दिल्ली में नई सरकार बनते ही सामने आई अस्पतालों की बदहाली, CAG रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा

दिल्ली में नई सरकार बनते ही सामने आई अस्पतालों की बदहाली, CAG रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा
नई दिल्ली। आम आदमी पार्टी (आप) सरकार भले ही राजधानी में विश्वस्तरीय चिकित्सा सुविधाएं मुहैया कराने का दावा कर रही हो, लेकिन CAG की रिपोर्ट सामने आने के बाद चौंकाने वाले तथ्य सामने आ सकते हैं। कैग रिपोर्ट के अनुसार, राजधानी में स्वास्थ्य सुविधाएं बदहाल हैं।

स्टाफ की कमी से जूझ रहा अस्पताल

दिल्ली सरकार के अस्पताल और मेडिकल कॉलेज डॉक्टर, नर्स और पैरामेडिकल स्टाफ की भारी कमी से जूझ रहे हैं। हालात यह हैं कि दिल्ली सरकार के अस्पताल और मेडिकल कॉलेज शैक्षणिक संवर्ग के 30 फीसदी डॉक्टर, 21 फीसदी नर्स और 38 फीसदी पैरामेडिकल स्टाफ की कमी से जूझ रहे हैं।

सर्जरी में वेटिंग का दंश

स्वास्थ्य के लिए आवंटित बजट और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत स्वास्थ्य कार्यक्रमों के लिए मिलने वाले बजट का भी पूरा इस्तेमाल नहीं हो पाता है। दूसरी ओर, मरीजों को सर्जरी में वेटिंग का दंश झेलना पड़ रहा है।

CAG की रिपोर्ट में खुलासा

दिल्ली सरकार के मेडिकल कॉलेजों और 28 अस्पतालों में शैक्षणिक संवर्ग के 30 फीसदी डॉक्टर, गैर शैक्षणिक संवर्ग के 28 फीसदी विशेषज्ञ डॉक्टर और नौ फीसदी चिकित्सा अधिकारियों की कमी थी। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन से जुड़े कार्यक्रमों के सही संचालन के लिए भी 36 फीसदी कर्मचारियों की कमी पाई गई।

वेतनमान में कोई बदलाव नहीं

जनकपुरी सुपर स्पेशियलिटी और राजीव गांधी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल भी डॉक्टरों और कर्मचारियों की भारी कमी से जूझ रहे हैं। क्योंकि इन दोनों सुपर स्पेशियलिटी अस्पतालों में डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों को प्रमोशन की सुविधा नहीं दी गई और वेतनमान में कोई बदलाव नहीं किया गया।

मरीजों को कम समय दे पा रहे चिकित्सक

समस्या के समाधान के लिए सीएजी रिपोर्ट ने डॉक्टरों के लिए नियुक्ति प्रावधानों को आकर्षक बनाने की सिफारिश की है। मरीजों के दबाव के कारण दिल्ली सरकार के सबसे बड़े लोकनायक अस्पताल के मेडिसिन और गायनोकोलॉजी विभाग की ओपीडी में डॉक्टर एक मरीज को देखने के लिए पांच मिनट से भी कम समय दे पा रहे हैं।

दवा काउंटर पर मरीजों की भारी भीड़

फार्मासिस्ट की कमी के कारण दवा काउंटर पर मरीजों की भारी भीड़ लग रही है। ऑडिट में पाया गया कि ओपीडी में परामर्श के दिन मरीजों को दवाएं भी नहीं मिल पाती हैं। लोकनायक और राजीव गांधी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल के आईसीयू और इमरजेंसी में जरूरी दवाओं और उपकरणों की भी कमी थी

सर्जरी के लिए आठ माह तक वेटिंग

लोकनायक अस्पताल के सर्जरी विभाग में बड़ी सर्जरी के लिए दो से तीन महीने की वेटिंग है। बर्न व प्लास्टिक सर्जरी विभाग में छह से आठ महीने की वेटिंग है। दूसरी ओर राजीव गांधी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में 12 में से छह मॉड्यूलर ऑपरेशन थिएटर (ओटी) और जनकपुरी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में सभी सात मॉड्यूलर ओटी बंद पड़े हैं।

