैक्सीन बनने तक लॉकडाउन जारी रहे? बिल्कुल नहीं, क्योंकि तब बीमारी से ज्यादा लोग इसे रोकने की इस कवायद से मरने लगेंगे। इकॉनमी चौपट हो जाएगी, अभूतपूर्व बेरोजगारी बढ़ जाएगी। हो सकता है कि लोगों के भूखों मरने की नौबत तक आ जाए।
वैक्सीन बनने तक लॉकडाउन में रहना बहुत मुश्किल
ऐसी सूरत में वैक्सीन बनने तक ‘हर्ड इम्यूनिटी’ के कॉन्सेप्ट से लोगों की उम्मीदें बढ़ी हैं। इसी को प्लान बी के तौर पर बताया जा रहा है कि लोगों को खुला छोड़ दें संक्रमण के लिए, इससे ‘हर्ड इम्यूनिटी’ विकसित होगी और आखिरकार महामारी खत्म हो जाएगी। लेकिन इसमें इतना ज्यादा जोखिम है कि दुनिया भर के विशेषज्ञ इसे लेकर बंट चुके हैं।
तो क्या एक बड़ी आबादी मरने के लिए छोड़ दी जाए?
कई विशेषज्ञ इस विकल्प का तीखा विरोध कर रहे हैं। अगर लोगों को वायरस के संक्रमण में आने के लिए छोड़ दिया जाए तो जोखिम वाले लोग जैसे बुजुर्ग और पहले से गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोगों के साथ यह बहुत बड़ा अन्याय होगा। ऑस्ट्रेलिया के एपिडेमियोलॉजिस्ट गिडियन मेयरोविट्जकाट्ज ने द गार्डियन में लिखा, ‘इसके लिए हमें इकॉनमी की बलि वेदी पर जोखिम वाले लोगों की बलि देनी पड़ेगी।’
विश्व स्वास्थ्य संगठन भी विरोध में
क्या हर्ड इम्यूनिटी के लिए लोगों को संक्रमित होने के लिए खुला छोड़ देना बेहतर विकल्प है? विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक यह कतई समझदारी भरा नहीं है।
COVID-19: राहुल गांधी की रघुराम राजन के साथ कोरोना महामारी पर चर्चा की प्रमुख बातेंकांग्रेस नेता राहुल गांधी आज अर्थव्यवस्था और स्वास्थ्य क्षेत्र के विशेषज्ञों के साथ बातचीत की अपनी श्रृंखला शुरू की है। इस श्रृंखला के तहत उन्होंने भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए चर्चा की। राहुल ने राजन से कोविड-19 के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले असर से लेकर सत्ता के केंद्रीयकरण को लेकर राजन से सवाल पूछा।
स्वीडन में कोई लॉकडाउन नहीं हुआ, बढ़ रही इम्यूनिटी
स्वीडन ने अपने यहां लॉकडाउन नहीं किया। इस वजह से वहां पड़ोसी देशों के मुकाबले ज्यादा लोगों की मौत जरूर हुई लेकिन इसके बावजूद वहां कई अन्य यूरोपीय देशों के मुकाबले कोरोना की स्थिति अच्छी है।
बहुत जोखिमभरा है यह विकल्प
हर्ड इम्यूनिटी के लिए लोगों को संक्रमित होने के लिए छोड़ना बहुत खतरनाक हो सकता है। 60 से 85 प्रतिशत आबादी संक्रमित हो जाए तो इसके विनाशकारी नतीजों की कल्पना तक नहीं की जा सकती। तब लाखों लोग या हो सकता है कि करोड़ में लोगों की मौत हो जाए। कनाडा के चीफ पब्लिक हेल्थ ऑफिसर थेरेसा टैम ने चेताया है कि अगर ऐसा किया गया तो मौत ही नहीं, बीमारी के असर भी खतरनाक साबित होंगे। उन्होंने कहा, ‘सिर्फ मौत ही चिंता की बात नहीं है। बीमारी से जो जिंदा बच रहे हैं उनके किडनी, लिवर, हृदय और दिमाग को होने वाला नुकसान भी बड़ी चिंता की बात होगी।’
ग्रीन और ऑरेंज जोन में मिलेगी ढील
