नौकरी में महिला आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, कहा- सभी के लिए है सामान्य श्रेणी इसमें मेरिट ही आधार
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के आरक्षण पर अहम व्यवस्था देते हुए कहा है कि अगर कोई आरक्षित वर्ग की महिला सामान्य वर्ग के लिए तय कटआफ अंक से ज्यादा लाती है तो उसे सामान्य वर्ग में जाने का हक है। यानी वह महिला उम्मीदवार सामान्य वर्ग में गिनी जाएगी उसे आरक्षित वर्ग में नहीं गिना जाएगा। शीर्ष अदालत ने फैसले में कहा कि ओपन (सामान्य) कैटेगरी सभी के लिए है उसमें आरक्षित वर्ग के लोग भी आते हैं और ओपेन कैटेगरी में सिर्फ मेरिट ही आधार होता है।
महिला उम्मीदवार को नौकरी पर रखने का आदेश
शीर्ष अदालत ने महिलाओं के मामले में वर्टिकल यानी सामाजिक पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण और हारिजेंटल यानी महिला, भूतपूर्व सैनिक आदि को दिए जाने वाले विशेष आरक्षण के फंसे पेच को सुलझाते हुए यह व्यवस्था दी है। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सिपाही भर्ती में सामान्य वर्ग की कटआफ से ज्यादा अंक लाने वाली अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की आरक्षित वर्ग की महिला उम्मीदवार को नौकरी पर रखने का आदेश दिया है।
महिलाओं के बारे में नहीं थी कोई व्यवस्था
मालूम हो कि पुरुषों के मामले में पहले से ही व्यवस्था है कि अगर आरक्षित वर्ग का पुरुष उम्मीदवार सामान्य वर्ग की तय कटआफ और मेरिट में ज्यादा अंक लाता है तो उसे सामान्य वर्ग का माना जाता है, लेकिन महिलाओं के बारे में अभी तक इस तरह की कोई स्पष्ट व्यवस्था नहीं थी। महिलाओं के मामले में वर्टिकल और हारिजेंटल आरक्षण का मामला फंसता था। यह व्यवस्था जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस एस. रविंद्र भट और जस्टिस ऋषिकेश राय की पीठ ने उत्तर प्रदेश में 2013 की सिपाही भर्ती मामले में फैसला सुनाते हुए शुक्रवार को दी।
ज्यादा अंक पाने वाली महिलाओं को दें नौकरी
सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी श्रेणी की उम्मीदवार सोनम तोमर की अर्जी स्वीकार करते हुए कहा कि ओबीसी की महिला श्रेणी की सभी उम्मीदवार जिन्होंने ओपन (सामान्य) कैटेगरी की कटऑफ 274.8928 से ज्यादा अंक अर्जित किए हैं, उन्हें उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही की नौकरी दी जाए। चार हफ्ते में उन्हें उचित पत्र इस संबंध में भेज दिए जाएं। वे लोग उसके बाद दो सप्ताह में नौकरी के प्रस्ताव पर अपना जवाब दे देंगी। जवाब आने के बाद अन्य औपचारिकताएं पूरी की जाएं और नियुक्ति पत्र जारी किए जाएं।
कम नंबर पाने वालों पर कही यह बात
इस फैसले में कोर्ट ने विशेष ध्यान रखते हुए कहा है कि वैसे तो जिनके अंक कम थे और नियुक्त कर दिए गए हैं उन्हें हटा दिया जाना चाहिए, लेकिन इस मामले में वे लोग ट्रेनिंग पर भेजे जा चुके हैं और अभी पद बचे हुए हैं इसलिए उन्हें डिस्टर्ब नहीं किया जाए।
उत्तर प्रदेश सरकार पर लगा था यह आरोप
इस मामले में ओबीसी श्रेणी की सोनम की वकील विभा दत्त मखीजा ने उत्तर प्रदेश सरकार पर महिलाओं के साथ भेदभाव का आरोप लगाते हुए कहा था कि उनकी मुवक्किल ने सामान्य वर्ग की अंतिम चयनित उम्मीदवार से ज्यादा अंक अर्जित किए हैं, लेकिन उसे नौकरी नहीं दी गई।
उत्तर प्रदेश सरकार ने दिए थे ये तर्क
राज्य सरकार का कहना है कि महिलाओं का कोटा सामान्य वर्ग से ही भर गया है इसलिए इन्हें नियुक्ति नहीं दी जा सकती। मखीजा का कहना था कि जब आरक्षित श्रेणी के पुरुषों को समान्य श्रेणी की मेरिट में स्थान पाने पर समान्य वर्ग में गिना जाता है तो महिलाओं के साथ भी यही होना चाहिए।