इसलिए जानबूझकर देवी सीता सहती रहीं रावण के अत्याचार
तो सीता क्यों सहती रहीं अत्याचार
क्या रामायण देखते या पढ़ते समय आपके मन में यह ख्याल आया है कभी कि देवी सीता तो स्वयं ही जगत जननी का अवतार थीं। रावण का अंत तो वह ही कर सकती थीं। फिर उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया और क्या वजह थी कि जब भी रावण उनसे संवाद करने आता था तो वह उसकी ओर नहीं देखती थीं? इसके पीछे का कारण सीताजी का वचनबद्ध होना था। यही वजह थी कि वह चुपचाप अशोक वाटिका में सारे दु:ख सहन करती रहीं। तो आइए जानते हैं कि देवी सीता क्यों नहीं देखती थीं रावण की ओर, और क्या था वह वचन, जिसके कारण वह सहती रहीं सारे अत्याचार?
तो इसलिए नहीं देखती थीं देवी सीता
रावण जब सीता जी का हरण करके ले गया तब से जानकी जी ने कभी भी उसकी ओर नहीं देखा। रावण जब भी अशोक वाटिका में जाता तो माता सीता श्रीराम के चिंतन में ही लगी रहतीं। वह कभी भी रावण की ओर नहीं देखती थीं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार एक बार जब रावण हमेशा की तरह देवी सीता को धमकाने के लिए पहुंचा तो उन्होंने एक तिनके का ओट किया। तब रावण ने अत्यंत क्रोध में सीता को कहा कि तुम इस तिनके को क्या देख रही हो। मैं तुमसे सीधा संवाद करता हूं लेकिन तुम हमेशा एक तिनका उठाकर उसे ही घूर-घूरकर देखने लगती हो। तब सीता माता के आंखों से आंसू बहने लगते हैं।
जब रावण पहुंचा श्रीराम के भेष में
रामायण के अनुसार जब रावण किसी भी तरह से देवी सीता को धमकाने में सफल नहीं हुआ तो वह श्रीराम के रूप में देवी सीता के सामने पहुंचा। लेकिन तब भी माता ने उसकी ओर नहीं देखा। थकहार कर जब रावण अपने महल पहुंचा तो मंदोदरी ने उनसे पूछा कि क्या हुआ आप तो सीता के सामने श्रीराम का रूप रखकर गए थे। तब रावण ने कहा कि जब वह उस रूप में पहुंचे तो सीता उन्हें नजर ही नहीं आईं।
4/6तो इस वचन में बंधीं थीं सीता
कथा मिलती है कि जब सीता जी ससुराल पहुंची तो उन्होंने पहली रसोई में खीर बनाई। इसके बाद सभी को खीर परोसनी शुरू की। तभी महाराज दशरथ को परोसी गई खीर में एक तिनका गिर गया। देवी सीता ने सोचा कि आखिर खीर से वह कैसे निकालें। तब उन्होंने तिनके की ओर घूर कर देखा तो वह जलकर राख हो गया और एक बिंदू के समान हो गया।
राजा दशरथ समझ गए थे सारा रहस्य
खीर में तिनके का हाल किसी ने नहीं देखा लेकिन राजा दशरथ ने सबकुछ देख लिया था। उसी पल वह देवी सीता के प्रताप से वाकिफ हो गए थे। जब सभी अपने-अपने कक्ष में चले गए तब उन्होंने देवी सीता को बुलाया। दशरथजी ने कहा कि उन्होंने सीता का प्रभाव जान लिया है। वह जान चुके हैं कि वह जगत जननी का अवतार हैं। लेकिन फिर भी आप मेरी एक बात का ध्यान रखिएगा कि जिस तरह से आपने तिनके को देखा था। उस तरह कभी भी किसी शत्रु की ओर घूरकर मत देखिएगा।