ज्योतिरादित्य और कांग्रेस के 22 विधायकों के इस्तीफे, मध्य प्रदेश विधानसभा में बीजेपी के लिए यह है नंबर गेम

ज्योतिरादित्य और कांग्रेस के 22 विधायकों के इस्तीफे, मध्य प्रदेश विधानसभा में बीजेपी के लिए यह है नंबर गेम
हाइलाइट्स
  • सीएम कमलनाथ ने सभी 20 मंत्रियों के इस्तीफे ले लिए, नई कैबिनेट बनाने का फैसला किया
  • मध्य प्रदेश में 230 विधानसभा सीटें हैं, 2 विधायकों का निधन हो गया था
  • फिलहाल, कांग्रेस के 114 विधायक थे, इसमें 19 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया है
  • विधायकों के इस्तीफे के बाद कांग्रेस सरकार अल्पमत में है और बीजेपी के पास पूरा मौका है

भोपाल/नई दिल्ली
मध्य प्रदेश में बीजेपी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपने पाले में करके कांग्रेस सरकार की जड़ें हिला दी हैं। सिंधिया गुट के 20 विधायकों के इस्तीफे के बाद मंगलवार दोपहर में कांग्रेस के दो और विधायकों ने इस्तीफा दे दिया है। कांग्रेस के इन 22 विधायकों का इस्तीफा स्वीकार होते ही विधानसभा की स्ट्रेंथ सिर्फ 206 विधायकों की बचेगी और बहुमत के लिए सिर्फ 104 विधायकों के समर्थन की आवश्यकता होगी।

अभी कैसा है समीकरण
मध्य प्रदेश में 230 विधानसभा सीटें हैं। राज्य के 2 विधायकों का निधन हो गया जिसके बाद विधानसभा की मौजूदा शक्ति 228 हो गई है। कांग्रेस के 114 विधायक थे। इस कारण सरकार बनाने का जादुई आंकड़ा 115 रहा। कांग्रेस को 4 निर्दलीय, 2 बीएसपी और एक एसपी विधायक का समर्थन मिला हुआ है। इस तरह कांग्रेस ने कुल 121 विधायकों के समर्थन से सरकार बनाई थी जबकि बीजेपी के पास 107 विधायक हैं।

विजया राजे सिंधिया
  • विजया राजे सिंधिया

    ग्वालियर पर राज करने वाली राजमाता विजयराजे सिंधिया ने 1957 में कांग्रेस से अपनी राजनीति की शुरुआत की। वह गुना लोकसभा सीट से सांसद चुनी गईं। सिर्फ 10 साल में ही उनका मोहभंग हो गया और 1967 में वह जनसंघ में चली गईं। विजयराजे सिंधिया की बदौलत ग्वालियर क्षेत्र में जनसंघ मजबूत हुआ और 1971 में इंदिरा गांधी की लहर के बावजूद जनसंघ यहां की तीन सीटें जीतने में कामयाब रहा। खुद विजयराजे सिंधिया भिंड से, अटल बिहारी वाजपेयी ग्वालियर से और विजय राजे सिंधिया के बेटे और ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया गुना से सांसद बने।
  • माधव राव सिंधिया

    माधव राव सिंधिया अपने मां-पिता के इकलौते बेटे थे। वह चार बहनों के बीच अपने माता-पिता की तीसरी संतान थे। माधवराव सिंधिया सिर्फ 26 साल की उम्र में सांसद चुने गए थे, लेकिन वह बहुत दिन तक जनसंघ में नहीं रुके। 1977 में आपातकाल के बाद उनके रास्ते जनसंघ और अपनी मां विजयराजे सिंधिया से अलग हो गए। 1980 में माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीतकर केंद्रीय मंत्री भी बने। उनका विमान हादसे में 2001 में निधन हो गया। ज्योतिरादित्य सिंधिया इनके पुत्र हैं।
  • वसुंधरा राजे सिंधिया

    विजयराजे सिंधिया की बेटियों वसुंधरा राजे सिंधिया और यशोधरा राजे सिंधिया ने भी राजनीति में एंट्री की। 1984 में वसुंधरा राजे बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल हुईं। वह कई बार राजस्थान की सीएम भी बन चुकी हैं।
  • यशोधरा राजे सिंधिया

