बिहार में चलता रहेगा वोटर लिस्ट का रिवीजन, सुप्रीम कोर्ट का चुनाव आयोग की प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार

नई दिल्ली/पटना: बिहार में वोटर लिस्ट के सत्यापन (वेरिफिकेशन) को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आज अहम सुनवाई हुई। कोर्ट ने चुनाव आयोग द्वारा की जा रही सत्यापन की प्रक्रिया पर रोक लगाने से किया इनकार कर दिया है। विपक्ष को बड़ा झटका देते हुए कोर्ट ने कहा कि आयोग के पास हलफनामा दाखिल करने का पर्याप्त समय है, उसे प्रक्रिया पूरी करने दें। जस्टिस धूलिया ने कहा कि हम 28 जुलाई को मामले की सुनवाई करेंगे। उन्होंने कहा कि सभी दलीलें 28 जुलाई से पहले पूरी करनी होंगी। बता दें कि कांग्रेस, RJD समेत इंडिया गठबंधन की 9 पार्टियों ने वोटर लिस्ट सत्यापन की प्रक्रिया पर तुरंत रोक लगाने की मांग की है। दूसरी ओर, वकील अश्विनी उपाध्याय ने याचिका दायर कर कहा है कि केवल भारतीय नागरिकों को ही वोट देने का हक मिलना चाहिए।
इन 9 पार्टियों ने दायर की है याचिका
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। इंडिया गठबंधन की पार्टियों कांग्रेस, टीएमसी, आरजेडी, सीपीएम, एनसीपी (शरद पवार गुट), सीपीआई, समाजवादी पार्टी, शिवसेना (यूबीटी) और झारखंड मुक्ति मोर्चा ने याचिका दायर कर वोटर लिस्ट सत्यापन पर सवाल उठाए हैं। इनका दावा है कि इस प्रक्रिया से गरीबों और महिलाओं के नाम वोटर लिस्ट से हटाए जा सकते हैं। इसके अलावा, दो सामाजिक कार्यकर्ता अरशद अजमल और रुपेश कुमार ने भी सत्यापन प्रक्रिया को चुनौती दी है।
अश्विनी उपाध्याय ने भी डाली है याचिका
वहीं, वकील अश्विनी उपाध्याय ने चुनाव आयोग के समर्थन में याचिका दायर की है। उन्होंने मांग की है कि सुप्रीम कोर्ट आयोग को निर्देश दे कि सत्यापन इस तरह हो कि केवल भारतीय नागरिक ही वोटर लिस्ट में रहें। उपाध्याय ने दावा किया कि अवैध घुसपैठ की वजह से देश के 200 जिलों और 1500 तहसीलों में जनसंख्या का ढांचा बदल गया है। उनकी याचिका में कहा गया है कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए घुसपैठियों को वोटर लिस्ट से हटाने के लिए सत्यापन जरूरी है।
जानें अभी तक कोर्ट में क्या-क्या हुआ
- चुनाव आयोग ने याचिकाओं पर आपत्ति जताते हुए कहा कि उसे सभी याचिकाओं की प्रतियां नहीं मिली हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पहले याचिकाकर्ताओं की दलीलें सुनी जाएंगी और साझा कानूनी सवालों पर विचार किया जाएगा। चुनाव आयोग की ओर से पूर्व अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल पैरवी कर रहे हैं, जबकि याचिकाकर्ताओं की ओर से गोपाल शंकरनारायणन और कपिल सिब्बल जैसे वरिष्ठ वकील दलीलें पेश कर रहे हैं। सिब्बल ने कहा कि वे आरजेडी नेता मनोज झा की ओर से पैरवी कर रहे हैं।
- गोपाल शंकरनारायणन ने दलील दी कि 2003 के मतदाता सूची की तुलना आज से नहीं की जा सकती, क्योंकि अब बिहार में करीब 8 करोड़ मतदाता हैं। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग का सघन पुनरीक्षण बड़े पैमाने पर मतदाताओं को सूची से बाहर कर सकता है। आयोग ने 1 जनवरी 2003 के बाद मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने वालों के लिए दस्तावेज जमा करना अनिवार्य किया है, जो 2003 से पहले के मतदाताओं पर लागू नहीं है। शंकरनारायणन ने इसे भेदभावपूर्ण बताते हुए कहा कि 11 दस्तावेजों को अनिवार्य करना पक्षपातपूर्ण है।
