किसी ने नहीं बताया कि मुझे क्यों बाहर किया गया: हरभजन सिंह

किसी ने नहीं बताया कि मुझे क्यों बाहर किया गया: हरभजन सिंह
  • भज्जी ने कहा कि शायद ही ऐसा कोई बंदा हो जिससे मेरी पटती नहीं हो। युवराज आशीष नेहरा सचिन पाजी अगरकर जहीर या जितने भी युवा खिलाड़ी हैं उनसे बात करें तो कोई यह नहीं कहेगा कि हरभजन के साथ मजा नहीं आता था।

दिग्गज भारतीय आफ स्पिनर हरभजन सिंह ने शुक्रवार को क्रिकेट के सभी प्रारूपों से संन्यास ले लिया। घरेलू क्रिकेट में पंजाब के लिए खेलने वाले हरभजन ने 1998 में शारजाह में न्यूजीलैंड के खिलाफ वनडे मैच से अंतरराष्ट्रीय पदार्पण किया था। उन्होंने मार्च 2001 में आस्ट्रेलिया के खिलाफ तीन टेस्ट मैचों की सीरीज में 32 विकेट लिए थे। इस दौरान वह टेस्ट क्रिकेट में हैट्रिक लेने वाले पहले भारतीय गेंदबाज बने थे।

उन्होंने मार्च 2016 में ढाका में संयुक्त अरब अमीरात के खिलाफ टी-20 मैच के रूप में अपना अंतिम अंतरराष्ट्रीय मैच खेला था। उसके बाद वह लगातार आइपीएल में खेले, लेकिन टीम इंडिया उनकी वापसी नहीं हो सकी। उन्हें इस बात का गिला है कि उन्हें टीम से बाहर करने का कारण कभी बताया नहीं गया और इस बात का मलाल है कि उन्हें मैदान में खेलते हुए क्रिकेट से विदा लेने का मौका नहीं दिया गया।

–कई सालों से दिमाग में यह चल रहा था। पता ही नहीं चला समय कैसे निकल गया, लेकिन अब ले लिया है।

-अब आगे का क्या रोड मैप बनाया है, क्योंकि आप फिल्में भी करते हैं और आपके राजनीति में आने और किसी आइपीएल टीम में कोचिंग करने की बात भी चल रही थी, तो आपकी क्या योजना है?

–ऐसी कुछ आगे की योजना तो मैंने अभी तय नहीं की है, लेकिन देखते हैं भगवान ने भविष्य में हमारे लिए क्या रखा है। जो यहां तक लेकर आया है वह आगे भी जरूर कोई रास्ता दिखाएगा। बंदा करना चाहे तो करने के लिए तो बहुत से काम हैं, पर मैं बहुत शुक्रगुजार हूं कि क्रिकेट में इतना सब कुछ कर पाया। आगे भी क्रिकेट से जुड़ा रहना चाहूंगा, फिर चाहे वो किसी भी तरह हो, चाहे कोचिंग के रूप में हो या मेंटर के रूप में हो। जिस क्रिकेट की वजह से आज मैं हूं, तो मैं चाहूंगा कि क्रिकेट को अगर मैं कुछ वापस दे सकूं तो जरूर युवा खिलाडि़यों के साथ समय बिताकर उन्हें कुछ सिखाकर देने की कोशिश करूंगा।

-हाल के समय में भारत के कई बड़े-बड़े क्रिकेटरों ने मैदान में खेलकर संन्यास लेने की जगह इस तरह से संन्यास लिया, क्या और बेहतर नहीं होता कि आप मैदान से संन्यास लेते या आपका अपना निर्णय था कि मैं ऐसे ही आइपीएल खेलूंगा और जब मुझे संन्यास लेना होगा, लूंगा?