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4 मई से ग्रीन और ऑरेंज जोन में पाबंदियों में काफी ढील दी जा सकती है। इन इलाकों में पहले से ही गृह मंत्रालय ने गैरजरूरी सामानों, सेवाओं की दुकानों को खोलने की अनुमति दे दी है। अब यहां हर तरह की दुकानों को खुलने की इजाजत दी जा सकती हैं। ग्रीन जोन वे हैं जो या तो अब तक कोरोना से अछूते रहे हैं या फिर पिछले 28 दिनों से वहां नए केस सामने नहीं आए हैं। ऑरेंज जोन वे हैं जहां पिछले 14 दिनों से नए केस सामने नहीं आए हैं। ऐक्टिव केसों वाले इलाके रेड जोन हैं और वहां पाबंदियों में छूट की संभावना कम है।
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देश में 300 जिले ऐसे हैं जो अब तक कोरोना से अछूते हैं यानी वहां अब तक कोरोना के एक भी केस सामने नहीं आए हैं। इन जिलों में 4 मई के बाद हर तरह की कारोबारी गतिविधियां शुरू हो सकती हैं यानी यहां हर तरह की दुकानें, कारोबारी प्रतिष्ठान, छोटे-मोटे उद्योग, दफ्तर आदि खोले जा सकते हैं।
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इंट्रा-डिस्ट्रिक्ट ट्रांसपोर्ट को भी इजाजत दी जा सकती है। सटे हुए ग्रीन जोन वाले जिलों के बीच भी ट्रांसपोर्ट शुरू किया जा सकता है। इस दौरान सोशल डिस्टेंसिंग के मानकों का पालन जरूरी होगा।
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केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक देश के 300 जिले तो कोरोना से बिल्कुल अछूते हैं। इसके अलावा 300 जिले ऐसे हैं जहां कोरोना के मामले बेहद कम हैं। इन जिलों में भी रियायतों का दायरा बढ़ाया जा सकता है यानी यहां भी दुकानें, दफ्तर, कारोबार को धीरे-धीरे खोलने की इजाजत दी जा सकती है।
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देश के 129 जिलों में कोरोना वायरस के हॉटस्पॉट हैं यानी ये जिले रेड जोन में हैं। रेड जोन्स में हॉटस्पॉट्स से बाहर के इलाकों में ही कुछ मुमकिन है। हॉटस्पॉट्स में छूट मिलने की संभावना न के बराबर है। लॉकडाउन के बाद एक रणनीति तो यह हो सकती है कि हॉटस्पॉट्स से बाहर जाने या किसी बाहरी के वहां आने को पूरी सख्ती से रोका जाए और बाकी इलाकों में ज्यादा से ज्यादा छूट दी जाए ताकि इकॉनमी का पहिया भी आगे बढ़े। खास बात यह है कि मुंबई, दिल्ली, अहमदाबाद जैसे शहर जो कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं, वे उद्योगों व रोजगार के सबसे बड़े केंद्र भी हैं।
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केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 15 अप्रैल को जारी गाइडलाइंस में बुधवार को बदलाव किया। गाइडलाइंस के क्लॉज 17 में बदलाव करते हुए लॉकडाउन में फंसे लोगों के एक राज्य से दूसरे राज्य में जाने को कुछ शर्तों के साथ इजाजत दे दी। अब तमाम राज्यों में फंसे प्रवासी मजदूर, छात्र, पर्यटक, श्रद्धालु अपने-अपने राज्यों को जा सकेंगे। हालांकि, इसकी व्यवस्था सरकार करेगी यानी फ्री मूवमेंट तब भी नहीं होगा।
