नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को आपराधिक मामलों में आरोपितों की रिहाई को सरल बनाने के लिए उन्हें जमानत देने के लिए एक नया कानून बनाने पर विचार करने का निर्देश दिया है।
समाचार एजेंसी पीटीआइ के अनुसार जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने सोमवार को कई दिशा-निर्देश जारी करते हुए कहा कि जांच एजेंसियां और उनके अधिकारी आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 41-ए (आरोपित को पुलिस अधिकारी के समक्ष पेश होने का नोटिस जारी करना) का पालन करने के लिए बाध्य हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाई कोर्टो से उन विचाराधीन कैदियों का पता लगाने को भी कहा है जो जमानत की शतरें को पूरा करने में समर्थ नहीं हैं। न्यायालय ने ऐसे कैदियों की रिहाई में मदद के लिए उचित कदम उठाने का भी निर्देश दिया। सर्वोच्च अदालत का आम तौर पर मानना है कि जमानत याचिका को दो हफ्ते में निस्तारित किया जाए। अग्रिम जमानत की याचिका छह हफ्ते में पूरी होनी चाहिए।
चार महीने में इस संबंध में स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने को कहा गया
सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाई कोर्टो और राज्यों व केंद्र-शासित प्रदेशों की सरकारों से चार महीने में इस संबंध में स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने को कहा। न्यायालय ने सीबीआइ द्वारा एक व्यक्ति की गिरफ्तारी से जुड़े मामले में फैसला सुनाए जाने के दौरान ये दिशा-निर्देश जारी किए।
माल्या को सुनाई गई सजा
वहीं, दूसरी ओर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने विजय माल्या के खिलाफ अवमानना मामले में सजा सुनाई। माल्या को चार महीने की जेल और 2000 रुपये का जुर्माना भरना होगा। साथ ही कोर्ट ने माल्या से 8 फीसद ब्याज के साथ 4 करोड़ (40 मिलियन) डालर की रकम चार सप्ताह के भीतर जमा करने का आदेश भी दिया है। मामले की सुनवाई जस्टिस यूयू ललित, रवींद्र एस भट और पीएस नरसिम्हा की बेंच ने की। बीते 10 मार्च को इस मामले पर कोर्ट ने अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा था कि माल्या के खिलाफ सुनवाई में अब कोई प्रगति नहीं हो सकती।