विश्वास के काबिल नहीं है पाकिस्तान, लंबा नहीं चलने वाला है सीजफायर, जानें- एक्सपर्ट व्यू

नई दिल्ली । भारत और पाकिस्तान ने सीमा पर शांति बनाने को लेकर सहमति जताई है। दोनों तरफ के डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशन की बैठक में ये फैसला लिया गया है। लेकिन, ये कब तक कायम रहती है ये सब कुछ पाकिस्तान पर निर्भर करता है। ऐसा कहने की वजह बेहद साफ है। भारत जहां हमेशा से ही सीमा पर शांति का पक्षधर रहा है वहीं पाकिस्तान ने कभी इसको लेकर गंभीरता नहीं दिखाई है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पिछले दिनों सदन में बताया था कि इस वर्ष जनवरी तक ही पाकिस्तान ने की तरफ 299 बार संघर्ष विराम का उल्लंघन किया गया। वहीं पिछले वर्ष (2020) की बात करें तो 5133 बार पाकिस्तान ने संघर्ष विराम किया था। वर्ष 2019 में इस तरह की 3233 बार हुई थी। संघर्ष विराम उल्लंघन का सीधा सा अर्थ सीमा पर अशांति बरकरार रखना है। जहां तक रक्षा विशेषज्ञों की बात है तो वो इस तरह की सहमति को एक छोटा सा कदम मानते हैं जो बेहद छोटी अवधि तक ही टिका रह सकता है। इनकी राय में पाकिस्तान विश्वास के काबिल नहीं है।
इस बारे में रक्षा विशेषज्ञ सुशांत सरीन का कहना है कि न तो सीमा पर न ही राजनीतिक स्तर पर कोई ऐसा बदलाव आया है जिसको लेकर कहा जा सके कि इससे कुछ खास फायदा हो सकेगा। इन दो दशकों में इस तरह की सहमति कई बार बनी है और हर बार इसके टूटने की वजह पाकिस्तान ही बना है। 2003 में भी इस तरह की सहमति बनी थी। वर्ष 2008 में मुंबई हमला हो गया। इसकी वजह से सीमा पर ये वर्ष भी अशांति के बीच ही कटा था। बीते एक दशक की बात करें तो सीमा पर लगभग अशांति का ही माहौल रहा है। वर्ष 2012 के बाद तो सीमा पर घुसपैठ और सीजफायर उल्लंघन के मामले काफी बढ़ गए हैं।
राजनाथ सिंह ने जो आंकड़े सदन को बताए उससे यही तथ्य उभरकर सामने आता है कि पाकिस्तान किस तरह से सीमा पर तनाव पैदा करने की हर संभव कोशिशों में जुटा रहता है। लेकिन जब भी भारत की तरफ से कोई कड़ा कदम उठाए जाने के संकेत उसको दिखाई देते हैं तो वो डीजीएमओ वार्ता में सीमा पर शांति को लेकर सहमति जता देता है। इस बार भी पाकिस्तान के रवैये में शायद ही कोई सुधार देखने को मिले। हालांकि इसकी उम्मीद न के ही बराबर है।
पाकिस्तान की सेना और वहां के नेता लगातार भारत के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं। उनकी राय में सीमा पर तनाव कम करने की दिशा में डीजीएमओ की बैठक काफी अहम होती है। जहां तक सहमति की बात है तो इसके पीछे कुछ खास वजह हो सकती हैं। इसके पीछे एक वजह चीन भी हो सकती है। दरअसल, दक्षिण एशिया में सत्ता के समीकरण बाइडन के आने के बाद बदलने की आहट सुनी जा सकती है। बाइडन पहले ही कह चुके हैं कि वो भारत को अपना करीबी दोस्त मानते हैं और उनका निजीतौर पर भारत से संबंध काफी अच्छा है। लिहाजा पाकिस्तान को सीमा पर शांति बहाली बनाने के निर्देश चीन की तरफ से मिले हों। इस बहाने चीन और पाकिस्तान दोनों को ही पाकिस्तान के करीब आने का मौका मिल सकता है।
सरीन के मुताबिक ऐसा भी हो सकता है कि ये चीन और पाकिस्तान दोनों की मिलीभगत का परिणाम हो जिसके पीछे ध्यान भटकाने की राजनीति काम कर रही हो। ये भी हो सकता है कि जितने दिन सीमा पर शांति कायम रहती है उतने दिन में पाकिस्तान खुद को मजबूत बनाने के लिए काम करे। पाकिस्तान सेना के प्रमख जनरल कमर जावेद बाजवा ने भी कुछ समय पहले कहा था कि सीमा पर शांति बहाली समय की मांग है। वहीं भारत भी नहीं चाहता है कि अमेरिका दोनों पक्षों के बीच किसी तरह की कोई दखल दे। भारत हमेशा से ही दोनों देशों के बीच विवादों को द्विपक्षीय तरीके से ही सुलझाने का पक्षधर रहा है। सुशांत का कहना है कि सीजफायर का इस्तेमाल भारत भी भविष्य के लिए अपनी रणनीति बनाने में और जहां कहीं सीमा पर कमियां हैं उसको पूरा करने में करेगा।
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