–हां, निर्णय तो मेरा ही था कि मुझे संन्यास कब लेना है और कब नहीं। चाहता तो हर क्रिकेटर की तरह मैं भी था कि मैं मैदान से संन्यास ले लेता तो अच्छा होता, पर ऐसा नहीं हो पाया। कहते हैं ना कि आपको जिंदगी में हर चीज नहीं मिलती है, चाहे कितनी भी कोशिश करते रहो।

-अभी अश्विन ने भी कहा था कि उनके जीवन में एक समय आया था कि जब उन्हें लगा कि संन्यास ले लेना चाहिए, या उन्हें उस तरह का सपोर्ट नहीं मिल रहा था, तो पहले भी कभी आपके जीवन में क्रिकेट में कभी ऐसा भी कोई मोड़ आया, जब आपको लगा हो कि बस अब बहुत हो गया?

–सपोर्ट जब तक मिलती है तब तक तो बहुत अच्छा लगता है। मैं तो यही कहूंगा कि सपोर्ट ठीक समय पर मिलती तो शायद यह संन्यास मैं 500-550 विकेट लेकर बहुत पहले ले लेता, क्योंकि जब मैं 31 साल का था तो मैंने 400 विकेट ले लिए थे और अगर तीन-चार साल और खेलता तो 500-550 विकेट ले लेता। लेकिन, वो सब हुआ नहीं। उसके बहुत सारे कारण है, उसमें जाएंगे तो हम बहुत सारी चीजों को खोदेंगे, जो मैं करना नहीं चाहता। 2001-02 के बाद तो सपोर्ट की जरूरत पड़ी ही नहीं, सपोर्ट की जरूरत 400 विकेट लेने के बाद ही पड़ी और यदि 400 विकेट लेने वाले को भी अगर सपोर्ट की जरूरत पड़ती है तो मैं नहीं जानता कि किस कदर हम अपने खिलाडि़यों की देखभाल करते हैं। एक समय आता है जब आपको अपने खिलाडि़यों को सम्मान देना ही चाहिए, जिसका वह हकदार है। मगर कुछ वर्ग के लोगों का निर्णय होता है कि इनको कैसे रखना है। मगर मैं यही कहना चाहूंगा कि 2001-02 के बाद जो सपोर्ट मुझे सौरव गांगुली ने दिया, उसके बाद सपोर्ट की ऐसी जरूरत पड़ी नहीं, लेकिन 2012 में जब सपोर्ट की जरूरत थी और वह मिल जाता तो मेरा करियर और बेहतर होता और मैं 550 विकेट लेकर बहुत पहले क्रिकेट छोड़ चुका होता।

-आपको कुंबले के बाद नंबर दो गेंदबाज रहने का मलाल तो रहेगा ही?

–मुझे ऐसा कोई मलाल नहीं है कि मैं नंबर दो पर रहूं या नंबर 10 पर रहूं। ये नंबर सिर्फ आपके जहन में है। मुझे सिर्फ इस बात की खुशी है कि मैं इतने साल भारतीय टीम में खेल सका और योगदान कर सका। अफसोस जताने के लिए तो कहते रहेंगे कि यह ठीक नहीं हुआ, वह ठीक नहीं हुआ, लेकिन बहुत कुछ ठीक भी हुआ। मैं खुशकिस्मत हूं कि भगवान ने मुझे इस लायक बनाया कि मैं इतने लंबे अर्से तक खेल सका। 100 टेस्ट मैच खेलना बहुत बड़ी बात होती है। मेरा मकसद था कि मैं 100 टेस्ट खेलने वाला भारतीय गेंदबाज बनूं, तो वो बना भी। कई चीजें रह जाती हैं जो आप नहीं कर पाते हो, मगर जिंदगी सिर्फ क्रिकेट नहीं है। इसके आगे बहुत कुछ और करना है।

-लेकिन, आपने एक बार कपिल शर्मा के शो में कहा था, जब आप जज बने हुए थे और श्रीकांत आए हुए थे तो आपने कहा था कि जब मैं अच्छा प्रदर्शन कर रहा था तो आपने निकाल दिया था?

