प्रशासन ने पूरी की मेले की तैयारियां

देवबंद (खिलेन्द्र ): भारतीय संस्कृति में मेलों का विशेष महत्व रहा है। इसी परंपरा के तहत नगर के पूरब दिशा में स्थित सिद्धपीठ श्री त्रिपुर माॅ बाला सुन्दरी देवी मन्दिर पर लगने वाला मेला सदियों से अपना एक विशेष स्थान रखता है। यह मेला हिंदू-मुस्लिम एकता, भाईचारे व प्रेम की मिशाल के रूप में जाना जाता है। प्रत्येक वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की चैदस को माॅ भगवती मन्दिर में विशेष पूजा अर्चना के साथ मेला प्रांरभ होता है। जो लगभग एक माह तक निरंतर चलता है।
बुधवार को चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की चैदस के दिन श्रद्धालूओं की भारी भीड मन्दिर में उमडेगी तथा विशेष पुजा अर्चन में भाग लेगी। मेले के आरंभ में ग्रामीण क्षेत्र व देश के कोने- कोने से भक्तो के आने का तांता लग जाता है और माॅ के जयकारो के मध्य पुरे दिन प्रसाद चढाने का कार्यक्रम चलता रहता है। माॅ बाला सुन्दरी देवी मेले का आयोजन सदियो से नगर पालिका परिषद के तत्वाधान में किया जाता है। इस बार मेला प्रशासन के सानिध्य में भरवाया जा रहा है।
श्री माॅ त्रिपुुर बाला सुन्दरी देवी के द्वार पर लगा पत्थर
पौराणिक व एतिहासिक मन्दिर श्री त्रिपुुर माॅ बाला सुन्दरी देवी के द्वार पर लगा एक पत्थर जहंा इस माॅ के मन्दिर शक्ति पीठ की पौराणिकता का प्रतीक है वही यह भाषा वैज्ञानिकों के लिये चुनौती भी, इस मन्दिर के द्वार पर लगे पत्थर को कई बार भाषा वैज्ञानिकों ने पढने का प्रयास किया परन्तु उनको सफलता नही मिली वर्ष 80 के दशक मे जब प्रदेश मे श्री नारायण दत्त तिवारी व श्री श्रीमति मिश्र की सरकार थी तो देवबंद को पर्यटन क्षेत्र घोषित करने की मांग उठी थी उसी समय लखनउ से आये पुरातत्व विभाग के भाषा वैज्ञानिकों ने इस पत्थर पर लिखी लिपि के फोटो भी कराये थे तथा उनका गहनता से अध्ययन किया परन्तु किसी भी नतीजे पर नही पहुच सके इस पत्थर पर लिखी लिपि आज भी रहस्य बनी हुई है।
तेज हवाओं से मिलता है माॅ बाला सुन्दरी देवी के आने का संकेत: पुजारी पं0 सतेन्द्र शर्मा
चैदस को लगने वाले मेले से पूर्व प्रत्येक वर्ष तेज हवाऐं व बुंदाबांदी होती है जिसके बारे में मान्यता है कि मां बाला सुन्दरी ने मन्दिर में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। लगभग एक सप्ताह बाद तेज हवाओं व बुंदाबांदी के साथ माता त्रिलोकपुर (हिमाचल प्रदेश) के मुख्यमंदिर में वापस चली जाती है। हालांकि मन्दिर के पुजारी पं0 सतेन्द्र शर्मा का इस सम्बन्ध में कहना है कि माता सदैव इसी मन्दिर में विराजमान रहती है। मन्दिर के प्रबंधक सतेन्द्र शर्मा ने बताया कि माॅ की इस प्रतिमा रूपी आवृति पिंड को पुजारी आंखे बंद करके स्नान कराने के बाद चन्दन और इत्र से सुशोभित कर पुनः आवरण में छिपा देते है। मान्यता है कि जो भी श्रद्धालू सच्चें मन से यंहा मन्नत मांगता है, वह पूरी हो जाती है।
महाभारत काल में हुई थी मन्दिर की स्थापना
नगर में स्थित सिद्धपीठ श्री त्रिपुर माॅ बाला सुन्दरी देवी मन्दिर की स्थापना कब और किसने की, इसके पुख्ता प्रमाण तो किसी के पास नही है, परन्तु मारकंडे पुराण सहित कई धार्मिक ग्रन्थो में कहा गया है कि इस शक्ति पीठ की स्थापना महाभारत काल में उस समय हुई जब पांच पांडव अज्ञात वास में छुपने के लिये वनो में घूम रहे थे। गंगा किनारे भंयकर जंगल होने के कारण छिपने का उपयुक्त स्थान न मिलने पर यहंा विशाल सरोवर के कारण उन्होने शरण ली तथा पांडवो ने ही इस देवी वन में माॅ श्री त्रिपुर बाला सुन्दरी देवी की मन्दिर स्थापना की ।
मेला पण्डाल में किये जाते है अनेक कार्यक्रम
देवबंद: चैत्र चैदस को लगने वाला श्री माॅ त्रिपुर बाला सुन्दरी देवी मेला लगभग 15 से 20 दिन तक चलता है। जिसमे ंनगरपालिका के तत्वाधान में मेले में, माॅ का भगवती जागरण, कवि सम्मेलन, आल इण्डिया मुशायरा, बेबी शो, देश भक्ति कार्यक्रम, सहित अनेक कार्यक्रम मेला पण्डाल में किये जाते है।