मिसाल: मासूम बेटे की अंत्येष्टि कर फिर ड्यूटी पर लौट आया ये कोरोना योद्धा
मुजफ्फरनगर में तैनात आरक्षी रिंकू ने ऐसे लोगों को आईना दिखाया है जो इस संकटकाल में किसी न किसी बहाने से घर पर बैठे हैं ताकि ड्यूटी न करना पड़े। वह अपने मासूम बेटे को खोने का गम दिल में लिए, पत्नी को किसी तरह ढांढ़स बंधाते हुए चार दिन में ही ड्यूटी पर लौट आए। महामारी के दौर में ऐसे डॉक्टर भी सामने आए हैं जिनके साथी तो बहाने से छुट्टी लेकर ड्यूटी छोड़ गए, लेकिन वे तब तक मरीजों से जूझते रहे जब तक कि वे ठीक नहीं हो गए।
अपने गम से ज्यादा थी इस महामारी की चिंता
लॉकडाउन के दौरान आरक्षी रिंकू कुमार के इकलौते बेटे हार्दिक की अचानक तबीयत खराब हुई। छुट्टी लेकर वह ससुराल में मेरठ गए। वहां बीमार बेटे को निजी अस्पताल में भर्ती कराया, लेकिन तीन वर्षीय बेटे ने 15 अप्रैल को दम तोड़ दिया। बेटे को खोने पर उन्हें और पत्नी रजनी पर गम का पहाड़ टूट पड़ा। उन्होंने वैश्विक महामारी को इस सदमे से बड़ा बताते हुए बेटे की अंत्येष्टि ससुराल अब्दुल्लापुर मेरठ में ही कर दी। लॉकडाउन की वजह से वह अपने पैतृक गांव सदुल्लापुर थाना हापुड़ भी नहीं जा पाए।
वहीं अंतिम संस्कार की क्रियाएं पूरी कराकर अपने गांव जाए बिना ही लौट आए। बकौल रिंकू उन्हें दुख की घड़ी में गमजदा पत्नी के साथ रहने को इमरजेंसी छुट्टी मिल जाती, लेकिन उन्हें घर के गम से ज्यादा कोरोना महामारी की चिंता सताती रही। उन्होंने चार दिन बाद आकर पुलिस सेवाओं के प्रति फर्ज निभाया। उन्होंने राष्ट्रहित में पत्नी और एक साल की बेटी को ससुराल मेरठ छोड़कर थाने में ड्यूटी जॉइन कर ली। कहा कि परिवार से बड़ा राष्ट्र का संकट है।