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छूट का मतलब यह नहीं है कि अब लॉकडाउन में फंसे लोग कोई भी साधन पकड़कर घर पहुंच जाए। फिलहाल ट्रेनें तो बिल्कुल नहीं चलने वाली। प्रवासी मजदूर, छात्र, पर्यटक, श्रद्धालु आदि फंसे हुए लोगों के घर आने की व्यवस्था संबंधित राज्य सरकारें ही करेंगी। इन्हें बसों से लाया जाएगा, जिन्हें यात्रा से पहले पूरी तरह सैनिटाइज किया जाएगा। इन बसों में ठूस-ठूस कर लोग नहीं भरे जाएंगे क्योंकि सोशल डिस्टेंसिंग का भी ख्याल रखना होगा। घर लौटने से पहले और बाद में ऐसे सभी लोगों की स्क्रीनिंग होगी, जांच होगी कि कहीं किसी में कोरोना के लक्षण तो नहीं। इसके अलावा घर लौटने के बाद उन्हें अनिवार्य होम क्वारंटीन या क्वारंटीन सेंटर में कुछ दिनों तक रहना होगा।
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लॉकडाउन में फंसे प्रवासी मजदूरों, छात्रों, पर्यटकों आदि को तमाम दिक्कतों से जूझना पड़ रहा है। उनके लिए घर पहुंचना वाकई बहुत बड़ी राहत होगी। हालांकि, इसमें खतरें भी बहुत हैं। मिसाल के तौर पर नांदेड़ में फंसे श्रद्धालुओं का मामला देखिए। पंजाब और हरियाणा ने महाराष्ट्र के नांदेड़ में फंसे अपने-अपने राज्यों के श्रद्धालुओं को वापस बुलाया है। पंजाब पिछले कई दिनों से ऐसा कर रहा है। अब वहां से लौटे कई श्रद्धालुओं को कोरोना पॉजिटिव पाया गया है।
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फंसे हुए लोगों को उनके घर ले जाने के लिए ट्रेनों को चलाने की मांग हो रही है लेकिन केंद्र ने इससे इनकार किया है। सभी को बसों से ही ले जाया जाएगा और इसकी व्यवस्था संबंधित राज्य सरकारें करेंगी। लाखों लोगों को इस तरह बसों से ले जाना आसान भी नहीं है। देश के एक कोने से दूसरे कोने तक बसों के जरिए लोगों को लाना-ले जाना निश्चित तौर पर बहुत ही चुनौती वाला काम है। इसके अलावा अब जब इकॉनमी को खोलने का वक्त है, ऐसे वक्त में इस कदम से मजदूरों की कमी की समस्या और ज्यादा विकराल हो सकती है।
क्या है ‘हर्ड इम्यूनिटी’
दरअसल जब बहुत सारे लोग किसी संक्रामक बीमारी के प्रति इम्यून हो जाते हैं यानी उनमें उसके प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है तो वह बीमारी बाकी बचे असंक्रमित लोगों को अपनी चपेट में नहीं ले पाती है क्योंकि पूरा समूह ही इम्यून हो चुका होता है। इसी को हर्ड इम्यूनिटी कहते हैं। यह प्रतिरोधक क्षमता या तो वैक्सीन के जरिए मिलेगी या फिर बड़ी तादाद में लोगों के संक्रमित होने और उनके भीतर संबंधित बीमारी के प्रति इम्यूनिटी विकसित होने से होगी। उदाहरण के तौर पर न्यूमोनिया और मेनिन्जाइटिस जैसी बीमारियों की वैक्सीन देकर बच्चों को इसके प्रति इम्यून बनाने का नतीजा यह हुआ कि वयस्क लोगों के इन बीमारियों की चपेट में आने की गुंजाइश बहुत कम हो गई।
कैसे काम करती है हर्ड इम्यूनिटी
अगर कुछ लोगों में ही किसी बीमारी के प्रति इम्यूनिटी है तो वह संक्रामक बीमारी आसानी से फैलती है। अगर ज्यादातर लोगों में वैक्सीन या एक्सपोजर की वजह से इम्यूनिटी आ जाए तो वायरस का फैलना रुक जाता है।
कितने प्रतिशत लोगों में इम्यूनिटी मानी जाएगी हर्ड इम्यूनिटी
विशेषज्ञों के मुताबिक, कोविड-19 की बात करें तो अगर 60 से 85 प्रतिशत आबादी में इसके प्रति इम्यूनिटी आ जाए तो इसे हर्ड इम्यूनिटी करेंगे। डिप्थीरिया में यह आंकड़ा 75 प्रतिशत, पोलियो में 80 से 85 प्रतिशत और मीजल्स में 95 प्रतिशत है।