–बिलकुल, कोई 400 विकेट खराब गेंदबाजी करके तो मिलते नहीं हैं। जब कोई 400 विकेट लेता है तो उसके बाद उसको खेलने का मौका ही नहीं मिले या उसको बताया ही नहीं जाए कि उसको क्यों बाहर किया गया है, तो बहुत बड़े सवाल मेरे जहन में थे, जिसका किसी ने जवाब ही नहीं दिया। मैंने कई लोगों से जानने की कोशिश की, चयनकर्ताओं से लेकर मैंने हर किसी से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन तब किसी ने मुझे नहीं बताया कि मुझे क्यों बाहर किया गया। अब 400 विकेट लेने वाला बंदा चयनकर्ताओं के आगे जाकर तो यह नहीं पूछेगा कि मुझे क्यों नहीं चुना जा रहा है, मुझे जवाब तो दो मुझे क्यों नहीं चुना जा रहा है। क्या अचानक से मेरी शक्ल खराब हो गई है या मेरी गेंदबाजी खराब हो गई है या क्या हो गया है जो आप मुझे चुन ही नहीं रहे हो। इसका कोई जवाब ही नहीं था। और अगर ऐसा 400 विकेट लेने वाले के साथ हो सकता है तो 40 विकेट लेने वाले को तो कोई पूछेगा ही नहीं। यह भारतीय क्रिकेट की एक दुखद कहानी है, जहां पर जिसने कुछ हासिल किया है, यदि उसकी जरूरत नहीं लगी तो फिर बाद में किसी ने उससे ठीक से बात भी नहीं की।

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-उसके बाद भी जब सालों बीत गए तो जवाब मिला कि नहीं?

–जवाब जिनसे मिलने थे उनसे हमने दोबारा पूछने की कोशिश ही नहीं की, क्योंकि बीता हुआ समय वापस आएगा ही नहीं। अब जब वे लोग जो उस पोजिशन में थे वे अब यही कहकर मिलते हैं कि सारी, हमने तब गलती की। किसी ने बताया कि हमारे ऊपर दवाब था, हम ऐसा कर नहीं पाए। ठीक है, जब आप कर सकते थे तब आपने किया नहीं, तो अब उस सारी का कोई फायदा नहीं। सारी से मेरी जिंदगी तो अब बदलने वाली नहीं है। हां, आपके उस निर्णय से मेरी जिंदगी जरूर बदल गई, जो आपने तब लिया। 400 विकेट लेने वाले को किसी के आगे हाथ फैलाने की जरूरत नहीं थी और मैंने समझा भी नहीं। मुझे टी-20 में भी बाद में चुना गया तो उसके बावजूद मैं अंतिम तीन सीरीज में सिर्फ टूरिस्ट था तो उस चीज का कोई फायदा ही नहीं। 2011-12 के बाद मेरे लिए चीजें अलग हो गई। हालांकि, मैं आइपीएल में लगातार प्रदर्शन कर रहा था, लेकिन मुझे टीम में लिया ही नहीं गया और जब लिया गया तो खिलाया ही नहीं गया। मैं नहीं जानता कि उसके क्या कारण हैं, मगर ठीक है, जो हुआ अच्छा ही हुआ। मैं खुश हूं कि मैंने जो हासिल किया, जिंदगी में मुकाम बनाया, मैं बीसीसीआइ का आभारी हूं कि उसने मुझे ये मौके दिए, बीसीसीआइ यदि मुझे मौके ही नहीं देता तो मैं इस मुकाम पर होता ही नहीं।

-जब आप हटे तो अश्विन आए, लेकिन अश्विन ने हाल में कहा था उन्हें तब बहुत दुख हुआ था कि जब रवि शास्त्री ने कहा था कि विदेश में कुलदीप हमारे नंबर एक स्पिनर हैं, तो जब आपकी जगह अश्विन खेल रहे थे तो उन्हें अच्छा लग रहा होगा, लेकिन जब अश्विन की जगह कुलदीप आने लगे तो उन्हें खराब लगने लगा?

