हिंदी विरोध में साथ आए ठाकरे बंधु, उद्धव और राज मुंबई में करेंगे संयुक्त विरोध प्रदर्शन

राउत ने खुलासा किया कि शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे और मनसे प्रमुख राज ठाकरे के साथ चर्चा के बाद इसी मुद्दे पर क्रमशः 6 जुलाई और 7 जुलाई को अलग-अलग विरोध प्रदर्शन की पहले की योजना को हल कर लिया गया।
New Delhi : शिवसेना (यूबीटी) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) ‘त्रिभाषा नीति’ के तहत कक्षा 4 तक हिंदी को अनिवार्य बनाने के राज्य सरकार के कथित कदम के खिलाफ 5 जुलाई को संयुक्त रूप से विरोध मार्च का आयोजन करेंगे। शिवसेना (यूबीटी) नेता और सांसद संजय राउत ने शुक्रवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह घोषणा की। राउत ने कहा, “हम किसी भाषा के खिलाफ नहीं हैं। हमने हमेशा हिंदी का सम्मान किया है। हम जैसे लोगों ने हमेशा इसका महत्व समझा है। हमारी पार्टी कई तरह से हिंदी का इस्तेमाल करती है। लेकिन हाल ही में ‘त्रिभाषा नीति’ के तहत कक्षा 4 तक हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने का फैसला बच्चों पर अनावश्यक बोझ डालता है। यह एक शैक्षणिक और भाषाई मुद्दा है।”
राउत ने खुलासा किया कि शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे और मनसे प्रमुख राज ठाकरे के साथ चर्चा के बाद इसी मुद्दे पर क्रमशः 6 जुलाई और 7 जुलाई को अलग-अलग विरोध प्रदर्शन की पहले की योजना को हल कर लिया गया। उन्होंने कहा, “यह अच्छा नहीं था कि दो अलग-अलग रैलियां निकाली जाएं। मैंने उद्धव और राज ठाकरे से चर्चा की। शिवसेना (यूबीटी) और मनसे दोनों मिलकर 5 जुलाई को इस आंदोलन की शुरुआत करेंगे।” राउत ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर तीखा प्रहार करते हुए उन पर महाराष्ट्र को राजनीतिक नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया।
उन्होंने शिवसेना में 2022 के विभाजन और उसके बाद पार्टी के नाम और प्रतीक को लेकर हुई कानूनी लड़ाई का जिक्र करते हुए कहा कि हम हिंदी भाषा के दुश्मन नहीं हैं। लेकिन अमित शाह निश्चित रूप से महाराष्ट्र के राजनीतिक दुश्मन हैं। उन्होंने ही चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट में हेराफेरी करके बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना को तोड़ा। हमें उनके जैसे किसी की बात क्यों सुननी चाहिए? विरोध प्रदर्शन का आह्वान महाराष्ट्र सरकार द्वारा सभी कक्षाओं में हिंदी को अनिवार्य बनाने के कथित कदम पर चल रही बहस के बीच किया गया है। 24 जून को, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने कहा कि तीन-भाषा फॉर्मूले के बारे में अंतिम निर्णय साहित्यकारों, भाषा विशेषज्ञों, राजनीतिक नेताओं और अन्य सभी संबंधित पक्षों के साथ चर्चा के बाद ही लिया जाएगा।