सफर की हालत में रोजा छोड़ने की इजाजतः उलमा
देवबंद [24CN] : पवित्र रमजान माह में सफर (यात्रा) करने की हालत में शरीयत में रोजा छोड़ने की इजाजत है। इस मसले पर उलमा का कहना है कि सफर की हालत में रोजा छोड़ने की इजाजत जरूर है, लेकिन इसके लिए कुछ जरूरी शर्ते भी हैं। जिन पर अमल करना बेहद जरुरी है।
तंजीम अब्ना-ए-दारुल उलूम के अध्यक्ष मुफ्ती यादे इलाही कासमी ने इस्लामी पुस्तक किफायतुल मुफ्ती का हवाला देते हुए बताया कि यात्रा की हालत में रोजा तभी छोड़ा जा सकता है जब ४८ मील यानी ७०.२५ किलोमीटर या उससे अधिक दूरी का सफर हो। शरई सफर की शर्त ४८ मील है। बताया कि सफर की हालत में रोजा छोड़ने की इजाजत के साथ ही नमाज भी आधी हो जाती है। कहा कि रमजान माह में सफर दुश्वारियों से भरा हो या आसान, पैदल हो या सवारी, रेल का हो या कार का या फिर हवाई जहाज का, हर हाल में मुसाफिर के लिए रोजा नहीं रखने की गुंजाइश है, लेकिन अगर सफर की हालत में रोजा कजा न किया जाए तो बेहतर है। यदि सफर में रोजा छोड़ दिया तो रोजा छोड़ने वाले व्यक्ति पर कजा (बाद में रोजा रखना) लाजिमी है।
मुफ्ती यादे इलाही कासमी ने यह भी बताया कि सफर के दौरान यदि किसी स्थान पर रहने की नीयत १५ दिन या उससे ज्यादा की है तो वह शख्स मुसाफिर नहीं बल्कि मुकीम बन गया। ऐसे में उसके लिए रोजे रखना जरूरी है, लेकिन यदि कोई व्यक्ति लगातार सफर में है, कुछ दिन ठहरता है और आगे बढ़ जाता है और किसी जगह १५ दिन लगातार नहीं ठहरता तो ऐसा व्यक्ति मुसाफिर समझा जाएगा। कहा कि फिलहाल कोरोना की दूसरी लहर देश विदेश में हावी है। ऐसे में बहुत ज्यादा जरूरत पड़ने पर ही सफर करें, तो बेहतर होगा।