हरियाणा मंत्रिमंडल विस्तार में दिखी सियासी मजबूरी, खट्टर की सोशल इंजीनियरिंग में जाटों का दबदबा
हरियाणा की भाजपा-जजपा सरकार के पहले कैबिनेट विस्तार में राजनीतिक मजबूरी की झलक साफ नजर आई। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर जिस सोशल इंजीनियरिंग के लिए पहचाने जाते थे, उसका स्वरूप इस बार काफी हद तक बदल चुका है। खट्टर की नई सोशल इंजीनियरिंग में जाटों का दबदबा दिखाई पड़ रहा है। पिछले कार्यकाल के दौरान भाजपा सरकार में दो जाट मंत्री थे। इस बार डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला को मिलाकर तीन कैबिनेट मंत्री हो गए हैं।
अगर एक राज्यमंत्री को भी मिलाएं तो इनकी संख्या चार पर पहुंच जाती है। पंजाबी समुदाय से दो, एक ब्राह्मण, एक अनुसूचित जाति से, एक अहीर, एक धानक और एक सिख (सैनी) समुदाय से मंत्री बनाया गया है। इस बार वैश्य समाज का कोई भी प्रतिनिधि खट्टर सरकार में बतौर मंत्री शामिल नहीं है। हालांकि इस समुदाय के विधायक ज्ञानचंद गुप्ता को पहले ही विधानसभा अध्यक्ष बना दिया गया है।
सभी जातियों को जगह
हालांकि खट्टर ने कैबिनेट विस्तार में अपनी जिस नई सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला बनाया है, उसमें लगभग सभी जातियों को जगह मिल गई है। यह अलग बात है कि राजनीतिक मजबूरी के चलते सीएम खट्टर कुछ लोगों को चाहते हुए भी कैबिनेट में शामिल नहीं कर सके। पिछली सरकार में यादव समुदाय से कैबिनेट में एक विधायक को जगह मिली थी। इस बार यादव समुदाय को राज्यमंत्री से ही संतुष्ट करने का प्रयास किया गया है।
कितनी सफल होगी खट्टर की नई सोशल इंजीनियरिंग?
75 सीटों का सपना हुआ चूर
अब मंत्रिमंडल विस्तार में जाटों को छोड़कर बाकी जातियों को सिंगल प्रतिनिधित्व ही मिल सका है। मुख्यमंत्री खट्टर की नई सोशल इंजीनियरिंग का तकाजा है कि इससे प्रदेश में जाट समुदाय भाजपा से जुड़ेगा। गैर जाटों को दूसरे तरीकों से साधने का प्रयास होगा। इन सब का नतीजा अगले विधानसभा चुनाव में ही पता चलेगा कि खट्टर की नई सोशल इंजीनियरिंग भाजपा के लिए उत्साह प्रदान करने वाली पहल साबित होती है या पार्टी को 40 से भी नीचे ले जाने का आत्मघाती कदम।