–बात वो नहीं है कि कौन खेल रहा है और कौन नहीं। सभी कोशिश करते हैं कि वे खेलें, उन्हें मौका मिले। पर एक ऐसा खिलाड़ी होता है जिसने खुद को साबित किया है और एक नया खिलाड़ी होता है। यदि अनुभवी खिलाड़ी बाहर नहीं जाएगा तो नया खिलाड़ी कैसे आएगा। मगर तरीका ठीक होना चाहिए। जो अश्विन ने हासिल किया है तो उन्हें कुलदीप के आने से बुरा लगा, यह उनका अलग विषय है, मैं नहीं जानता कि उनके मन में क्या बीती, मगर जब मैं इतने साल विकेट लेते हुए आ रहा था तो मेरा प्रदर्शन इतना गिरा हुआ नहीं था कि मेरी टीम में जगह नहीं बनती हो। और उसमें किसी खिलाड़ी का दोष नहीं है। खिलाड़ी तो हर कोई चाहता है कि उसे मौका मिले, चाहे वह अश्विन हो या मैं हूं या कुलदीप हो या कोई भी हो। वो तो टीम प्रबधंन, चयनकर्ता या पदाधिकारी क्या सोचते हैं वह मायने लगता है।

-आपने कहा कि गांगुली ने आपको काफी सपोर्ट दिया, जिससे आप आगे बढ़े, लेकिन अभी जो बीसीसीआइ में चल रहा है उसे लेकर गांगुली पर ही सवाल उठाए जा रहे थे, आप गांगुली को बतौर कप्तान और बतौर बीसीसीआइ अध्यक्ष कैसे देखते हैं?

–मेरा तो यह संन्यास वाला दिन है, जितना मैं गांगुली को जानता हूं वह बहुत साफ इंसान हैं। वह बात के पक्के इंसान हैं। वह एकता में विश्वास रखने वाले इंसान हैं। भारतीय क्रिकेट का जो नक्शा बदला है उसका श्रेय उन्हें जाता है। मैच फिक्सिंग कांड के बाद लोगों का क्रिकेट से यकीन उठ गया था, लेकिन जिस तरह से उन्होंने टीम की अगुआई की और उन्होंने जिस तरह की टीम बनाई वो दिखाता है कि वह किस काबिलियत के इंसान हैं। वह एक ऐसे इंसान है जो तब आपके लिए खड़े होते हैं और बात करते हैं जब आपको जरूरत है। ऐसा सिर्फ मेरे मामले में नहीं है, बल्कि आज भी मैं देखता हूं कि वह अद्भुत हैं। मैं तो उनका हमेशा ऋणी रहूंगा।

-आस्ट्रेलिया के खिलाफ 2001 की सीरीज को किस तरह से देखते हैं और आपको कब अहसास हुआ कि आप भज्जी से हरभजन और टर्बनेटर बन गए?

–वही सीरीज ऐसी थी जिसमें हो सकता था कि मेरा करियर खत्म हो जाता, लेकिन उसी सीरीज ने मेरा करियर बना दिया। उस सीरीज ने मुझे जालंधर के सोनू को हरभजन सिंह बना दिया। उससे पहले लोग मुझे जानते नहीं थे। बस इतना जानते थे कि थोड़ी बहुत आफ स्पिन गेंदबाजी कर लेता है, छह-सात टेस्ट मैच खेला है। मैंने कोई मैच नहीं जिताया था, पर जब आप मैच जिताते हो तो आपकी पहचान बनती है और अपनी पहचान बनाने के लिए आपको प्रदर्शन करना ही पड़ता है। अगर आप प्रदर्शन नहीं करोगे तो कोई नहीं पूछेगा।

-आपके साथ विवाद भी रहे, चाहे वो श्रीसंत वाला हो या एंड्रयू सायमंड्स वाला हो या शोएब अख्तर वाला हो, तो ये हो जाता था या कभी इन पर अफसोस भी हुआ?