    वसुंधरा राजे सिंधिया की बहन यशोधरा 1977 में अमेरिका चली गईं। उनके तीन बच्चे हैं लेकिन राजनीति में किसी ने दिलचस्पी नहीं दिखाई। 1994 में जब यशोधरा भारत लौटीं तो उन्होंने मां की इच्छा के मुताबिक, बीजेपी जॉइन की और 1998 में बीजेपी के ही टिकट पर चुनाव लड़ा। पांच बार विधायक रह चुकी यशोधरा राजे सिंधिया शिवराज सिंह चौहान की सरकार में मंत्री भी रही हैं।
  • ज्योतिरादित्य सिंधिया

    2001 में एक हादसे में माधवराव सिंधिया की मौत हो गई तो ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने पिता की विरासत संभालते रहे और कांग्रेस के मजबूत नेता बने रहे। गुना सीट पर उपचुनाव हुए तो ज्योतिरादित्य सिंधिया सांसद चुने गए। 2002 में पहली जीत के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया कभी चुनाव नहीं हारे थे लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें करारा झटका लगा। कभी उनके ही सहयोगी रहे कृष्ण पाल सिंह यादव ने ही सिंधिया को हरा दिया।
  • दुष्यंत सिंह

    राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया के बेटे दुष्यंत भी बीजेपी में ही हैं। वह अभी राजस्थान की झालवाड़ सीट से सांसद हैं।
  • पद्मा राजे सिंधिया

    पद्मा राजे सिंधिया जिवाजी राव और विजयाराजे सिंधिया की पहली संतान थीं। पद्मा का निधन पिता जिवाजी राव के निधन के तीन साल बाद ही हो गया। जिवाजी राव ने 1961 में जबकि पद्मा ने 1964 में अंतिम सांस ली।
  • उषा राजे सिंधिया

    जिवाजी राव और विजयाराजे की दूसरी पुत्री उषा राजे सिंधिया राजनीति से दूर रहीं। उन्होंने नेपाल के शमशेर जंग बहादुर राणा से विवाह किया।

 

इस्तीफे के बाद कैसा है समीकरण
कांग्रेस के 22 विधायकों के इस्तीफे के बाद विधानसभा की मौजूदा संख्या घटकर 206 रह गई है। ऐसे में बहुमत के लिए सिर्फ 104 विधायकों की आवश्यकता है। बीजेपी के खुद के 107 विधायक हैं। ऐसे में राज्यपाल का न्योता मिलते ही बीजेपी तुरंत सरकार बनाएगी और विधानसभा में आसानी से बहुमत भी साबित कर लेगी।

“मैं मध्य प्रदेश का वरिष्ठ विधायक हूं। 1980 से विधायक हूं। कमलनाथ हों या फिर कोई हों। हम एक साथ कांग्रेस में आए थे, इंदिरा के समय में। इस बार मध्य प्रदेश में वरिष्ठ होने के बाद भी मेरी उपेक्षा होती रही। मुझे प्रताड़ित किया गया। मैं अत्यंत दुखी हूं। मैं अपनी इच्छा से कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे रहा हूं।”-बिसाहूलाल सिंह
निर्दलीयों का साथ मिला तो और मजबूती
मध्य प्रदेश में चार निर्दलीय विधायकों ने कमलनाथ सरकार को समर्थन दे रखा है। ताजा घटनाक्रम में सरकार गिरने के बाद ये विधायक भी पाला बदल सकते हैं। अगर ये चारों विधायक भी बीजेपी के साथ आ जाते हैं तो नई सरकार के समर्थन में विधायकों का आंकड़ा बढ़कर 111 हो जाएगा। बाद में उपचुनाव में बीजेपी को 22 में छह सीटों पर ही जीत हासिल करने की जरूरत होगी। अगर निर्दलीय बीजेपी के साथ नहीं आते तो पार्टी को उपचुनाव में कम-से-कम 10 सीटें जीतनी होंगी। वहीं, कांग्रेस को अगर फिर से सरकार बनानी है तो उसे उपचुनाव में कम-से-कम 21 सीटें जीतनी होंगी क्योंंकि अब उसके विधायकों की संख्या घटकर 94 रह गई है। अगर बीएसपी-एसपी के तीनों विधायकों का समर्थन कांग्रेस के साथ बरकरार रहा तो पार्टी को 18 सीटें जीतनी होगी। अगर चार निर्दलीय विधायकों ने भी पाला नहीं बदला तो कांग्रेस को सिर्फ 14 सीटें जीतनी होगी।