चीनी मीडिया का प्रॉपगैंडा जारी, ‘संवेदनशील वक्त में भारत को हथियार न दे रूस’

- भारत के खिलाफ चीनी मीडिया का प्रॉपगैंडा जारी
- ‘संवेदनशील वक्त में भारत को हथियार न दे रूस’
- लद्दाख में पीछे हटने को लेकर मान गया है ड्रैगन
- फिर भी अभी मीडिया का आग उगलना है जारी
पेइचिंग
भारत के साथ लद्दाख में सीमा पर तनाव को लेकर एक ओर जहां चीन शांति स्थापित करने की दुहाई दे रहा है, वहीं दूसरे देशों का समर्थन भारत को मिलता देख परेशान भी हो रहा है। यहां तक कि चीन के सरकारी प्रॉपगैंडा अखबार पीपल्स डेली ने रूस को यहां तक नसीहत दे डाली है कि वह भारत को ‘संवेदनशील’ वक्त में हथियार न बेचे। गौरतलब है कि रूस में विक्ट्री डे के जश्न पर भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह मॉस्को पहुंचे हैं और इस दौरान डिफेंस डील को लेकर चर्चा की गई है।
‘न दे भारत को हथियार’
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पीपल्स डेली ने फेसबुक पर ‘सोसायटी फॉर ओरियंटल स्टडीज ऑफ रूस’ नाम के ग्रुप में लिखा है, ‘एक्सपर्ट्स कहते हैं कि अगर रूस को चीनी और भारतीयों के दिल पिघलाने हैं, तो भारत को ऐसे संवेदनशील वक्त में हथियार नहीं देने चाहिए। दोनों एशियाई ताकतें रूस की करीबी सहयोगी हैं।’ पीपल्स डेली ने कहा है, ‘लद्दाख में चीन के साथ जारी तनाव के बीच भारत जल्द से जल्द 30 फाइटर जेट खरीदना चाहता है, जिनमें MiG29 और 12 सुखोई 30MK शामिल हैं।’
भारत और रूस में डील
दूसरी ओर मॉस्को पहुंचे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने देश के उपप्रधानमंत्री युरी इवानोविक से चर्चा के बाद बताया कि रूस ने भरोसा दिलाया है कि जो समझौते दोनों देशों के बीच किए जा चुके हैं, उन्हें जारी रखा जाएगा। साथ ही यह भी कहा गया कि इन्हें तेजी से निपटाया जाएगा। दरअसल, भारत के लिए हाल में मुश्किलें बढ़ा रहे चीन और पाकिस्तान, दोनों के पास जो अडवांस्ड हथियार हैं, उन्हें देखते हुए भारत ने अपना जखीरा बढ़ाने का फैसला किया है और 5 अरब डॉलर यानी 40,000 करोड़ रुपये में एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम S-400 की डील की है।
‘अमेरिका-रूस की परवाह नहीं‘
पीपल्स डेली से पहले चीन सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने खुलेआम चेतावनी देते हुए लिखा है कि 1962 के युद्ध में अमेरिका और रूस भारत के पक्ष में आए लेकिन चीन ने किसी की परवाह न करते हुए भारत को दूर खदेड़ दिया। ग्लोबल टाइम्स ने आगे लिखा कि अगर भारत एकतरफा सीमा प्रबंधन तंत्र का उल्लंघन करता है, तो चीन को भी जबरदस्ती जवाब देना होगा। किसी की सहायता भी भारत के काम नहीं आएगी।
चीन के पहले क्रूर शासक की याद दिलाते हैं राष्ट्रपति शी जिनपिंग221 ईसा पूर्व का चिन साम्राज्य और इसका शासक चिन शी ह्वांग। 6 राज्यों को भयानक युद्ध में पराजित कर एकीकृत चीन का साम्राज्य खड़ा किया। चीन को एक भाषा, एक मुद्रा और एक व्यवस्था के जरिए सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से जोड़ने के बाद अपने शहरों को दुश्मनों से बचाने के लिए ग्रेट वॉल ऑफ चाइना का निर्माण शुरू किया। दुनिया में अपनी तरह का यह पहला प्रॉजेक्ट था और आज तक यह एक अजूबे की तरह कायम है। सदियों बाद चीन में दुनिया चिन की परछाईं को देख रही है। शी जिनपिंग ने जब 2017 में खुद को हमेशा के लिए राष्ट्रपति घोषित किया तो दुनिया को पता था कि अब किस तरह का नेतृत्व देखने को मिलेगा। अब जिस तरह चीन भारत में कभी लद्दाख, कभी सिक्कम पर नजरें गड़ाता है, कभी साउथ चाइना सी में अमेरिका से तो कभी सेंकाकू टापू के लिए जापान से उलझता है, उससे सवाल उठता है कि जिनपिंग कहीं देश को चिन ह्वांग की राह पर तो नहीं ले जा रहे। शी जिनपिंग को लेकर भी कहा जाता है कि वह राजनीतिक एक्सपेरिमेंट या लिबरल मूल्यों, सिविल सोसायटी या मानवाधिकारों की चीन में जगह नहीं देखते हैं। नागरिकों पर सर्विलांस करने और मानवाधिकारों का उल्लंघन करने के आरोप भी चीन पर लगते रहे हैं।