- शंकरनारायणन ने यह भी तर्क दिया कि मतदाता सूची की समीक्षा हर साल नियमित रूप से होती है और इस साल यह प्रक्रिया पहले ही हो चुकी है। ऐसे में दोबारा सघन पुनरीक्षण की जरूरत नहीं है। शंकरनारायणन ने सुझाव दिया कि आधार कार्ड को सत्यापन का सरल तरीका बनाया जा सकता था, क्योंकि अधिनियम में संशोधन के तहत आधार को पहचान के दस्तावेज के रूप में मान्यता दी गई है।
- शंकरनारायणन ने सवाल उठाया कि जब 2022 के चुनाव आयोग के सत्यापन नियमों में आधार शामिल है, तो इसे इस प्रक्रिया से क्यों हटाया गया। उन्होंने कहा कि कई दस्तावेज, जो आधार के आधार पर जारी किए जाते हैं, स्वीकार किए जा रहे हैं, लेकिन आधार को ही बाहर रखा गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब चुनाव आयोग को देना होगा।
- चुनाव आयोग के वकील ने कहा कि आधार नागरिकता का वैध प्रमाण नहीं है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि चुनाव आयोग नागरिकता तय करने का अधिकार नहीं रखता, क्योंकि यह गृह मंत्रालय का कार्यक्षेत्र है। कोर्ट ने कहा कि नागरिकता की जांच के लिए सख्त अर्ध-न्यायिक प्रक्रिया की जरूरत होती है। जस्टिस धूलिया ने स्पष्ट किया कि अगर कोई व्यक्ति मतदाता सूची में पहले से मौजूद है और उसे हटाया जाता है, तो उसे नागरिकता साबित करने की जटिल प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा, जो उसे आगामी चुनाव में वोट देने से वंचित कर सकता है।
- सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि क्या सघन पुनरीक्षण नियमों के तहत है और यह कब किया जा सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता आयोग के अधिकार क्षेत्र को नहीं, बल्कि पुनरीक्षण के तरीके को चुनौती दे रहे हैं। जस्टिस बागची ने बताया कि आरपी एक्ट की धारा 21 की उपधारा 3 के तहत आयोग को विशेष पुनरीक्षण का अधिकार है, जिसे वह उचित तरीके से कर सकता है। हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर यह प्रक्रिया प्रस्तावित चुनाव से कुछ महीने पहले शुरू की जाती है, तो यह मतदाताओं के अधिकारों को प्रभावित कर सकती है।
- कपिल सिब्बल ने कहा कि मतदाता सूची से किसी को हटाने से पहले आयोग को यह साबित करना होगा कि वह व्यक्ति नागरिक नहीं है। उन्होंने बिहार सरकार के सर्वे का हवाला देते हुए कहा कि बहुत कम लोगों के पास पासपोर्ट (2.5%), मैट्रिकुलेशन प्रमाण पत्र (14.71%), निवास प्रमाण पत्र या अन्य दस्तावेज हैं। आधार, जन्म प्रमाण पत्र और मनरेगा कार्ड को भी इस प्रक्रिया में शामिल नहीं किया गया है। वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि एक भी योग्य मतदाता को वोटिंग के अधिकार से वंचित करना लोकतंत्र और समान अवसर के सिद्धांत के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सहमति जताते हुए कहा कि वह इस मामले में याचिकाकर्ताओं के साथ है।
- जस्टिस धूलिया ने कहा कि 2003 की तारीख इसलिए चुनी गई, क्योंकि यह कंप्यूटराइजेशन के बाद पहली मतदाता सूची थी, जिसमें एक तर्कसंगत आधार है। हालांकि, उन्होंने यह भी पूछा कि क्या नियमों में सघन पुनरीक्षण का समय स्पष्ट है। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि उन्हें यह साबित करना होगा कि आयोग का तरीका गलत है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए कहा कि मतदाता सूची को शुद्ध करने में कोई गलती नहीं है, लेकिन इसे चुनाव से ठीक पहले करना उचित नहीं हो सकता।