ठाकुर अर्जुन सिंह ,पंडित आशा राम, ठाकुर सूबा सिंह व बलवंत सिंह ने किया था नाम रौशन और जलाई थी आजादी की मशाल

बडगांव [24CN]। मेरठ में 10 मई 1857 की क्रांति का अंग्रेजों के खिलाफ प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल बजा तथा आजादी की लड़ाई शुरू हुई आजादी की लड़ाई के लिए भड़की हुई चिंगारी 12मई 1857 को सहारनपुर जिले मे पहुंच गई इसके बाद क्रांति कारियो ने सहारनपुर में 11माह 5 दिन यानी 17 अप्रैल 1858 तक अंग्रेजों के साथ पहली जंग लड़ी गई।

शहर के लोहा बाजार मे स्थित शहीद स्मारक आजादी की पहली लड़ाई के शहीदी की याद दिलाता है प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के समय जन क्रांति के दीवानों के लिए ब्रिटिश हकुमत ने सामूहिक नर संहार किया था तब रुड़की, हरिद्वार भी सहारनपुर जिले मे ही था। रुड़की, नकुड़ सरसावा सहारनपुर मे अंग्रेजो के द्वारा सामूहिक फासी दी गई थी मुसलमानों ने भी आजादी की लड़ाई मे बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था मौलाना ममलूक अली ननौतवी तथा मौलाना राशिद अहमद गंगोही ने क्षेत्रीय हिन्दू और मुसलमान, राजपूत एवम गुर्जरों की सेना बनाई और अंग्रेजों से युद्ध किया।

नानौता ब्लाक की पावन धरती पर जन्मे भारत मां के चार लालो ने भी आजादी की लड़ाई में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया जो इस प्रकार से है। गांव भाबसी रायपुर से ठाकुर अर्जुन सिंह व पंडित आशा राम तथा ठाकुर सुबासिंह मोरा और बलवंतसिंह काशीपुर जैसे रणबाकुरों ने आजादी की मशाल को जलाए रखा और बुझने नहीं दिया। आजादी की लड़ाई मे अपना भरपूर योगदान दिया। आजादी के दीवाने ठाकुर अर्जुन सिंह का जन्म सन 1892 में एक किसान जमीदार परिवार में हुआ और पंडित आशाराम का जन्म सन 1909में एक ब्राह्मण परिवार मे गांव भाबसी रायपुर में हुआ।

गांव भाबसी रायपुर मे दो स्वतंत्रता सेनानी जन्मे और देश मे अपने गांव का नाम रौशन किया वह दोनों बचपन से ही स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने लगे थे जिसके चलते वे कई बार जेल गए और अंग्रेजी हकूमत की यातनाएं सही परन्तु अपने उद्देश्य से टस से मस न हुए। इसी क्रम में गांधी जी के द्वारा सन 1930 में सविनय अवेज्ञा आंदोलन शुरु हुआ तो गांधीजी दांडी मार्च पर निकल गए और इस आंदोलन के समर्थन में जगह-जगह जन जागरण के लिए सम्मेलनों का आयोजन किया गया और 8 मार्च सन 1930 को सहारनपुर जिले के गांव मोरा मे ठाकुर सूबा सिंह पुत्र खजान सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की एक कांफ्रेसं हुई थी। सबसे पहले सन 1930 में जिले में नमक आंदोलन कानून का विरोध हुआ और कानून तोड़ा गया। कानून तोडऩे पर ठाकुर अर्जुन सिंह ने अपने साथियों सहित सबसे पहले गिरफ्तार हुए और उन्हें 1 वर्ष की कटोर कारावास की सजा हुई।

फिर 4 मार्च सन् 1931 को गांधी व इरविन समझौते के तहत उन्हें रिहा कर दिया गया और सन 1932 में फिर दोबारा आंदोलन शुरु कर दिया गया तो उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर ननौता रेलवे स्टेशन तथा डाक घर को आग के हवाले कर जला दिया गया और अंग्रेजों ने इन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया और 6 महीने के लिए जेल भेज दिया। इनकी गिरफ्तारी के बाद लोगो द्वारा कौमी सप्ताह मनाते हुए विदेशी कपड़ों की होली जगह-जगह पर जलाई गई।

इन लोगों से अंग्रेजी सरकार इतनी डर गई थी कि इनके मुकदमों की सुनवाई जेल में ही कराई गई तथा 1 वर्ष कटोर कारावास की सजा सुनाई गई। इसके बाद इन्होंने अनेक आंदोलनों का नेतृत्व किया और जेल जाते रहे। इनके स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी करने पर तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमति इन्दिरा गांधी के द्वारा ताम्र पात्र देकर सम्मानित किया गया और ननोता ब्लाक के परिसर में लगी शिलापट्ट पर नाम अंकित किया गया है। इन आजादी के दीवानों को देश कभी नहीं भूलेगा।


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