73वें वर्चुअल वार्षिक निरंकारी संत समागम का सफलतापूर्वक समापन

73वें वर्चुअल वार्षिक निरंकारी संत समागम का सफलतापूर्वक समापन
  • जीवन में स्थिरता, सहजता और सरलता लाने के लिए परमात्मा के साथ नाता जोड़ें: सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज

सहारनपुर [24CN] । जीवन में स्थिरता, सहजता और सरलता लाने के लिए परमात्मा के साथ नाता जोड़े। यह विचार सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने मानवता को प्रेरित करते हुए तीन दिवसीय 73वें वर्चुअल वार्षिक निरंकारी संत समागम के समापन दिवस पर अपने प्रवचनों में व्यक्त किए। इस समागम का संत निरंकारी मिशन की वेबसाईट एवं संस्कार टी.वी. चौनल पर, विश्व में फैले लाखों श्रद्धालु भक्तों द्वारा आनंद प्राप्त किया गया। सद्गुरु माता सुदीक्षा जी ने कहा कि जीवन के हर पहलू में स्थिरता की आवश्यकता है। परमात्मा स्थिर, शाश्वत एवं एक रस है। जब हम अपना मन इसके साथ जोड़ देते हैं तो मन में भी ठहराव आ जाता है जिससे हमारी विवेकपूर्ण निर्णय लेने की क्षमता बढ़ जाती है और जीवन के हर उतार-चढ़ाव का सामना हम उचित तरीके से कर पाते हैं।

इस बात को और अधिक स्पष्ट करते हुए सद्गुरु माता जी ने कहा कि जैसे एक वृक्ष में फल लगने से पहले फूल आते हैं और फल उतारने का समय भी आ जाता है। उसके पश्चात् पतझड़ का मौसम आता है जिसमें पत्ते तक निकल जाते हैं और एक हरा-भरा वृक्ष, जिसकी शाखाएँ हरी-भरी लहलहाती थी, अब वह सूखी लकडिय़ों की भाँति प्रतीत होता हैं। अस्थिरता और मौसम में परिवर्तन के बावजूद वह वृक्ष अपने स्थान पर खड़ा रहता है क्योंकि वह अपनी जड़ों के साथ मजबूती से जुड़ा हुआ है। इसी प्रकार हमारी जडे, हमारा आधार, हमारी नींव इस परमात्मा के साथ जुड़ी रहें और हम इसके साथ इकमिक हो जाएं तब किसी भी परिस्थिति के आने से हम विचलित नहीं होते। सद्गुरु माता जी ने कहा कि संसार में कोई भी वस्तु स्थिर नहीं है। हर चीज में निरंतर परिवर्तन होता रहता है। कोरोना काल ने इस बात का अत्याधिक अहसास कराया कि हर वस्तु चाहे कितनी भी बहुमूल्य हो उसका स्वरूप स्थायी नहीं रहता। ऐसी अस्थिर वस्तुओं के साथ जब मन का जुड़ाव हो जाता है तब मन आसक्त हो जाता है जिसका प्रभाव भावनात्मक, मानसिक एवं शारीरिक रूप में होने लगता है। ऐसी स्थिति में हमारे मन को जो ठीक रख सकती है वह है ‘स्थिरताÓ। फिर जब हम स्थिर हो जाते हैं तब शाश्वत् आनंद के साथ प्रबलता से मानवीयता की ओर बढ़ सकते हैं। ‘स्थिरताÓ का भाव समझाते हुए सद्गुरु माता जी ने कहा कि संसार परिवर्तनशील है। इसमें तो उथल-पुथल होती ही रहती है। परिस्थितियाँ कभी अनुकूल तो कभी प्रतिकूल होती हैं। कई बार हमारी अपनी सोच हमें कहीं एक दिशा में ले जाती है तो कहीं दूसरी ओर। इससे कभी हम बहुत खुश तो कभी इतने निराश हो जाते हैं कि एकदम तनाव ग्रस्त हो जाते हैं। जीवन के उतार चढ़ाव में संतुलन बनाकर चलने से हमें स्थिरता प्राप्त हो सकती है और यह केवल तभी संभव है यदि हम आध्यात्मिक जागृति प्राप्त कर चुके संतो का संग करते हैं।

सेवा में समर्पित रहने वाले सभी सन्तो को अपना आशीर्वाद प्रदान करते हुए सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने कहा कि कोरोना के कारण जीवन में कितनी सारी परेशानियाँ एवं समस्याओं के आने के बावजूद जिनका भी मन स्थिर था एवं जिन्होंने सेवाभाव से अपने मन को जोड़ें रखा उनके जीवन में सहजता और स्थिरता कायम रही। इस वर्ष की विपरीत परिस्थितियों में बहुत से लोगों की जीवनशैली भी बदल गई। लेकिन सेवादारों के द्वारा इस परिस्थिति में भी सेवा का वही जज्बा कायम रहा। समागम के समापन दिन पर एक बहुभाषी कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें विश्व भर के 21 कवियों ने ‘स्थिर से नाता जोड़ के मन का, जीवन को हम सहज बनाएं।Ó इस शीर्षक पर विभिन्न बहुभाषी कविताओं का सभी ने आंनद लिया जिसमें हिंदी, अंग्रेजी, पंजाबी, मराठी, उर्दू एवं मुल्तानी इत्यादि भाषाओं का समावेश देखने को मिला। अपनी रचनाओं के माध्यम से मानव जीवन में स्थिरता के महत्त्व को समझाते हुए उसके हर एक पहलू को उजागर करने का कवियों द्वारा प्रयास किया गया। समागम के तीनों दिन भारतवर्ष के अतिरिक्त दूर देशों से ब्रह्मज्ञानी वक्ताओं ने विभिन्न भाषाओं का सहारा लेते हुए जहाँ अपने प्रेरणादायी विचार प्रस्तुत किये, वहीं सम्पूर्ण अवतार बाणी तथा सम्पूर्ण हरदेव बाणी के पावन शब्द, पुरातन संतों के भजन तथा मिशन के गीतकारों की प्रेरणादायी मधुर रचनाओं ने भक्तों को मंत्रमुग्ध कर दिया। अपने घरों में बैठकर वर्चुअल रुप में लाखों श्रद्वालुओं ने इस समागम का आनंद प्राप्त किया।