नई दिल्ली : राज्यसभा चुनाव में खरीद-फरोख्त की कोशिश के आरोपों के बीच मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार ने गुरुवार को कहा कि चुनाव प्रक्रिया की निगरानी के लिए विशेष पर्यवेक्षक नियुक्त किए गए हैं। पूरी चुनाव प्रक्रिया की वीडियोग्राफी कराई जाएगी। चार राज्यों-हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र और कर्नाटक की 16 सीटों के लिए शुक्रवार को मतदान कराया जाएगा। इन राज्यों में होने वाले चुनाव में जीत हासिल करने के लिए सत्तारूढ़ दलों और विपक्ष में जबर्दस्त राजनीतिक संघर्ष चल रहा है। महाराष्ट्र में लड़ाई दिलचस्प हो चुकी है। यहां पर राकांपा नेताओं-अनिल देशमुख और नवाब मलिक को विशेष अदालत से मतदान के लिए एक दिन की जमानत नहीं मिली। अब दोनों नेता हाई कोर्ट पहुंचे हैं। हरियाणा और राजस्थान में भी कांटे की टक्कर है। कर्नाटक में कांग्रेस और जदएस आपसी खींचतान में उलझे हुए हैं। बताते चलें कि 11 राज्यों की 57 राज्यसभा सीटों पर उम्मीदवारों का निर्विरोध निर्वाचन हो चुका है।

महाराष्‍ट्र में रोचक मुकाबला

महाराष्ट्र में मुकाबला रोचक हो गया है। पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख एवं अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री नवाब मलिक मतदान के लिए पीएमएलए कोर्ट से अपनी अर्जी खारिज होने के बाद हाई कोर्ट पहुंच गए हैं। फिलहाल न्यायिक हिरासत में चल रहे दोनों नेता चाहते हैं कि शुक्रवार को होने वाले राज्यसभा के चुनाव में उन्हें मतदान की अनुमति दी जाए। हरियाणा में दो सीटों के लिए चुनाव होंगे। अपने-अपने विधायकों को खरीद-फरोख्त से बचाने के लिए सत्तारूढ़ भाजपा और जजपा तथा विपक्षी कांग्रेस ने विधायकों को रिजार्ट में भेज दिया है।

राजस्‍थान में भी रिसॉर्ट पॉलिटिक्‍स

राजस्थान में राजनीतिक गहमागहमी चरम पर है। राजस्थान हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। हाई कोर्ट ने छह विधायकों की अयोग्यता के संबंध में याचिका पर फैसला होने तक राज्यसभा चुनाव परिणाम की घोषणा पर रोक लगाने से इन्कार कर दिया था।

कर्नाटक की चार सीटों पर हो रहा चुनाव

कर्नाटक में चार सीटों पर चुनाव हो रहा है। चौथी सीट पर कौन पार्टी बाजी मारेगी, यह जानने के लिए कौतूहल लगातार बना हुआ है। राज्य में तीनों प्रमुख पार्टियों ने उम्मीदवार खड़े कर दिए हैं। विपक्षी खेमे में आपस में ही एक-दूसरे का वोट काटने की कवायद चल रही है। कांग्रेस और जदएस के शीर्ष नेता एक दूसरे के विधायकों तक पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं, क्योंकि उनके बीच समर्थन देने को लेकर कोई औपचारिक समझ नहीं बन सकी। यहां पर दोनों विपक्षी पार्टियां अपने-अपने रुख पर कायम हैं।