–अफसोस सिर्फ एक ही चीज पर हुआ जो श्रीसंत के साथ विवाद हुआ वो नहीं होना चाहिए था। जो तब हुआ वो मेरी तरफ से गलत हुआ, मुझे नहीं लगता कि मुझे उस लहजे से पेश आना चाहिए था। उसके अलावा मुझे किसी चीज का अफसोस नहीं है चाहे वो शोएब अख्तर हों या एंड्रयू सायमंड्स हों। मुझे पता इससे फर्क नहीं पड़ता कि लोगों ने क्या बोला।

-तो अब श्रीसंत से बात होती है या नहीं?

–बहुत होती है, श्रीसंत से कई बार मुलाकात होती है।

-अभी विश्व कप के समय भी कुछ पाकिस्तानी क्रिकेटरों ने ट्वीट किया था तो आपने ठीक-ठाक जवाब दिया था?

–दुनिया क्या बोलती है, क्या नहीं, अब वे पाकिस्तान के क्रिकेटर हैं, उनको लगता है कि वे कुछ बोल रहे हैं तो पहले वे अपना घर देख लें। आपने खुद क्या किया है क्रिकेट में और क्या बात कर रहे हो। गलत बात जो ना बोलता है और ना सुनता है वह हरभजन सिंह है, सच के लिए खड़ा रहता हूं।

-आपने अपने दौर में भारत के लगभग सभी महान क्रिकेटरों के साथ क्रिकेट खेला, चाहें वे सचिन तेंदुलकर हों, सौरभ गांगुली हों, राहुल द्रविड़ हों, वीवीएस लक्ष्मण हों, अनिल कुंबले हों, महेंद्र सिंह धौनी हों या बाद में विराट कोहली हों, तो इस दौर को कैसे देखते हैं। इन सबके साथ खेलने का आपको कितना फायदा मिला?

–मुझे इनसे क्या फायदा मिलना था। जो ये टीम इंडिया के लिए कर रहे थे, मैं भी वही काम कर रहा था, पर ये सभी महान खिलाड़ी थे। साथ ही जितने भी मेरे साथ के लड़के थे, चाहे वीरेंद्र सहवाग हों या युवराज, हम सभी के बीच अच्छा तालमेल था और आज भी हम मिलते-जुलते हैं। ऐसा कुछ नहीं था कि मुझे उनसे कोई फायदा लेना था या उन्हें मुझसे कोई फायदा लेना था। सबका एक ही लक्ष्य होता था कि भारत को मैच जिताना है।

-आपकी सबसे ज्यादा किससे पटती थी?

–शायद ही ऐसा कोई बंदा हो जिससे मेरी पटती नहीं हो। युवराज, आशीष नेहरा, सचिन पाजी, अजित अगरकर, जहीर या जितने भी युवा खिलाड़ी हैं उनसे बात करें तो कोई यह नहीं कहेगा कि हरभजन के साथ मजा नहीं आता था। हर कोई यही कहेगा कि इनके साथ मजा आता था।

-आपके पसंदीदा क्रिकेटर कौन हैं?

–सचिन तेंदुलकर, मुथैया मुरलीधरन, शेन वार्न, अनिल कुंबले, स्टीव वा ये कुछ ऐसे खिलाड़ी हैं जो हर दौर में मेरे पसंदीदा रहे हैं।

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-ऐसा कुछ रह गया जो आप चाहते थे कि काश मैं कर पाता?

