लखनऊ। भारत की जीवनधारा के साथ ही मोक्षदायिनी व जीवनदायिनी के नाम से सुशोभित गंगा नदी के अवतरण दिवस यानी गंगा दशहरा का पर्व उत्तर प्रदेश में काफी धूमधाम ने मनाया जा रहा है। कोरोना संक्रमण काल के कारण दो वर्ष तक तमाम पाबंदियों के कारण गंगा दशहरा मनाने से वंचित लोगों इस बार हापुड़ से लेकर वाराणसी तक गंगा नदी में पुण्य की डुबकी लगाई है।

बिजनौर, बदायूं, गढ़मुक्तेश्वर के साथ ही फर्रुखाबाद, कन्नौज, कानपुर, प्रतापगढ़, रायबरेली, प्रयागराज, भदोही, मिर्जापुर तथा वाराणसी में लोग तड़के ही गंगा नदी के तट पर एकत्र हो गए और पुण्य की डुबकी लगाई। वाराणसी में गंगा दशहरा पर श्रद्धालु बड़ी संख्या उमड़े। बदायूं में कछला घाट पर गंगा नदी में बड़ी संख्या में लोगों ने गंगा दशहरा पर्व पर स्नान किया। इसके बाद पूजा-पाठ तथा दान-पुण्य का सिलसिला चला। आज 12 बजे तक स्नान-दान का विशेष मुर्हूत है।

भारत में तीर्थों के राजा माने जाने वाली नगरी प्रयागराज में पापनाशिनी सुरसरि के धरा पर अवतरण का पर्व गंगा दशहरा संगम नगरी में आस्था के साथ मनाया जा रहा है । गंगा नदी तटों पर सुबह से स्नानार्थियों की भीड़ है। पावन संगम पर तो किसी मेले जैसा दृश्य नजर आ रहा है। श्रद्धालु पुण्य की डुबकी लगाने के बाद यथासंभव दान दक्षिणा दे रहे हैं। मान्यता है कि मां गंगा का पृथ्वी पर अवतरण जेष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि में वृष लग्न में हुआ था।

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गंगा नदी में आज का स्नान विशेष फलदायक : भारत की जीवनदायिनी मां गंगा का पृथ्वी पर अवतरण ज्येष्ठ शुक्लपक्ष दशमी तिथि व वृष लग्न में हुआ था। दशमी तिथि आज तड़के 3.08 बजे से लगकर रात 2.26 बजे तक रहेगी। वृष लग्न भोर 3.42 से सुबह 5.37 तक है। सूर्योदय सुबह 5.14 बजे तक होगा। वृष लग्न के दौरान स्नान-दान का विशेष मुहूर्त है। वैसे दशमी तिथि दिनभर है, ऐसी स्थिति में दोपहर 12 बजे तक स्नान किया जा सकता है। मां गंगा राजा भगीरथ के पूर्वजों को मुक्ति देने के लिए पृथ्वी पर अवतरित हुई हैं। ऐसे में हर व्यक्ति को गंगा दशहरा पर पूर्वजों के निमित्त पूजन करना चाहिए। इसमें क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा, निंदा और चोरी के भाव का नाश करने का संकल्प लेकर कम से कम दस डुबकी लगानी चाहिए। स्नान, ध्यान और तर्पण करने से शरीर शुद्ध और मानसिक विकारों से मुक्त हो जाता है। साथ ही फल, सत्तू में देशी घी मिलाकर, गुड़ के पिंड जल में प्रवाहित करने से मानसिक, शारीरिक व आर्थिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। फल, सत्तू, जल भरा घड़ा, छाता का दान करना चाहिए।

वाराणसी में विषेश पूजा-पाठ : वाराणसी के तीर्थ-पुरोहितों का मानना है कि आज की ही पावन तिथि को शिव की जटाओं से धारा के रूप में धरती के मंगलार्थ अवतरित गंगा का रूप वैभव आध्यात्मिक और लौकिक दोनों ही सौंदर्य राशियों से अंलकृत है। एक तरफ मानस गंगा जगतारिणी व पापोद्धारिणी के रूप में ‘गंगा ममांगम अमलीं करोति’ जैसे श्रेयस से आभामंडित है, तो दूसरी तरफ मनोहारिणी दैहिक गंगा का रूप ‘ऐश्वर्य गंगा तरंग रमणीय जटाकलापम’ जैसे उद्धरणों से सीधे देवाधिदेव महादेव से दिव्य आभामंडल से जुड़ती है, वहां से नैसर्गिक सौंदर्य का एक संपूर्ण वसंत लेकर कलकल करती गोमुख से गंगा सागर के बीच कई मुहानों पर मुड़ती है।jagran

वैसे तो जान्हवी की रूपराशि इस अनथक यात्रा में स्थान के अनुसार नए-नए लावण्यों का सृजन करती है, पर काशी पुराधिपति पर काशीपति विश्वनाथ की नगरी के कंठ में चंद्रहार की तरह सुशोभित यही गंगा श्रृंगार की पूर्णता के साथ सौंदर्य के सारे प्रतिमान ध्वस्त करती है। काशी की गंगा यह अनुपम छटा सदियों से गुणवंतों की रिझाती चली आई है। फिर वह पंडित राज जगन्नाथ हों, हस्तिमल्ल हों, या मियां गालिब। सभी ने रूपवती गंगा की शान में कसीदे काढ़े हैं, अपनी रचनाओं में गंगा के इस रूपस के भिन्न-भिन्न बिंब उभारे हैं।