बिहार हार के बाद RJD की पहली प्रतिक्रिया: उतार-चढ़ाव तो आना ही है, गरीबों के लिए लड़ते रहेंगे

बिहार हार के बाद RJD की पहली प्रतिक्रिया: उतार-चढ़ाव तो आना ही है, गरीबों के लिए लड़ते रहेंगे

2025 बिहार विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद, राजद ने ‘उतार-चढ़ाव आना तय है’ कहकर प्रतिक्रिया दी और जनसेवा जारी रखने का संकल्प दोहराया। तेजस्वी यादव के नेतृत्व में पार्टी का 75 से 25 सीटों पर सिमटना, ‘जंगलराज’ के नैरेटिव से निपटने में उनकी विफलता और नीतीश कुमार को आंकने की चूक को उजागर करता है, जो भविष्य की बिहार राजनीति के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती है।

2025 के बिहार विधानसभा चुनावों में करारी हार के एक दिन बाद, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने शनिवार को कहा कि उतार-चढ़ाव तो आना ही है, और कहा कि यह गरीबों की पार्टी है और उनके मुद्दों और आवाज़ों को उठाती रहेगी। पार्टी ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर हिंदी में एक पोस्ट में कहा कि जनसेवा एक अनवरत प्रक्रिया है, एक अंतहीन यात्रा है! इसमें उतार चढ़ाव आना तय है। हार में विषाद नहीं, जीत में अहंकार नहीं! राष्ट्रीय जनता दल गरीबों की पार्टी है, गरीबों के बीच उनकी आवाज़ बुलंद करते रहेगी!

बिहार विधानसभा चुनाव के बीच जब तेजस्वी यादव को महागठबंधन में शामिल सहयोगियों की इच्छा के विपरीत मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया था तब शायद कुछ लोगों ने ही कल्पना की होगी कि शानदार चुनावी आगाज करने वाले राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता के नेतृत्व में उनकी पार्टी को इस अकल्पनीय हार का सामना करना पड़ेगा। महज 25 साल की उम्र में उपमुख्यमंत्री बनने के 10 साल बाद पार्टी सुप्रीमो लालू प्रसाद के उत्तराधिकारी ने कई दौर में पिछड़ने के बाद भले ही राजद के गढ़ राघोपुर से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सतीश कुमार को हराकर जीत हासिल कर ली लेकिन उनके नेतृत्व में राजद इस चुनाव में सिर्फ 25 सीटों पर सिमट गया।

तेजस्वी ने एक क्रिकेटर के रूप में अपने करियर की शुरुआत की थी लेकिन इस खेल में वह उड़ान नहीं भर सके। इसके बाद राजनीति में कदम रखते हुए उन्होंने एक नयी शुरुआत की और सफलता भी हासिल की लेकिन बिहार के सबसे शक्तिशाली परिवार के इस वंशज ने सपने भी नहीं सोचा होगा कि उनके नेतृत्व में पार्टी का यह हश्र हो जाएगा कि उसे विपक्षी दल का तमगा हासिल करने के लिए संघर्ष करना पड़ेगा। उन्होंने 2015 में राजनीति में प्रवेश करने से कुछ साल पहले क्रिकेट से संन्यास की घोषणा की थी। जल्द ही, लालू ने यह स्पष्ट कर दिया कि तेजस्वी ही उनके चुने हुए उत्तराधिकारी होंगे। पिछले विधानसभा चुनाव में जीत के बाद उन्हें नीतीश कुमार सरकार में उपमुख्यमंत्री नियुक्त किया गया।

हालांकि, तेजस्वी की किस्मत में कुछ और ही था। उनका नाम कथित अवैध भूमि लेनदेन से संबंधित धनशोधन मामले में सामने आया, जब उनके पिता संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन-1 सरकार में रेल मंत्री थे। जब यह कथित घोटाला हुआ तब तेजस्वी किशोरावस्था में थे। इसे लेकर भारी विरोध हुआ और नीतीश कुमार ने राजग में लौटने से पहले राजद से नाता तोड़ लिया। साल 2020 के बिहार चुनाव में 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरे राजद की संख्या इस चुनाव में घटकर आधे से भी कम रह गई है। ऐसा प्रतीत होता है कि नौ भाई-बहनों में दूसरे सबसे छोटे तेजस्वी सत्तारूढ़ गठबंधन के इस दावे का मुकाबला करने में पूरी तरह से विफल रहे कि राजद के नेतृत्व वाले गठबंधन की जीत का मतलब ‘जंगलराज’ की वापसी होगा।

मंच पर राजद उम्मीदवारों की कथित अनुचित बातों, नाबालिग लड़कों द्वारा ‘रंगदार’ बनने और ‘कट्टा’ (देश में बनी बिना लाइसेंस वाली पिस्तौल) लहराने की महत्वाकांक्षा जताए जाने पर पार्टी नेतृत्व ने आपत्ति भी नहीं जताई, जिससे ‘जंगलराज’ की कहानी को और बल मिला। ऐसा लगता है कि यादव ने 20 साल तक सत्ता में रहने के बावजूद अपने पूर्व बॉस और अपने पिता के धुर प्रतिद्वंद्वी नीतीश कुमार का आकलन करने में भी गलती की।


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