पाकिस्तान से आई इस हिंदू महिला ने अपनी बेटी का नाम रखा ‘नागरिकता’, जल्द मिलने की आस!

पाकिस्तान से आई इस हिंदू महिला ने अपनी बेटी का नाम रखा ‘नागरिकता’, जल्द मिलने की आस!

संसद में नागरिकता (संशोधन) विधेयक को लेकर राजनीतिक दल भले ही दो खेमों में विभाजित हो गए हैं, मगर ‘आरती’ इस विधेयक के समर्थन में है। उसका भविष्य इसी विधेयक पर टिका है। उसके दो छोटे छोटे बच्चे हैं। एक बच्चा दो साल का है, तो दूसरी बेटी है, जिसने छह दिन पहले ही जन्म लिया है। 2011 में पाकिस्तान से यह हिंदू महिला भारत आई थी। अभी तक इसे भारत की नागरिकता नहीं मिली है।

आरती ने अमर उजाला डॉट कॉम के साथ बातचीत में कहा कि मैं तो संसद और नागरिकता (संशोधन) विधेयक के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानती हूं। बस इतना पता है कि यह विधेयक हमें भारत का नागरिक होने का कानूनी हक दिला सकता है। मैं चाहती हूं कि विधेयक पास हो जाए। मेरे वश में और कुछ तो है नहीं, लेकिन मैने अपनी नवजात बेटी का नाम ‘नागरिकता’ रख दिया है। उम्मीद है कि ‘नागरिकता’ को भारत की नागरिकता मिल जाएगी।

2011 में भारत आए

दिल्ली के इलाके मंजनू का टीला इलाका, जहां पर पाकिस्तान से आए करीब 140 परिवार रहते हैं, आरती भी उन्हीं में से एक है। उसका पहले एक बेटा है, जिसका नाम लोकेश है। आरती बताती है कि हम 2011 में तीर्थयात्रा के नाम पर वीजा लेकर भारत आए थे। ऐसा भी नहीं है कि अब वहां पर कोई हिंदू नहीं है। पाकिस्तान के सिंध हैदराबाद में बहुत से हिंदू परिवार रहते हैं। वे चाहते हैं कि उन्हें भी किसी तरह भारत में जाने का अवसर मिल जाए। हमारे कई रिश्तेदार अभी वहीं पर हैं। हमें यहां आठ साल से ये कच्चा ठिकाना सिर छुपाने के लिए मिला है।

सुविधाएं न हों, लेकिन यही बहुत है कि ‘अमन चैन और अपनों’ के बीच सांस तो ले पा रहे हैं। बेटी के जन्म के बाद कई लोगों ने कहा, अपने मुताबिक कोई नाम रख लो। तभी मुझे पता चला कि देश में हमारी नागरिकता को लेकर कुछ चल रहा है। मैंने अपने बड़ों से बातचीत की, उन्होंने विस्तार से बताया कि नागरिकता (संशोधन) विधेयक का मामला संसद में है। अगर यह पास हो जाता है तो हमारे ऊपर से पाकिस्तानी होने का ठप्पा मिट जाएगा और हम गौरव से दुनिया को बता सकेंगे कि हम भारतीय हैं। बस यहीं से दिमाग में आया कि बेटी का नाम ‘नागरिकता’ रख दिया जाए। हमारी इस बस्ती में रहने वाले लोगों को जब यह पता चला तो उन्होंने हमें बधाई दी।

‘नागरिकता’ पर क्या है आरती का कहना

एक सवाल के जवाब में आरती हंस पड़ती हैं। उसकी बेटी किसी दूसरी महिला की गोद में थी। वजह, आरती को बैठने में दिक्कत हो रही थी, इसलिए वह लेटकर ही बात कर रही थी। उसने उल्टा एक सवाल हम पर ही दाग दिया। बोली, आप कौन सी ‘नागरिकता’ की बात कर रहे हैं। वैसे तो दोनों ‘नागरिकता’ मेरी हैं। एक मुझे मिल गई है और जबकि दूसरी का इंतजार है। उम्मीद है कि देर-सवेर वह नागरिकता भी मुझे मिल जाएगी।

आरती का कहना है कि अगर पाकिस्तान में होते तो पता नहीं, यह ले भी पाती या नहीं। वह कहती हैं, मैं अपनी बेटी ‘नागरिकता’ को टीचर बनाना चाहूंगी। तीन चार साल के बाद इसका सरकारी स्कूल एडमिशन करवा दूंगी। हम भी पढ़ना चाहते थे, लेकिन पाकिस्तान में दूसरी कक्षा के बाद बहुत कुछ खत्म होने लगता है। उसी का शिकार हम भी हुए। पढ़ाई छूट गई, सामने कुछ नजर नहीं आ रहा था। मौका मिलते ही हम भारत आ गए। अब यही उम्मीद कर रहे हैं कि नागरिकता के लिए आठ साल से इंतजार किया है। हो सकता है कि अब यह इंतजार खत्म हो जाए। जो भी हो, लेकिन अब यह तय है मेरी बेटी ‘नागरिकता’, इसी देश में बड़ी होगी, पढ़ेगी लिखेगी।

व्हाट्सएप पर समाचार प्राप्त करने के लिए यंहा टैप/क्लिक करे वीडियो समाचारों के लिए हमारा यूट्यूब चैनल सबस्क्राईब करे