सुप्रीम फैसला… गिरवी संपत्तियां नीलाम कर सकेंगे सहकारी बैंक

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक अहम फैसले में कहा है कि सहकारी बैंक भी सरफेसी अधिनियम के तहत आते हैं। यानी अब सहकारी बैंक भी बिना अदालत गए फंसे हुए कर्जों की वसूली के लिए गिरवी रखी गई सम्पतियों की नीलामी की प्रक्रिया शुरू कर सकते है।

जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस इंदिरा बनर्जी, जस्टिस विनीत शरण, जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने मंगलवार को यह साफ कर दिया कि तमाम सहकारी बैंक सरफेसी अधिनियम के तहत आते हैं।
संविधान पीठ ने कहा है कि अधिनियम की धारा-2(1)(सी)  में परिभाषित बैंक शब्द के तहत सहकारी बैंक भी आता है। लिहाजा अधिनियम की धारा-13 के तहत वसूली प्रक्रिया सहकारी बैंकों पर भी लागू होती है।

संविधान पीठ ने यह भी कहा कि राज्य-विशिष्ट अधिनियम के तहत पंजीकृत सहकारी बैंक और बहु-राज्य स्तरीय सहकारी समिति अधिनियम, 2002 के तहत पंजीकृत बहु-राज्य स्तरीय सहकारी समितियां, जिनका ताल्लुकात बैंकिंग से हैं, वो सातवीं अनुसूची की लिस्ट-1 की एंट्री-45 से संबंधित कानून द्वारा संचालित होती हैं।

संविधान पीठ ने उस दलील को खारिज कर दिया के वर्ष 2013 में सरफेसी अधिनियम में किए गए संशोधन कर सहकारी बैंक को सेक्शन 2 (1)(सी)में शामिल करना अधिकारों का बेजा इस्तेमाल है।

संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से यह भी माना है कि बैंकिंग गतिविधियों में शामिल सहकारी बैंक भी बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा-5 (सी) और 56 (ए) के अंतर्गत आते हैं।

शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि सहकारी बैंक बैंकिंग विनियमन अधिनियम 1949 के प्रावधानों का अनुपालन किए बगैर किसी भी गतिविधि को अंजाम नहीं दे सकते। दरअसल इस मसले पर विभिन्न पीठ द्वारा अलग-अलग दिए गए निर्णयों के बाद इस मामले को संविधान पीठ के पास भेज दिया गया था।


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