–मैं चाहता था कि भारत की जर्सी पहनकर मैच खेलते हुए संन्यास ले पाता और मेरे बच्चे मुझे मैदान पर खेलते हुए देख रहे होते तो मजा आता, मगर कुछ चीजें नहीं होतीं तो उसका भी कुछ कारण होता है। लेकिन, मेरा हमेशा मानना रहा है कि दूसरी चीजें भी बेहतर होती हैं। जिंदगी सिर्फ क्रिकेट नहीं है। क्रिकेट ने हमें एक जिंदगी दी है और हमें इसे और बेहतर करना है।

-अभी जो विराट और गांगुली का मामला भारतीय क्रिकेट में चल रहा है उसे आप किस तरह से देखते हैं और आप इन चीजों को किस तरह से डील करते?

–देखिए इसमें कई कहानियां आ रही हैं, गांगुली कह रहे हैं कि हमने बात की थी, विराट कह रहे हैं कि मेरे से बात हुई नहीं है। मुझे नहीं पता कि असल बात क्या है। जब तक असल बात पता नहीं लगती है तो उस पर मेरा टिप्पणी देना बनता नहीं है, लेकिन मैं कहना चाहूंगा कि बिना मीडिया में ले जाकर भी सुलझाया जा सकता था। राई का पहाड़ बनाने की जरूरत नहीं थी। मीडिया को खबर देता कौन है। विवाद तभी बनते हंै जब कम्यूनिकेशन गैप होता है और शायद कम्यूनिकेशन गैप हुआ भी है। मेरे खयाल से यह बेहतर तरीके से सुलझ सकता हूं।

वही पार्टी ज्वाइन करूंगा जहां काम करने की आजादी मिलेगी

जब हरभजन से राजनीति में जाने को लेकर पूछा गया तो उन्होंने कहा कि अभी तक मुझे पता नहीं है कि मैं क्या करूंगा, लेकिन लोगों ने मुझे बहुत प्यार दिया है, चाहे वो मैदान में हो, या मैदान के बाहर हो। मैं आज जो हूं लोगों की वजह से हूं, बीसीसीआइ की वजह से हूं, क्रिकेट की वजह से हूं, तो मुझे कुछ ऐसा करना हो, चाहे वो राजनीति में जाकर हो या क्रिकेट में जाकर हो, जहां मैं लोगों की मदद कर सकूं या क्रिकेटरों की मदद कर सकूं तो मैं जरूर जाऊंगा, लेकिन समय आने पर। उसमें मैं देर नहीं करूंगा, क्योंकि क्रिकेट में संन्यास लेने में मैंने बहुत देर कर दी। किधर जाऊंगा यह पता नहीं है मुझे, मगर कहां जाना है जहां मुझे काम करने की आजादी हो।

जब उनसे पूछा गया कि अभी आपने पुष्कर धामी का ट्वीट किया था और उन्होंने आपका ट्वीट किया था और आप सिद्धू से भी मिले थे? तो इस पर उन्होंने कहा कि देखिए, सारे जानकार हैं, सभी भाई-बंधु दोस्त हैं। चुनाव वाला समय है, जिसके साथ देखेंगे, लोग यही कहेंगे कि इस पार्टी में जा रहा है या उस पार्टी में जा रहा है। मगर जिस दिन ऐसा कोई निर्णय लूंगा तो खुद उसकी घोषणा करूंगा। आपको या किसी को भी शंका में नहीं रखना चाहता हूं। देखिए, हम जानते सभी को हैं चाहें वे बीजेपी वाले हों या कांग्रेस वाले हों या आप वाले हों, तो जिसके साथ हम मिलते-जुलते हैं या फोटो लगेगी तो लोगों को तो यही लगेगा कि ये पार्टी ज्वाइन कर ली, मगर ऐसा नहीं है। जिस दिन करूंगा उस मैं खुद आप सबको बताऊंगा कि मैं ये काम करने जा रहा हूं और उसके लिए मुझे आपका प्यार और दुआएं चाहिए।

हरभजन सिंह का क्रिकेट करियर

प्रारूप, मैच, विकेट, औसत, सर्वश्रेष्ठ

टेस्ट, 103, 417, 32.46, 8/84

वनडे, 236, 269, 33.36, 5/31

टी-20, 28, 25, 25.32, 4/12


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