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हमें यह आज़ादी संयोग से नहीं, बल्कि एक सदी से भी ज़्यादा के निरंतर संघर्ष और महान बलिदानों का परिणाम है: मदनी

हमें यह आज़ादी संयोग से नहीं, बल्कि एक सदी से भी ज़्यादा के निरंतर संघर्ष और महान बलिदानों का परिणाम है: मदनी
मौलाना महमूद मदनी

अपनी पहचान, सभ्यता और सिद्धांतों के साथ जीवित रहना चाहता है, उसे कुर्बानी देनी पड़ती है।

जिस धरती पर भाईचारा खत्म हो जाता है, वहां विकास का बीज नहीं पनपता।

धार्मिक और समकालीन शिक्षा को कम से कम प्राथमिक स्तर तक एकीकृत किया जाना चाहिए ताकि छात्र कुरआन को पढ़ और समझ सकें:मदनी

वक्फ की रक्षा के लिए एसजीपीसी मॉडल पर एक स्वतंत्र संस्था के गठन की मांग दोहराई और कहा कि मौजूदा हालात में नए वक्फ बनाने की बजाए निजी ट्रस्ट बनाना ज़्यादा सुरक्षित

नई दिल्ली। जमीयत उलमा-ए-हिंद की ओर से चैन्नई में स्थित जैतून सिग्नेचर में ‘आजादी की आवाज़ भारत का जश्न’ शीर्षक से कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसमें जमीयत अध्यक्ष एवं पूर्व राज्यसभा सदस्य मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि हमें यह आज़ादी संयोग से नहीं, बल्कि एक सदी से भी ज़्यादा के निरंतर संघर्ष और महान बलिदानों का परिणाम है।

रविवार को हुए कार्यक्रम में मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि इतिहास गवाह है कि जो अपनी पहचान, सभ्यता और सिद्धांतों के साथ जीवित रहना चाहता है, उसे कुर्बानी देनी पड़ती है। अगर हम आज कुर्बानी से बचते हैं, तो आने वाली पीढ़ियों को और भी बड़ी कुर्बानियां देनी होंगी। मौलाना मदनी ने देश के मौजूदा हालात पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आज देश एक नए चौराहे पर है, जहां नफरत को देशभक्ति का जामा पहनाया जा रहा है और अत्याचारियों को कानून के शिकंजे से बचाया जा रहा है। यह केवल मुसलमानों की समस्या नहीं है, बल्कि पूरे भारत के भविष्य से जुड़ी समस्या है। कहा कि सांप्रदायिकता की आग में न केवल अल्पसंख्यक जल रहे हैं, बल्कि देश का अस्तित्व भी जल रहा है। जिस धरती पर भाईचारा खत्म हो जाता है, वहां विकास का बीज नहीं पनपता। उन्होंने कहा कि जिस देश में अल्पसंख्यकों को न्याय नहीं मिलता, उसका दुनिया में कोई सम्मान नहीं होता। उन्होंने सलाह दी कि हमें नफरत का मुकाबला चरित्र, सेवा और बुद्धिमत्ता से करना होगा। जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष के अतिरिक्त एडवोकेट आसिम शहज़ाद ने भारतीय संविधान के संदर्भ में वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 पर अपने विचार व्यक्त करते हुए अल्पसंख्यकों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा की आवश्यकता पर बल दिया। हरमैन ट्रस्ट के अध्यक्ष रफीक हाजियार ने वर्तमान समय में मुसलमानों के शैक्षिक विकास पर प्रकाश डाला और धार्मिक मूल्यों के साथ-साथ समकालीन और मुख्यधारा की शिक्षा में निवेश के महत्व पर प्रकाश डाला। टीएडब्ल्यू ग्रुप ऑफ़ कंपनीज़ के अध्यक्ष टी रफीक अहमद ने शिक्षा के महत्व पर बात की, जबकि मक्का फ़रीदा ग्रुप ऑफ़ कंपनीज़ के अध्यक्ष रफीक अहमद ने एकता और संवैधानिक धर्मनिरपेक्षता विषय पर बात करते हुए देश के विकास के लिए सर्वधर्म सद्भाव को अनिवार्य बताया। मद्रास उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति केएन बाशा ने अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा में न्यायपालिका की भूमिका पर बात की और संविधान की रक्षा तथा ऐतिहासिक निर्णय देने में न्यायपालिका की भूमिका पर प्रकाश डाला। जमीअत के दृष्टिकोण और भविष्य की योजनाओं पर एक प्रस्तुति दी गई, जिसमें शैक्षिक विकास, कानूनी सहायता और सांप्रदायिक सद्भाव शामिल थे। श्रोताओं के विचारों और टिप्पणियों के बाद, जमीअत उलमा तमिलनाडु के महासचिव हसन अहमद ने धन्यवाद प्रस्ताव रखा। अन्य प्रमुख प्रतिभागियों में अमीर-ए- शरीयत मौलाना अब्दुल मजीद, इंजीनियर रिजवान, एडवोकेट शाह साहब, हाजी रफीक, अशरफ, मौलाना मुहम्मद उमर बैंगलोर शामिल थे।