सीनियर रेजीडेंट डॉक्टर 24 घंटे उपलब्ध नहीं

लोकनायक से जुड़े सुश्रुत ट्रॉमा सेंटर में विशेषज्ञ डॉक्टर व सीनियर रेजीडेंट डॉक्टर 24 घंटे उपलब्ध नहीं रहते। लोकनायक अस्पताल में दुष्कर्म पीड़ितों के लिए बने वन स्टॉप सेंटर (ओएससी) में अलग से स्टाफ नहीं है। इसके अलावा अस्पताल में बच्चों की मौत के मामलों की समीक्षा का रिकॉर्ड भी नहीं रखा जाता।

एंबुलेंस में जरूरी उपकरण नहीं

लोकनायक में रेडियोलॉजी जांच के लिए भी लंबी वेटिंग है। जबकि राजीव गांधी सुपर स्पेशियलिटी, जनकपुरी सुपर स्पेशियलिटी व चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय में रेडियोलॉजी जांच के लिए उपकरणों का पूरा उपयोग नहीं हो रहा। अधिकांश कैट्स एंबुलेंस में जरूरी उपकरण नहीं हैं।

बाहर से खरीदनी पड़ रही दवाएं

अस्पतालों को आवश्यक सूची में शामिल 33 से 47 फीसदी दवाएं सीधे खरीदनी पड़ रही हैं। केंद्रीय खरीद एजेंसी (सीपीए) दवाएं उपलब्ध कराने में विफल रही। वर्ष 2016-17 के बजट में आप सरकार ने अस्पतालों में दस हजार बेड बढ़ाने की बात कही थी। जबकि 2016-17 से 2021-22 तक सिर्फ 1357 बेड ही बढ़ाए जा सके। स्वास्थ्य विभाग 648 करोड़ रुपये में खरीदे गए 15 प्लॉटों का इस्तेमाल अस्पताल और डिस्पेंसरी बनाने में नहीं कर सका।

वर्ष 2021-22 में स्वास्थ्य के लिए आवंटित बजट

वर्ष 2021-22 में स्वास्थ्य के लिए आवंटित बजट का 8.64 फीसदी और वर्ष 2016-17 में आवंटित बजट का 23.49 फीसदी इस्तेमाल नहीं हुआ। वर्ष 2018-19 में स्वास्थ्य परियोजनाओं के लिए आवंटित बजट का 78.41 फीसदी और वर्ष 2021-22 में आवंटित बजट का 13.29 फीसदी इस्तेमाल नहीं हो सका।

चार वर्षों में 2822 गर्भवती महिलाओं की मौत

दिल्ली राज्य स्वास्थ्य मिशन, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन द्वारा आवंटित 510.71 करोड़ रुपये के बजट का उपयोग नहीं कर सका। यह बजट खाते में ही रह गया। ऑडिट की अवधि में चार वर्षों में 2822 गर्भवती महिलाओं की मौत हुई। जिसमें से केवल 1401 गर्भवती महिलाओं की मौत के कारणों की समीक्षा की गई।

नर्सिंग कॉलेज का निरीक्षण नहीं हो रहा

दिल्ली नर्सिंग काउंसिल (डीएनसी) की कार्यकारी समिति के गठन के लिए हर तीन साल में नियमित चुनाव नहीं होते हैं। इस कारण नर्सिंग कॉलेजों का सही तरीके से निरीक्षण नहीं हो पाता है। दिल्ली के 37 नर्सरी कॉलेजों में से केवल 20 कॉलेजों का ही निरीक्षण हुआ।सस्ती दरों पर जमीन लेने वाले निजी अस्पतालों के ओपीडी में 25 फीसदी और वार्ड में 10 फीसदी बेड ईडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) श्रेणी के गरीब मरीजों के लिए आरक्षित हैं, लेकिन दिल्ली के 45 सरकारी अस्पतालों में से 19 अस्पतालों ने रेफरल सेंटर नहीं बनाए हैं, ताकि गरीब मरीजों को निजी अस्पतालों में भेजा जा सके।