आरोपी को मिलने वाली अग्रिम जमानत की अवधि निश्चित समय तक नहीं होगी सीमित : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि गिरफ्तारी के डर से आरोपी को मिलने वाली अग्रिम जमानत की अवधि महज निश्चित समय तक सीमित नहीं होगी। जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस इंदिरा बनर्जी, जस्टिस मुकेश कुमार शाह, जस्टिस विनीत शरण और जस्टिस रविंद्र भट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि इसकी समय सीमा तय नहीं की जा सकती।
दरअसल 15 मई, 2018 को एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने इस मामले को बड़ी पीठ के पास विचार के लिए भेजा था कि क्या सीआरपीसी की धारा 438 के तहत किसी व्यक्ति को केवल निश्चित समय तक अग्रिम जमानत दी जा सकती है या वह नियमित जमानत ले सकता है। धारा 438 में किसी व्यक्ति को गिरफ्तारी की आशंका को देखते हुए अग्रिम जमानत का प्रावधान है।
ग्राम न्यायालय नहीं बनाने पर सुप्रीम कोर्ट ने आठ राज्यों पर लगाया जुर्माना
जस्टिस एनवी रमणा की पीठ ने हरियाणा, पंजाब, चंडीगढ़, असम, गुजरात, तेलंगाना, ओडिशा और पश्चिम बंगाल सरकार पर ग्राम न्यायालय नहीं खोलने और इस संदर्भ में शीर्ष कोर्ट में जवाब दाखिल नहीं करने पर एक एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया। सभी राज्यों व केंद्र शासित राज्यों को ग्राम न्यायालय की स्थापना के लिए एक महीने के भीतर अधिसूचना जारी करने का आदेश दिया।
जस्टिस रमणा ने कहा, हम देख रहे हैं कि अब तक कई राज्यों व केंद्र शासित राज्यों ने इस दिशा में कोई पहल नहीं की है। शीर्ष कोर्ट ने एक एनजीओ की जनहित याचिका पर पिछले साल 2 सितंबर को केंद्र, राज्य व केंद्र शासित राज्यों की सरकारों नोटिस जारी किया था। इस याचिका में शीर्ष कोर्ट से राज्यों व केंद्र शासित राज्यों को ग्राम न्यायालय स्थापित करने की अधिसूचना जारी करने का निर्देश देने की मांग की गई थी।
अब तक सिर्फ 208 ग्राम न्यायालय
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