पंजाब के लोगों से छिपाई जा रही है सिंघु बॉर्डर पर किसानों के प्रदर्शन की असली सच्चाई, पढ़िये- पूरा मामला
नई दिल्ली : तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों को रद करने की मांग लेकर दिल्ली-एनसीआर के बॉर्डर पर चल रहा किसानों का प्रदर्शन भले ही 100 से अधिक हो चुका है, लेकिन अब यह आंदोलन जन समर्थन खोता जा रहा है। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह आंदोलन से लोगों को परेशान होना है। इस बीच दिल्ली-हरियाणा स्थित सिंघु बॉर्डर पर भले ही प्रदर्शनकारियों की संख्या कम हो रही है, लेकिन कृषि कानून विरोधी अब ट्रैक्टर-ट्रॉलियों की संख्या बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं। इसके पीछे किसान संगठनों की बड़ी योजना है। किसान आंदोलन से जुड़े लोगों की मानें तो ऐसा इसलिए किया जा रहा है, ताकि पंजाब तक यह खबर न जाए कि सिंघु बॉर्डर खाली होने लगा है। दरअसल, अब सिंघु बॉर्डर पर ऐसा नजारा देखने को मिल रहा है कि प्रदर्शनकारी कम नजर आ रहे हैं और ट्रैक्टर ज्यादा।
जानकारी के मुताबिक, धरना स्थल पर किसानों की संख्या इतना कम हो गई है कि संयुक्त किसान मोर्चा के नेता भी परेशान हैं। बृहस्पतिवार को तो कुल मिलाकर 50 प्रदर्शनकारी भी मौजूद नहीं थे। वहीं, कुंडली गांव की संकरी गलियों से एक-एक कर ट्रैक्टर ट्रालियों का सिंघु बॉर्डर-नरेला रोड पर आना जारी है। नरेला रोड पर ट्रैक्टरों को खड़ा करके तिरपाल से ढक दिया गया है। हालांकि चोरी चुपके से हरियाणा के कुंडली गांव से ट्रैक्टरों को इधर लाया जा रहा है, ताकि पंजाब से अगर कोई प्रदर्शनकारी सिंघु बॉर्डर पर आए तो ट्रॉलियों में रह सके। बता दें कि 5 मार्च को अमृतसर से सिंघु बॉर्डर पर भारी संख्या में ट्रैक्टरों के आने की बातें की जा रही थी, लेकिन कम संख्या में ट्रैक्टर यहां आए। पंजाब से यह बात छिपाई जा रही है कि सिंघु बॉर्डर पर किसानों का प्रदर्शन फीका पड़ता जा रहा है।
किसान संगठनों में फूट
26 जनवरी को दिल्ली में किसान ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसा के दौरान किसान संगठनों के बीच फूट की बड़ी खबर आ रही है। आलम यह है कि कृषि कानून विरोधी आंदोलन से धीरे-धीरे संयुक्त किसान मोर्चा के बड़े नेता दूरी बनाते दिखने लगे हैं। बताया जा रहा है कि गणतंत्र दिवस के बाद से अब तक संयुक्त किसान मोर्चा की चार बार बैठक हो चुकी है, लेकिन इसमें शिव कुमार कक्का, गुरनाम सिंह चढ़ूनी जैसे नेता शामिल नहीं हुए हैं। इतन ही नहीं, आंदोलन की शुरुआत में ज्यादा सक्रिय रहने वाले योगेंद्र यादव भी दिल्ली हिंसा के बाद एक बार ही बैठक में शामिल हुए हैं।
इस आंदोलन के बाद राकेश टिकैत की सक्रियता बढ़ने और उन्हें अधिक तवज्जो मिलने से भी इस आंदोलन में कुछ बड़े नेताओं की सक्रियता कम हो गई। शुरुआत में आंदोलन स्थल पर लगातार मौजूद रहकर मोर्चा की हर गतिविधि में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने वाले और मोर्चा की समन्वय समिति के प्रमुख सदस्य शिव कुमार कक्का 26 जनवरी से आंदोलन से दूर हैं। हालांकि इसके पीछे पत्नी की बीमारी को कारण बताया जा रहा है, लेकिन 26 जनवरी की ¨हसा और इसके बाद किसी एक नेता पर आंदोलन केंद्रित होने से उनकी नाराजगी स्पष्ट है।इसी तरह भारतीय किसान यूनियन (चढ़ूनी) के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने भी कुंडली से दूरी बना रखी है। चढ़ूनी की अध्यक्षता में तो हरियाणा संयुक्त किसान मोर्चा का अलग से गठन भी कर लिया है और टिकैत और चढ़ूनी के बीच का विवाद भी किसी से छिपा नहीं है। इस आंदोलन से पूर्व टिकैत गुट की ओर से चढ़ूनी के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज करा रखा है।
आंदोलन से बड़े नेताओं की दूरी आंदोलनकारियों को भी खटक रही है। इसी वजह से धीरे-धीरे आंदोलनस्थल पर भीड़ कम होती जा रही है। हालांकि इसके लिए फसल कटाई का समय आने का तर्क जरूर दिया जा रहा है, लेकिन अपने बड़े नेताओं को मंच पर नहीं देखने और रोड जाम, रेल चक्का जाम आदि बड़े आंदोलन में उनकी भागीदारी नहीं होने से आंदोलन स्थल पर डटे लोग हतोत्साहित होकर इस पर सवाल जरूर उठा रहे हैं।
भारत बंद को लेकर किसान नेता राकेश टिकैत ने दिया अहम बयान
उधर, भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत का कहना है कि आगामी 26 मार्च को प्रस्तावित भारत बंद को सफल बनाने के लिए तैयारी अभी से शुरू कर दी गई है। उन्होंने कहा कि इसे सफल बनाने के लिए 17 मार्च को मजदूर संगठनों व अन्य अधिकार संगठनों के साथ समन्वय बैठक की जाएगी। राकेश टिकैत ने कहा कि जब तक मांग पूरी नहीं होती तब तक धरना जारी रहेगा। उन्होंने बताया कि वह 13 मार्च को पश्चिमी बंगाल जाएंगे और यहां कई जिलों में किसानों के साथ बैठक कर एमएसपी का हाल जानेंगे। इसके साथ ही वह इसी माह पांच से छह प्रदेशों का भ्रमण कर वहां बैठक करेंगे।