नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को देशभर में सार्वजनिक भूमि पर हुए अतिक्रमण पर चिंता व्यक्त की और कहा कि यह एक दुखद कहानी है जो पिछले 75 वषों से जारी है। प्रमुख शहर झुग्गी बस्तियों में बदल गए हैं। अदालत ने कहा कि यह सुनिश्चित करने की प्राथमिक जिम्मेदारी स्थानीय प्राधिकार की है कि किसी भी संपत्ति पर अतिक्रमण न हो, चाहे वह निजी हो या सरकारी। इससे निपटने के लिए उन्हें खुद को सक्रिय करना होगा।

जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने कहा, ‘यही समय है जब स्थानीय सरकार जग जाए क्योंकि एक अतिक्रमण हटा दिया जाता है, दूसरी जगह वही अतिक्रमण स्थानांतरित हो जाता है और ऐसे व्यक्ति भी होंगे जो इसमें हेरफेर कर रहे हैं और पुनर्वास का लाभ उठा रहे होंगे। यह देश की दुखद कहानी है। यह अंतत: करदाताओं का पैसा है जो बर्बाद हो जाता है।’

शीर्ष अदालत दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें गुजरात और हरियाणा (फरीदाबाद) में रेलवे भूमि से अतिक्रमण हटाने से संबंधित मुद्दों को उठाया गया है। पीठ ने कहा कि सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण हर जगह हो रहा है और समस्या का समाधान करना होगा। पीठ ने कहा, ‘इसलिए सभी प्रमुख शहर झुग्गी बस्तियों में बदल गए हैं। किसी भी शहर को देखें, अपवाद हो सकता है जिसे हम नहीं जानते। चंडीगढ़ कहा जाता है कि अपवाद है, लेकिन चंडीगढ़ में भी मुद्दे हैं।’

रेलवे की ओर से पेश अतिरिक्त सालिसिटर जनरल केएम नटराज ने पीठ से कहा कि प्राधिकार इस संबंध में देशभर में कार्रवाई करेगा। शीर्ष अदालत ने कहा, ‘यह हर जगह हो रहा है। हमें वास्तविकता का सामना करना होगा। समस्या को हल करना होगा और इसे कैसे हल करना है, संबंधित सरकार को यह जिम्मेदारी लेनी होगी।’ शीर्ष अदालत ने कहा कि रेलवे यह सुनिश्चित करने के लिए समान रूप से जिम्मेदार है कि उसकी संपत्तियों पर कोई अतिक्रमण नहीं हो और मुद्दा संज्ञान में लाए जाने के तुरंत बाद उसे अनधिकृत कब्जाधारियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करनी चाहिए।

पीठ ने यह भी रेखांकित किया कि गुजरात में सूरत-उधना से जलगांव रेलवे लाइन परियोजना अभी भी अधूरी है क्योंकि रेलवे संपत्ति पर 2.65 किलोमीटर तक अनधिकृत ढांचे खड़े हैं। शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि रेलवे इन ढांचों के कब्जाधारियों को तुरंत नोटिस जारी करे, जो शेष परियोजना को पूरी करने के लिए तुरंत आवश्यक है। अदालत ने इन कब्जाधारियों को संबंधित परिसर खाली करने के लिए दो हफ्ते का समय देने का निर्देश दिया।

शीर्ष अदालत ने कहा कि जिन ढांचों को तुरंत खाली करने की आवश्यकता नहीं है, उनके संबंध में रेलवे प्रस्तावित नोटिस में परिसर को खाली करने और ढांचा हटाने के लिए छह हफ्ते का समय दे सकता है। पीठ ने कहा कि यदि कब्जाधारी अनधिकृत ढांचे खाली करने में विफल रहते हैं, तो पश्चिम रेलवे उपयुक्त कानूनी कार्रवाई शुरू करने या स्थानीय पुलिस की सहायता से इन ढांचों को जबरन हटाने के लिए स्वतंत्र होगी। अदालत ने कहा कि जिन अनधिकृत ढांचों के कब्जाधारियों को विध्वंस कार्रवाई में हटाया जाता है, उन्हें छह महीने के लिए प्रति माह 2,000 रुपये का भुगतान किया जाएगा। मामले की अगली सुनवाई 28 जनवरी को होगी।