फर्जी फेसबूक आईडी बनाने पर नहीं बनता कोई केस: नकुड़ कोतवाल
नकुड़: नकुड़ थाना कोतवाल के अनुसार डिजिटल प्लेटफॉर्म पर यदि कोई फर्जी आईडी बनाता है तो उसके विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती है। फर्जी आईडी बनाना उसकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है।
नकुड़ थाना कोतवाल राजेन्द्र वशिष्ट ने शायद कानून की किताबे कुछ ज्यादा ही पढ़ ली है। ज्यादा पढ़ाई का असर इतना कि कानून की नई-नई परिभाषा गठित करनी शुरू कर दी है। क्षेत्र की जनता यदि कोई समस्या लेकर कोतवाल साहब के पास जाती है तो, कोतवाल साहब कानून की अपनी गठित की हुई परिभाषा सुनाकर थाने से नौ-दो-ग्यारह करने का प्रयास करते है।
गुरुवार को एक लव जिहाद केस सामने आने पर हिन्दू-संगठनों के कुछ लोग इस केस में आरोपी पर कार्यवाही को लेकर नकुड़ थाना कोतवाल से मिलने पँहुचे थे। कोतवाल के अटपटे जवाब सुनकर हिन्दू संगठनो के लोग अवाक रह गए।
विश्व हिन्दू परिषद के जिला अध्यक्ष दिग्विजय त्यागी ने कहा कि कोतवाल साहब ने कहा कि ‘लड़के पर कोई केस नहीं बनता है। मैं कोई कार्यवाही नहीं कर सकता। फर्जी फेसबूक आईडी बनाकर यदि किसी अन्य धर्म का व्यक्ति हिन्दू नाम रखकर हिन्दू लड़कियों को प्रेमजाल में फँसाता है तो यह कोई अपराध नहीं है। फेसबूक आईडी व्यक्तिगत अभिव्यक्ति है।’
जब उनसे कहा गया कि ‘नहीं ऐसा नहीं है’ फेसबूक एक पब्लिक डिजिटल प्लेटफॉर्म है उस पर अपनी गलत पहचान रखकर छल करना अपराध की श्रेणी में आता है तो कोतवाल साहब बिना कोई जवाब दिए अपनी कुर्सी छोड़कर चलते बने।
कोतवाल क्या कह रहे है विडियों देखिए और सुनिए..
क्या कहते है एक्सपर्ट?
1. पहचान की चोरी
अगर आप कभी ऐसी स्थिति का सामना करते है जहाँ किसी की पहचान चोरी हो गयी गई है, ऐसे में आईटी एक्ट की धरा 66C लगती है। इस धारा में तीन साल तक का कारावास और ₹1 लाख तक जुर्माने का प्रावधान है। धारा 66C के अंतर्गत “इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर, पासवर्ड, या किसी अन्य विशिष्ट पहचान सुविधा” की कूट रचना (जालसाज़ी) को दण्डित अपराध माना गया है।
2. पहचान की चोरी के साथ धोखाधड़ी
यदि कोई फर्जी प्रोफाइल बनाता है और वित्तीय हानि करता है। ऐसी परिस्थिति में आईटी एक्ट की धारा 66D के साथ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 468 के तहत एफआईआर दर्ज़ की जा सकती है। “धोखाधड़ी” शब्द का दायरा बहुत व्यापक है और यह सिर्फ वित्तीय हानि तक सीमित नहीं है। डिजिटल माध्यम से धार्मिक व अन्य धोखाधड़ी में भी इस धारा का प्रयोग किया जा सकता है।
3. पहचान की चोरी और मानहानि
अगर आपकी पहचान का प्रयोग कर के अश्लील सामग्री शेयर की जा रही है, ऐसे में आप आईटी एक्ट की धारा 66D के साथ 67 और 67A का सहारा ले कर शिकायत कर सकते है। माननीय उच्चतम न्यायालय ने श्रेया सिंघल विरुद्ध भारतीय संघ में धारा 66A को असंवैधानिक घोषित कर दिया था। ऐसे में एक पीड़ित के पास आईपीसी की धारा 499 और 500 उपलब्ध है जहाँ पर साफ़ तौर पर मानहानि की बात की गई है और 2 साल तक की सज़ा है। हालांकि, अगर कूटरचना हुई है तो धारा 469 का उपयोग किया जा सकता है जिसमे 3 साल तक की सज़ा का प्रावधान है।
4. क्या होता था 66A में?
सोशल मीडिया पर कथित तौर पर आपत्तिजनक पोस्ट करने पर जिस धारा में प्रशासन और पुलिस लोगों पर मुकदमा दर्ज कर रही थी, वो धारा 66 A ही था. इसमें सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर कोई आपत्तिजनक टिप्पणी करना कानून के दायरे में आता था, लेकिन इसकी परिभाषा गोलमोल थी। जिस कारण इसका दायरा इतना बढ़ा हुआ था, कि पुलिस और प्रशासन चाहे ले हर आनलाइन पोस्ट पर गिरफ्तारी हो सकती थी या एफआईआर हो सकती थी। ये धारा सूचना-प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत आती थी।
साल 2015 में जब सुप्रीम कोर्ट ने इसे निरस्त किया तो उसका मानना था कि ये धारा संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) यानी बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी का हनन है। कोर्ट ने तब इस धारा को शून्य करार दिया था। इससे पहले धारा 66 ए के तहत आनलाइन तौर पर आपत्तिजनक पोस्ट डालने पर 03 साल की सजा का प्रावधान था।