शिक्षक दिवस – आपको एक नई दिशा देंगे गीता के ये संदेश

शिक्षक दिवस – आपको एक नई दिशा देंगे गीता के ये संदेश

भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन के केवल मित्र या फिर सारथी ही नहीं थे बल्कि अर्जुन के जीवन में भगवान कृष्ण उस गुरु की तरह थे, जो कठिन से कठिन समय में भी अपने शिष्य का हाथ कभी नहीं छोड़ता। शिक्षक या गुरु का यही साथ किसी भी शिष्य के जीवन को प्रकाशमान करने के लिए काफी होता है।

हर साल 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस इसलिए मनाया जाता है क्योंकि इस दिन सर्वपल्ली राधा कृष्णन का जन्मदिन होता है। राधा कृष्णन के जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। आइए, जानते हैं भगवान श्रीकृष्ण गीता के माध्यम से हमें क्या संदेश देते हैं।

  1. महाभारत में अर्जुन को गीता ज्ञान देते हुए श्रीकृष्ण कहते हैं कि मनुष्य को स्वंय से बेहतर कोई नहीं जान सकता। संसार की कोई अन्य शक्ति उसका आकलन नहीं कर सकती। उसे अपने बारे में जितना पता होता है, उतना किसी और को पता नहीं हो सकता। जिस दिन मनुष्य अपने गुणों और अवगुणों को जान लेता है, वो महान बन जाता है।
  2. भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि व्यर्थ की चिंताओं में पड़ने वाला मनुष्य अपना समय व्यर्थ करता है इसलिए अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए व्यर्थ की चिंताओं और इच्छाओं से दूर रहकर लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयास करते रहना चाहिए।
  3. भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि अगर आप अपनी गलतियों से कुछ सीखते हो, तो गलतियां सीढ़ियाँ बनती हैं और अगर नहीं सीखते हैं, तो गलतियां सागर हैं, फैसला आपका है चढ़ना है या डूबना है।
  4. निंदा से घबराकर अपने लक्ष्य को न छोड़े, क्योंकि लक्ष्य मिलते ही निंदा करने वालों की राय बदल जाती हैं।
  5. भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि क्रोध एक ऐसी बीमारी की तरह है, जो आपको भीतर से खोंखला करती रहती है। आप अगर हमेशा क्रोध करते रहेंगे, तो रोगी बन जाएंगे। आपकी शक्ति व्यर्थ होती जाएगी और एक दिन क्रोध आपको अपना ग्रास बना लेगा, इसलिए क्रोध का त्याग जरूरी है।
  6. श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि सरल व्यक्ति के साथ किया गया छल-कपट आपके लिए विनाश के द्वार खोल देता है। शुरुआत में कपटी मनुष्य अपनी जीत का आनंद लेता है लेकिन धीरे-धीरे इसका नकारात्मक परिणाम सामने लगता है और कपटी मनुष्य पतन की ओर जाने लगता है।
  7. श्रीकृष्ण कहते हैं कि इस संसार में यह बिल्कुल जरूरी नहीं है कि आपको अपना मनपसंद मित्र या साथ मिल ही जाएगा लेकिन यह बात सही है कि आपको अकेले रहने के भय से किसी गलत साथी का चुनाव नहीं करना चाहिए, वरना इसके परिणाम बहुत ही बुरे हो सकते हैं। हमेशा यह बात याद रखनी चाहिए जिसका कोई नहीं होता, उसका भगवान होता है।
  8. भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि मनुष्य को कभी भी अंहकार नहीं करना चाहिए। अंहकार करने वाला मनुष्य हमेशा पतित ही होता है, बेशक से वह मनुष्य प्रतिभा का कितना ही धनी हो, इसलिए एक योद्धा को अंहकार करने से बचना चाहिए।
  9. श्रीकृष्ण ने कर्मयोग, भक्तियोग और ज्ञानयोग को ही कल्याण का प्रमुख साधन बताया है। कृष्ण कहते हैं कि मनुष्य का लक्ष्य कर्म करते रहना है, उसे कभी भी भाग्य के भरोसे नहीं बैठना चाहिए।
  10. गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि समय कभी भी एक जैसा नहीं रहता है। जो मनुष्य दूसरे मनुष्य का बुरा समय लाने के लिए जिम्मेदार होता है, उसे भी एक ही दिन बुरे समय से गुजरना पड़ता है।
  11. श्रीकृष्ण कहते हैं कि किसी के साथ चलते रहने से न ही आप अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं और ना ही आंतरिक खुशी, इसलिए आपको कर्म करते रहने के लिए हमेशा अकेले ही चलते रहना चाहिए। निर्भीक होकर अकेले चलते हुए कर्म करते रहें।
  12. जो लोग बुद्धि को छोड़कर भावनाओं में बह जाते हैं, उन्हें हर कोई मुर्ख बना सकता हैं। कोई भी इंसान अपने जन्म से नहीं, बल्कि अपने कर्मो से महान बनता है।
  13. जब हमारा मन कमजोर होता हैं, तब परिस्थितियां समस्या बन जाती हैं और जब हमारा मन कठोर होता है तब परिस्थितियां चुनौती बन जाती हैं। जब हमारा मन मजबूत होता हैं, तब परिस्थितियां अवसर बन जाती हैं।
  14. जो जितना शांत होता है, वो उतनी ही गहराई से अपनी बुद्धि का प्रयोग कर सकता हैं।
  15. नकारात्मक विचारों का आना तय है लेकिन यह आप पर निर्भर करता हैं, की आप उन्हें महत्व देते हैं या फिर अपने सकारात्मक विचारों पर ही ध्यान लगाए रहते हैं।
  16. कोई भी अपने कर्म से भाग नहीं सकता, कर्म का फल तो भुगतना ही पड़ता हैं। इसलिए अच्छे कर्म करो ताकि अच्छे फल मिले।
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