यूपी में भाजपा के खिलाफ ‘बिहार माडल’ आजमाएगा विपक्ष, भगवा आंधी रोकने को तीसरे मोर्चे की संभावना

- लोकसभा चुनाव में भगवा आंधी को रोकने के लिए तीसरे मोर्चे की संभावना। बसपा या कांग्रेस सहित छोटे दलों को साथ लेकर मैदान में उतर सकती सपा। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से लगातार साबित हो रहा है कि प्रदेश में विपक्ष कमजोर है।
लखनऊ। 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस ने हाथ मिलाया, लेकिन भाजपा नहीं रुकी। 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा ने धुर विरोधी बसपा को गले लगाया, लेकिन मोदी लहर में सब ढेर। चुनाव बाद दोनों गठबंधन टूटे, हार का ठीकरा एक-दूसरे के सिर पर फोड़ा। ‘सियासी दोस्त’ फिर बैरी हो गए, लेकिन राजनीति में न दोस्ती स्थायी और न ही दुश्मनी।
2024 के लोकसभा चुनाव में फिर से दुश्मन के दुश्मन दोस्त बनकर एकजुट हो सकते हैं, बिहार के तख्तापलट ने इस सुगबुगाहट के बीच उत्तर प्रदेश में बो दिए हैं। संभावना जताई जा रही है कि सीटों के बंटवारे का पेंच न फंसा तो भगवा आंधी को रोकने के लिए ‘बिहार माडल’ पर सपा, बसपा या कांग्रेस के साथ दूसरे छोटे दलों को साथ लेकर तीसरा मोर्चा खड़ा कर सकती है।
मिशन-2024 के लिए भाजपा ने यदि प्रदेश की 80 में से 75 सीटें जीतने का लक्ष्य तय किया है, उसके पीछे उसकी संगठनात्मक मजबूती के साथ विपक्ष की कमजोरी भी है। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से लगातार साबित होता जा रहा है कि प्रदेश में विपक्ष कमजोर है।
मुख्य विपक्षी सपा ने हर ताकत आजमाई है। 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा, लेकिन भाजपा गठबंधन 325 सीटें जीतने में सफल रहा। कांग्रेस को ‘बोझ’ बताकर सपा मुखिया अखिलेश यादव ने झटक दिया। 2019 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश ने अप्रत्याशित निर्णय किया। चिर प्रतिद्वंद्वी बसपा के साथ भी गठबंधन किया। साथ में राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) भी रहा।
भाजपा की रणनीति के आगे अखिलेश-मायावती की जोड़ी भी विफल रही। बसपा को दस सीटें मिलीं तो सपा पांच पर सिमट गई। भाजपा गठबंधन ने अपना दल (एस) और निषाद पार्टी के साथ मिलकर 64 सीटों पर विजय पताका फहराई। इसके बाद सपा मुखिया ने बड़े दलों काे अनुपयोगी बताते हुए कहा कि अब छोटे दलों के साथ ही गठबंधन करेंगे। इस प्रयोग को उन्होंने 2022 के विधानसभा चुनाव में आजमाते हुए रालोद, सुभासपा, अपना दल कमेरावादी और महान दल के साथ गठबंधन किया।
भाजपा को भले ही सत्ता में आने से न रोक सके, लेकिन सपा की सीटें जरूर 47 से बढ़कर 111 हो गईं और सपा गठबंधन को 125 पर जीत मिली। इस चुनाव में भी आखिर तक चर्चा चलती रही कि कांग्रेस भी इस गठबंधन में शामिल हो सकती है। प्रत्यक्ष तौर पर गठजोड़ न भी रहा हो, तब भी सपा और कांग्रेस का आपसी समझौता हमेशा दिखा। कांग्रेस ने कभी मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के विरुद्ध प्रत्याशी नहीं उतारा तो सपा ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव नहीं लड़ा। इस बार तो कांग्रेस विधानमंडल दल की नेता आराधना मिश्रा के खिलाफ भी सपा का कोई प्रत्याशी नहीं था।
अब जब से बिहार में जदयू, राजद, कांग्रेस और अन्य दलों ने एकजुट होकर भाजपा को सत्ता से बेदखल किया है, तब से यह संभावना जताई जाने लगी है कि उसी तर्ज पर यूपी में भी लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा के खिलाफ तीसरा मोर्चा खड़ा हो सकता है। इसमें सपा के साथ बसपा या कांग्रेस के अलावा रालोद, अपना दल कमेरावादी, जदयू, भीम आर्मी, पीस पार्टी जैसे दल आ सकते हैं।
छोटे दल एकजुट करने की बात तो प्रसपा अध्यक्ष शिवपाल यादव और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के ओमप्रकाश राजभर भी कर रहे हैं, लेकिन अखिलेश के खिलाफ उनके तीखे होते जा रहे बोल इशारा करते हैं कि वह शायद भाजपा के साथ ही रहेंगे। तीसरे मोर्चे को आस इसलिए भी है कि सपा-बसपा ने हाथ मिलाया तो 2019 में भाजपा गठबंधन की सीटें 73 से घटकर 62 पर आ गईं और छोटे दल मिले तो 2022 में सपा की सीटें 47 से बढ़कर 111 हो गईं।
तीसरे मोर्चे में बसपा या कांग्रेस में से कोई एक : वरिष्ठ कांग्रेस नेता ब्रजेंद्र सिंह का कहना है कि भाजपा को रोकने के लिए संभावना है कि यहां तीसरा मोर्चा बने, लेकिन यह तय मान सकते हैं कि यदि इस गठबंधन में बसपा रहेगी तो कांग्रेस नहीं रहेगी और कांग्रेस आई तो बसपा नहीं। ऐसा इसलिए क्योंकि यहां बसपा का आधार वही दलित वोट है, जो अन्य राज्यों में कांग्रेस को हमेशा से मिलता रहा है।
हालांकि, ब्रजेंद्र मानते हैं कि कांग्रेस को अकेले चुनाव लड़ना चाहिए और पूर्व की भांति चुनाव के बाद आवश्यकता अनुसार समर्थन पर विचार करना चाहिए। इसके इतर, एक साक्षात्कार में उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य कह चुके हैं कि बिहार की तर्ज पर यूपी में तीसरा मोर्चा बना तो बेअसर रहेगा, क्योंकि यहां भाजपा के खिलाफ गठबंधन असफल होते जा रहे हैं।