मौलाना महमूद मदनी

शिक्षा, संगठन और व्यापार सफलता का आधार

मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि शिक्षा, संगठन और व्यापार सफलता के मुख्य स्तंभ हैं। उन्होंने दक्षिण भारत के मुसलमानों को शिक्षा, संगठन और व्यापार में उत्तर भारत से आगे बताया। कहा कि अभी भी बहुत काम किया जाना बाकी है, खासकर लड़कियों की शिक्षा और प्रशिक्षण के क्षेत्र में। उन्होंने कहा कि धार्मिक और समकालीन शिक्षा को कम से कम प्राथमिक स्तर तक एकीकृत किया जाना चाहिए ताकि छात्र कुरआन को पढ़ और समझ सकें और समकालीन विषयों में एक मजबूत आधार भी हासिल कर सकें।

दावत और ज़िम्मेदारी

मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि अल्लाह ने हमें इस ज़मीन पर पैदा किया है, यह हमारी मर्ज़ी नहीं, बल्कि उसकी हिकमत है। यहां हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम समुदाय को शिक्षित, सशक्त और मज़बूत बनाएं और इस्लाम धर्म के उच्च चरित्र का उदाहरण पेश करके लोगों का दिल जीतें। मोहम्मद साहब ने सबसे पहले अपने चरित्र से दिल जीते थे। हमें भी दुश्मनी नहीं, बल्कि दावत का रवैया अपनाना होगा। हमारा हथियार सच्चाई, ईमानदारी, करुणा और न्याय है। याद रखें असली दावत वह है जो सिर्फ़ कानों तक नहीं, बल्कि दिल तक पहुंचे।

वक्फ बोर्डों में सुधार और स्वायत्तता

मौलाना मदनी ने वक्फ की रक्षा के लिए एसजीपीसी मॉडल पर एक स्वतंत्र संस्था के गठन की मांग दोहराई और कहा कि मौजूदा हालात में नए वक्फ बनाने की बजाए निजी ट्रस्ट बनाना ज़्यादा सुरक्षित है। उन्होंने कहा कि जमीयत उलमा-ए-हिंद पिछले 35 सालों से यह मांग कर रही है। आज के हालात में मेरी व्यावहारिक सलाह यही है कि नए बंदोबस्त के बजाए अपने निजी ट्रस्ट बनाएं, क्योंकि सरकारी अधिग्रहण का ख़तरा हमेशा बना रहता है। इसके कई जीवंत उदाहरण हैं।

नशे का प्रसार एक गंभीर ख़तरा

मौलाना महमूद मदनी ने नशीले पदार्थों के बढ़ते प्रसार को एक गंभीर सामाजिक ख़तरा बताते हुए कहा कि यह शहरों तक सीमित नहीं, बल्कि कस्बों तक पहुंच गया है। रासायनिक नशीले पदार्थों के बढ़ते इस्तेमाल पर तत्काल सर्वेक्षण और अभिभावकों को प्रशिक्षण देने की ज़रूरत है, ताकि बच्चों को सकारात्मक गतिविधियों में लगाया जा सके। अगर हम बच्चों को सकारात्मक गतिविधियों में नहीं लगाएंगे, तो वह गलत रास्ते पर चले जाएंगे। यह काम सिर्फ़ अभिभावक ही कर सकते हैं। लेकिन संगठनों को उन्हें प्रशिक्षित और शिक्षित करने की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए। शादी से पहले, शादी के बाद और बच्चों के किशोरावस्था तक पहुंचने तक हर स्तर पर अभिभावकों का मार्गदर्शन ज़रूरी है।

गाजा के पीड़ित लोगों के साथ एकजुटता

मौलाना मदनी ने कहा कि अगर गाजा के हालात के कारण हमारी रातों की नींद में खलल न पड़े, तो हमें अपने ईमान का जायज़ा लेना चाहिए। अगर हम व्यावहारिक मदद नहीं कर सकते, तो कम से कम दुआ और भावनात्मक एकजुटता ज़रूर ज़ाहिर करनी चाहिए।

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