नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालतों को हिस्ट्रीशीटरों को जमानत देने के वक्त आंखों पर पट्टी बांधने वाला नजरिया नहीं अपनाना चाहिए। साथ ही उन्हें छोड़ने से पहले इस बात पर जरूर गौर करना चाहिए कि इसका गवाहों और पीडि़त के निर्दोष स्वजनों पर क्या असर पड़ेगा। इसके साथ ही प्रधान न्यायाधीश (अब सेवानिवृत्त) एसए बोबडे इलाहाबाद हाईकोर्ट के आरोपित को जमानत देने के आदेश को खारिज कर दिया।
सर्वोच्च अदालत का कहना है कि आजादी जरूरी है, फिर चाहे एक व्यक्ति ने कोई अपराध ही क्यों न किया है। लेकिन अदालतों को भी यह देखने की जरूरत है उनकी रिहाई से किसके जीवन को खतरा है। क्या किसी गवाह या पीडि़त के जीवन को जमानत पर छोड़े जानेवाले अपराधी से खतरा है। यह बताने की जरूरत नहीं कि ऐसे मामलों में कोर्ट आंखों पर पट्टी बांधकर किसी आरोपित को इससे परे मान ले। इसके लिए अदालत केवल उन्हीं पक्ष की न सुनें जो उनके समक्ष पेश हुए हैं बल्कि अन्य पहलुओं का भी ध्यान रखें।
उल्लेखनीय है कि याचिकाकर्ता सुधा सिंह आरोपित अरुण यादव के हाथों मारे गए राज नारायण सिंह की पत्नी हैं। 52 वर्षीय राज नारायण सिंह उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी की कोआपरेटिव सेल के अध्यक्ष थे। वर्ष 2015 में आजमगढ़ के बेलैसिया में चहलकदमी के दौरान गोली मारकर मार दिया गया था। आरोपित एक शार्पशूटर है।
मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बीते दिनों मुख्तार अंसारी को पंजाब की रूपनगर जेल से उत्तर प्रदेश के बांदा की जेल भेजने का आदेश करते हुए कहा था कि कानून के राज को चुनौती मिलने पर हम असहाय दर्शक बने नहीं रह सकते हैं। शीर्ष अदालत (Supreme Court) ने कहा कि चाहे कैदी अभियुक्त हो, जो कानून का पालन नहीं करेगा वह एक जेल से दूसरी जेल भेजे जाने के निर्णय का विरोध नहीं कर सकता है।